
बंजर खेत, मरते मवेशी, निर्जन गांव. तीन साल के सूखे की मार सहने के बाद महाराष्ट्र की अधिकतर ज़मीन कुछ यही मंज़र दिखा रही है. लेकिन सूखे से बुरी तरह प्रभावित राज्य के बीड में इस आपदा में भी शातिर लोगों ने अपनी जेबें भरने के रास्ते ढूंढ लिए हैं. यहां तक कि मवेशियों के चारे को भी नहीं छोड़ रहे.
इंडिया टुडे की जांच से सामने आया है कि कैसे कुछ एनजीओ मवेशी रखने वाले किसानों को राहत देने के लिए तय सरकारी फंड को डकार रहे हैं. इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर ने जांच में पाया कि राज्य के पशुधन कैंपों में गायों के चारे की आपूर्ति के लिए निर्धारित एनजीओ कैसे इस काम में हेराफेरी से अपनी और अपने राजनीतिक आकाओं की जेबें गर्म कर रहे हैं.
इस साल मार्च की शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार ने ऐसी सुविधाएं शुरू करने का ऐलान किया था, जहां किसान अपने मवेशियों की खुराक के लिए सहायता ले सकें. अधिकारियों के मुताबिक जून तक करीब 1,635 चारा कैम्प बनाए गए थे, ताकि 11 लाख मवेशियों की मदद की जा सके. पशुधन सहायता 9 से 18 किलोग्राम प्रति मवेशी के हिसाब से 50 रुपये से 100 रुपये के बीच तय है. एक सुविधा केंद्र में अगर एक हजार मवेशियों को हैंडल किया जाए तो ये राशि एक लाख रुपए प्रतिदिन बैठती है.
इंडिया टुडे की जांच से खुलासा हुआ कि इन सुविधा कैम्पों से जुड़े कई संस्थान बीजेपी और शिवसेना के नेताओं या उनके विश्वासपात्रों की ओर से मैनेज किए जाते हैं. ऐसे कुछ संस्थान छद्म नामों से भी चलाए जाते हैं. हैरानी की बात है कि ये संस्थान खुद को गैर मुनाफा सिद्धांत पर चलने वाले बताते हैं.
ग्राम पंचायत के सदस्य और शिवसेना से जुड़े गणेश वाघमारे पर बीड जिले के कलसाम्बर में चारा कैंप चलाने की ज़िम्मेदारी है. वाघमारे ने कबूल किया कि सूखा राहत ठिकाने लगाने के लिए कागजात में हेराफेरी और पशुओं को कम चारा दिया जाता है.
वाघमारे ने अंडर कवर रिपोर्टर को बताया, 'सारे अधिकारियों के लिए रकम तय है. मैं किसी भी चिट्ठी या रिकॉर्ड को मुहैया करा सकता हूं. मैंने उन्हें (मवेशियों) एक दिन के लिए भी सप्लीमेंट नहीं दिए, एक चुटकी भी नहीं. बड़े मवेशी के लिए 18 किलो और छोटे मवेशी के लिए 9 किलो चारा निर्धारित है लेकिन मैं 12 और 6 किलो ही देता हूं.'
वाघमारे ने रिकॉर्ड दिखाए कि कैसे चारे की खपत को कागज़ पर बढ़ाकर दिखाया जाता है. वाघमारे ने कहा, 'मैंने आधिकारिक रजिस्टर पर साइन करने के लिए लोग रखे हुए हैं और देखता हूं कि हर साइन के बाद अंगूठे का निशान भी हो. 99% प्रतिशत किसान निरक्षर हैं.'
जांच से सामने आया कि वाघमारे जैसे स्थानीय नेताओं ने 10 से 15 कैम्प बना रखे हैं और आधिकारिक फाइलों में ग्रामीणों के नाम पार्टनर के तौर पर दिखा रखे हैं. लगभग ऐसा ही तरीका हर गांव में अपनाया जाता है.
अहेर वाडगांव में मुकुंग रोहिते ने कबूल किया कि उसकी ओर से संचालित कैम्पों में मवेशियों की राहत के फंड को ठिकाने लगाने के लिए किताबों में नियमित तौर पर हेरफेर किया जाता है.
रोहिते ने कहा, “हम जो रजिस्टर मेंटेन करते हैं उसमें आंकड़ों को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जाता है. हम वीडियोग्राफी भी करते हैं. हमें दिखाना होता है कि हर परिवार में चार से पांच सदस्य हैं और हर सदस्य के पास पांच मवेशी हैं तो पूरे परिवार के हिसाब से 20 मवेशी बैठते हैं.” रोहिते ने चेकिंग के लिए आने वाले इंस्पेक्टरों को घूस देने की बात भी मानी.
रोहिते ने ये भी दावा किया कि महाराष्ट्र सरकार में एक मंत्री भी ऐसी सुविधा का अपने फायदे के लिए बेजा इस्तेमाल कर रहा है. इंडिया टुडे के पास रोहिते का पूरा कबूलनामा मौजूद है. जिसमें उसने टेप में मंत्री की पहचान बताई है. अगर आधिकारिक तौर पर रोहिते के दावे की जांच का फैसला लिया जाए तो ये टेप साझा किए जा सकते हैं.
बीड के ही एक और गांव कोलावाडी में चारा कैम्प संचालित करने वाले गोरख शिंगान ने भी रिकॉर्ड से छेड़छाड़ के लिए कुछ ऐसे ही तरीके अपनाने की बात कबूल की.
शिंगान ने कहा, ‘हमारे पास सभी ग्रामीणों के पूरे रिकॉर्ड हैं और हम जरूरत पड़ने पर 2,000 मवेशियों को आसानी से दिखा सकते हैं. अगर निरीक्षण भी होता है तो कोई परेशानी नहीं होगी.’ शिंगान ने शिवेसना के एक स्थानीय नेता का भी हवाला दिया जिसने पिछले महीने चारे के एक कैम्प पर गड़बड़ी के शक में पड़े छापे का विरोध किया था.
महाराष्ट्र के सहकारिता, राहत और पुनर्वास मंत्री सुभाष देशमुख ने इस जांच का हवाला दिए जाने पर कहा, 'सभी चारा कैम्प तय मानकों के हिसाब से आवंटित किए गए हैं और सब अच्छा कर रहे हैं. हम पहले के चारा कैम्पों में गड़बड़ी की शिकायतों पर पहले से ही कार्रवाई कर रहे हैं. जिओ टैगिंग का पालन नहीं होने के कुछ इक्कादुक्का मामले हो सकते हैं. अगर गड़बड़ी की कोई नई शिकायत सामने आती हैं तो हम कार्रवाई करेंगे.'
कृषि राज्य मंत्री सदाबाऊ खोट से इस संबंध में संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, 'चारा कैम्प उन्हीं लोगों को आवंटित किए गए जिनके पास इन्हें संचालित करने की क्षमता है. किसी एक की गड़बड़ के लिए दूसरे सारे कैम्पों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. आखिरकार ये लाखों मवेशियों का सवाल है. जहां हमें शिकायत मिलीं वहां कुछ कैम्पों के खिलाफ हम कार्रवाई के आदेश पहले ही जारी कर चुके हैं. और शिकायतें आईं तो हम व्यक्ति, पार्टी की परवाह किए बिना कार्रवाई करेंगे.'
वहीं, मामले में प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता श्वेता शालिनी ने दावा किया कि महाराष्ट्र में कोई चारा घोटाला नहीं हुआ है. इसकी निगरानी के लिए पांच टीमें हैं और अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो हम कार्रवाई करेंगे, लेकिन महाराष्ट्र का नाम नहीं बदनाम करना चाहिए.'
उधर, इंडिया टुडे की जांच की रिपोर्ट सामने आने के बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा, 'किसानों की जिंदगी से खेला जा रहा है. सरकार को दोषियों के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए और आरोपियों को जेल में बंद करना चाहिए.'
इसके अलावा बीड के डिस्ट्रिक्ट चीफ आस्तिक कुमार पांडे ने कहा कि मवेशियों की संख्या के आधार पर फंड आवंटित किया गया है. अगर मामले में किसी भी तरह अनियमितता पाई जाती है, तो कार्रवाई की जाएगी. चारा घोटाले में शामिल कैम्पों को भी ब्लैकलिस्टेड किया जा सकता है.