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मराठा आरक्षण आंदोलन: जिद या रणनीति? CM शिंदे के आने के बाद ही मनोज जरांगे ने तोड़ा अनशन

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की मांग कर रहे मनोज जरांगे ने अपना अनशन वापस लेने का एलान किया. इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कई नेताओं की मौजूदगी के बीच मनोज जरांगे को जूस पिलाकार अनशन खत्म कराया. मनोज 29 अगस्त से मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे थे.

मुख्यमंत्री शिंदे ने तुड़वाया मनोज जरांगे का अनशन मुख्यमंत्री शिंदे ने तुड़वाया मनोज जरांगे का अनशन
aajtak.in
  • जालना,
  • 14 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:46 PM IST

महाराष्ट्र में 17 दिन बाद आखिरकार मराठा आरक्षण आंदोलन के चेहरा रहे मनोज जरांगे ने अपना अनशन वापस लेने का एलान किया. इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मनोज जरांगे को जूस पिलाकार अनशन खत्म कराया. 

दरअसल, गुरुवार सुबह करीब 11 बजे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत भाजपा के मंत्री गिरीश महाजन, केंद्रीय राज्य मंत्री राव साहेब दानवे, मंत्री उदय सामंत, संदीपान भुमरे, राधाकृष्ण विखे पाटील आंदोलन स्थल पर पहुंचे. यहां सभी ने मिलकर मनोज के साथ बातचीत की. इसके बाद मनोज ने वहां मौजूद अपने समर्थकों के बीच अनशन खत्म करने का एलान किया. फिर मुख्यमंत्री शिंदे ने खुद उन्हें अपने हाथों से जूस पिलाकर 17 दिन से चल रहे अनशन को खत्म करवाया.

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सरकार को दिया था 30 दिन का अल्टीमेटम

बता दें, मनोज जरंगे पाटिल ने मराठा आरक्षण पर फैसला लेने के लिए राज्य सरकार को 30 दिन का अल्टीमेटम दिया था. उन्होंने कहा था कि यदि सरकार ऐसा करने में विफल रहती है तो वह फिर से अंतरावली सराटी में भूख हड़ताल शुरू करेंगे. इसके अलावा उन्होंने मराठा समुदाय से अगले 30 दिनों तक पूरे महाराष्ट्र में आंदोलन की सिरीज शुरू करने को कहा था.

क्या हैं मनोज जारांगे की मांगें 

इस दौरान मनोज ने सरकार के सामने कई मांगे रखी. मनोज ने कहा कि मराठा समाज को कुनबी प्रमाण पत्र दिया जाए. इसके साथ ही जीआर में वंशावली का उल्लेख भी हटाया जाए. इसके अलावा जिन अधिकारियों ने प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज किया, उन्हें सेवा से निलंबित किया जाए. वहीं, जिन मराठा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज किए गए हैं उन्हें तुरंत वापस लिया जाए.

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भूख हड़ताल खत्म करने के पीछे की असल कहानी क्या?

मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जिद पर अड़े मनोज जारांगे पाटिल ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के वादे पर ही अपनी भूख हड़ताल को खत्म कर दिया. 17 दिन तक चला यह आंदोलन बस एक वादे पर खत्म हुआ. इसके बाद सवाल उठने लगा कि आखिर मनोज जारांगे पाटिल ने क्यों कदम पीछे खींच लिया? इतनी हिंसा के बाद आंदोलन एक झटके में कैसे खत्म हुआ?

'राज्य सरकार को एक्शन लेने का अधिकार'

दरअसल, मराठा आरक्षण की मांग को लेकर हुई हिंसा मामले में बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने सख्त निर्देश दिए थे. हाई कोर्ट ने आंदोलनकारियों के प्रदर्शन को उनका मौलिक अधिकार बताया था. लेकिन, राज्य सरकार को भी हिंसा होने की हालत में एक्शन लेने का पूरा हक होने की बात कही थी. चीफ जस्टिस देवेन्द्र उपाध्याय और जस्टिस अरुण पेडनेकर की बेंच के आदेश पर औरंगाबाद बेंच के सामने हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि विभिन्न तरीकों से विरोध करना हर किसी का मौलिक अधिकार है. लेकिन, इसके कारण राज्य में कानून-व्यवस्था न बिगड़े, हमें इसका ध्यान रखना होगा.

29 अगस्त से महाराष्ट्र की राजनीति में मची उथल-पुथल

मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर बीते 29 अगस्त से महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई थी. दुबली-पतली काया और कद-काठी वाले मनोज जारांगे अचानक ही तब लाइमलाइट में आ गए, जब उन्होंने मराठा आरक्षण को लेकर आवाज बुलंद की. इसके बाद 1 सितंबर को हुए हिंसात्मक विरोध के बाद पुलिस लाठीचार्ज ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया. इतने दिनों तक भूख हड़ताल पर रहे जारांगे ने मंगलवार को अपनी भूख हड़ताल खत्म करने का फैसला किया है, लेकिन सरकार को ये भी चुनौती दी है कि उनका आंदोलन जारी रहेगा और इस पर राज्य सरकार जल्द फैसला ले. अब शिंदे के आश्वासन के बाद उन्होंने अपना अनशन खत्म कर दिया.

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(इनपुट: रितिक)

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