
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से दिए जा रहे मराठा आरक्षण को हरी झंडी दे दी है. मराठा आरक्षण की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए एक याचिका की सुनवाई करते हुए यह फैसला लिया. बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन कुछ अपवाद के मामलों में पिछड़ा आयोग इस पर फैसला ले सकता है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सवर्णों को दिया जाने वाला आरक्षण 16 फीसदी नहीं होना चाहिए लेकिन पिछड़े आयोग की ओर से प्रस्तावित 12 से 13 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है.
महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समाज को 16 फीसदी आरक्षण देने वाला विधेयक विधानमंडल में पारित किया था. सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गई थीं, तो वहीं कुछ लोग सरकार के इस फैसले के समर्थन में भी थे. चुनावी साल में कोर्ट के इस फैसले का बड़ा असर रहने वाला है.
पिछले साल 30 नवंबर को महाराष्ट्र सरकार ने नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मराठा समुदाय को पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत 16 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था. इसे लेकर फडणवीस सरकार ने विधानमंडल में विधेयक पारित किया था. लेकिन मामला कोर्ट में चला गया.
बता दें कि मराठा समाज काफी लंबे समय से आरक्षण की मांग करता रहा है. इसे देखते हुए बीजेपी सरकार ने विधानसभा में आरक्षण संबंधी विधेयक को पेश किया था जिसे दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था. इस विधेयक पर राज्यपाल ने भी हस्ताक्षर कर इसे सहमति दे दी थी. इस आरक्षण के साथ ही महाराष्ट्र में आरक्षण का कोटा बढ़कर 68 फीसदी हो गया है जबकि 69 प्रतिशत आरक्षण के साथ तमिलनाडु पहले नंबर हैं.
इस आरक्षण का मुस्लिम समाज ने भी विरोध किया था और कहा था कि अगर मराठा समाज को आरक्षण मिल रहा है, तो उन्हें क्यों नहीं मिल सकता है. दीगर है कि 2014 में मराठा और मुस्लिम समाज को कांग्रेस और एनसीपी की सरकार ने आरक्षण दिया था. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. इस के बाद राज्य भर में मराठा समाज ने विरोध प्रदर्शन किया था. इसमें कई लोगों की जान भी गई थी. इसके बाद मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए एक बार फिर से विधेयक लाया गया. अब सब की निगाहें गुरुवार के अदालती आदेश पर टिकी हैं.
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