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महाराष्ट्र में राज्यसभा के बाद अब विधान परिषद चुनाव में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सभी उम्मीदवारों की जीत से सियासी उथल-पुथल मच गई है. शिवसेना के कई विधायकों के गुजरात के सूरत में होने की बात कही जा रही है. शिवसेना के ताकतवर नेताओं में गिने जाने वाले एकनाथ शिंदे का नाम चर्चा के केंद्र में है. कहा जा रहा है कि शिंदे के साथ महाराष्ट्र के करीब 26 विधायक गुजरात के सूरत शहर के एक होटल में रुके हुए हैं, जिसके चलते उद्धव सरकार पर संकट गहरा गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि कौन हैं एकनाथ शिंदे जिन्होंने उद्धव ठाकरे की कुर्सी को हिलाकर रख दिया है.
ऑटो रिक्शा के ड्राइवर से मंत्री तक का सफर
महाराष्ट्र में 9 फरवरी 1964 को जन्मे एकनाथ शिंदे सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका से आते हैं और मराठी समुदाय से हैं. एकनाथ शिंदे ने 11वीं कक्षा तक ठाणे में ही पढ़ाई की और इसके बाद वागले एस्टेट इलाके में रहकर ऑटो रिक्शा चलाने लगे. ऑटो रिक्शे चलाते-चलाते एकनाथ शिंदे अस्सी के दशक में शिवसेना से जुड़े गए और पार्टी के एक आम कार्यकर्ता के तौर पर अपना सियासी सफर शुरू किया है.
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से सटे ठाणे जिले के सबसे प्रभावशाली नेताओं में एकनाथ शिंदे की गिनती होती है. लोकसभा का चुनाव हो या नगर निकाय का, ठाणे में जीत के लिए एकनाथ शिंदे का साथ जरूरी माना जाता है. हालांकि, एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर काम किया और ठाणे के प्रभावशाली नेता आनंद दीघे के उंगली पकड़कर आगे बढ़े.
एकनाथ शिंदे 1997 में ठाणे महानगर पालिका से पार्षद चुने गए और 2001 में नगर निगम सदन में विपक्ष के नेता बने. इसके बाद दोबारा साल 2002 में दूसरी बार निगम पार्षद बने. इसके अलावा तीन साल तक पॉवरफुल स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य रहे. हालांकि, दूसरी बार पार्षद चुने जाने के दो साल बाद ही विधायक बन गए, लेकिन शिवसेना में सियासी बुलंदी साल 2000 के बाद छुआ.
ठाणे इलाके में शिवसेना के दिग्गज नेता आनंद दीघे का साल 2000 में उनके निधन हो गया. इसके बाद ही बाद ठाणे में एकनाथ शिंदे आगे बढ़े. इसी बीच 2005 में नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ दी, जिसके बाद एकनाथ शिंदा का कद पार्टी में बढ़ता चला गया. राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने के बाद एकनाथ शिंदे क ग्राफ शिवसेना में तो बढ़ा ही बढ़ा और ठाकरे परिवार के करीबी भी बन गए. उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ मजबूती से खड़े रहै.
चौथी बार के विधायक हैं एकनाथ शिंदे
मातोश्री के सबसे करीबी नेताओं की लिस्ट में एकनाथ शिंदे का नाम सबसे पहले लिया जाता था. एकनाथ शिंदे ठाणे की कोपरी-पंचपखाड़ी सीट से साल 2004 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे. शिवसेना के टिकट पर 2004 में पहली बार विधानसभा पहुंचे शिंदे इसके बाद 2009, 2014 और 2019 में भी विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए. इतना ही नहीं एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे भी शिवसेना के टिकट पर कल्याण लोकसभा सीट से सांसद हैं. इस तरह से एकनाथ शिंदे ने नगर पलिका के पार्षद से विधायक और मंत्री तक का सफर तय किया.
2019 में चुने गए थे विधायक दल के नेता
एकनाथ शिंदे देवेंद्र फडणवीस मंत्रिमंडल के ताकतवर मंत्रियों में से एक थे तो उनकी सियासी तूती बोलती थी. साल 2019 की चुनावी जंग जीतकर जब वे चौथी बार विधानसभा पहुंचे, शिवसेना और उसकी तब गठबंधन सहयोगी रही बीजेपी के बीच बात बिगड़ गई. शिवसेना विधायक दल की बैठक में एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुन लिया गया. तब आदित्य ठाकरे को नेता चुने जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं. शिवसेना विधायक दल की बैठक में आदित्य ठाकरे ने ही एकनाथ शिंदे के नाम का प्रस्ताव रखा और उन्हें विधायक दल का नेता चुन लिया गया.
सीएम की रेस में था एकनाथ शिंदे का नाम
साल 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे ने एक इंटरव्यू में कहा था कि महाराष्ट्र में एक शिवसैनिक ही सीएम बनेगा. उद्धव ने कहा था कि ये वचन मैंने बालासाहेब ठाकरे को दिया था. ऐसे में महा विकास आघाड़ी की सरकार बन रही थी तो एकनाथ शिंदे का नाम बतौर सीएम सबसे तेजी से उभरा था. उस वक्त शिवसेना के विधायक और नेता भी उनके नाम पर तैयार थे, लेकिन एनसीपी और कांग्रेस इसपर सहमत नहीं थे. महा विकास आघाड़ी से उद्धव ठाकरे के सामने आने से एकनाथ शिंदे के अरमानों पर पानी फिर गया. हालांकि, उससे पहले एकनाथ शिंदे के समर्थकों ने जगह-जगह उन्हें भावी सीएम वाले पोस्टर लगाने लगे थे.
एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार बनाने के पक्ष में थे, लेकिन उद्धव ठाकरे के सीएम बनने के बाद खामोशी अख्तियार कर ली थी. ऐसे में उन्हें उद्धव सरकार में नगर विकास जैसा भारी भरकम मंत्रालय दिया गया, जिससे उनके सियासी कद का अंदाजा लगाया था सकता है.
गठबंधन सरकार बनने के बाद से ही थे नाराज
एकनाथ शिंदे के करीबियों की मानें तो ऐसा रातोंरात नहीं हुआ कि वे मंत्रियों और विधायकों को लेकर बागी तेवर अख्तियार कर गुजरात के सूरत स्थित होटल चले गए. करीबियों की मानें तो एकनाथ महा विकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही नाराज चल रहे थे. करीबी सूत्र बताते हैं कि एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल की बैठक में नेता चुने जाने के बाद ये भरोसा था कि वे अब मुख्यमंत्री बन जाएंगे लेकिन उद्धव ठाकरे के सामने आने के बाद उनके आरमानों पर पानी फिर गया था.
मंत्रिमंडल में ताकतवर होकर भी बढ़ती गई नाराजगी
दिलचस्प बात यह है कि देवेंद्र फडणवीस सरकार में एकनाथ शिंदे शिवसेना के सबसे ताकतवर मंत्री हुआ करते थे, लेकिन उद्धव ठाकरे सरकार के दौरान वह धीरे-धीरे साइडलाइन होते जा रहे थे. उद्धव मंत्रिमंडल में ताकतवर मंत्री होते हुए भी एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री न बन पाने को लेकर उपजी नाराजगी बढ़ती चली गई. पिछले कुछ महीने से उनके विभाग से जुड़े फैसलों से उन्हें दूर रखा जा रहा था. एकनाथ शिंदे की ये शिकायत रही है कि उनके विभाग अर्बन डेवलपमेंट के कार्यों में आदित्य ठाकरे और उनके करीबी हस्तक्षेप करते हैं. शिंदे समझ चुके थे कि पार्टी में अब उनके लिए जगह नहीं बचेगी और ऐसे में उन्होंने बड़ी तैयारी शुरू कर दी थी.
एकनाथ शिंदे भले ही उद्धव ठाकरे सरकार में कैबिनेट मंत्री तो बन गए थे, लेकिन उस अरमान को नहीं भुला पाए जो उन्होंने पाल रखा था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे. ऐसे में गाहे-बगाहे एमवीए सरकार के दौरान उनकी नाराजगी की खबरें भी निकलकर सामने आ रही थीं. ऐसे में एकनाथ शिंदे सियासी मौके ताक में थे और उन्हें विधान परिषद चुनाव में ये मौका मिल भी गया. ऐसे में शिवसेना के कुछ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी, जिससे महा विकास आघाड़ी एक सीट पर हार गई. एकनाथ शिंदे के इस खेल को शिवसेना समझ भी नहीं पाई थी कि वह 26 विधायकों के साथ मुंबई से फुर्र होकर गुजरात पहुंच गए.
हालांकि, एकनाथ शिंदे ने तब भी शिवसेना की ओर से मोर्चा संभाल लिया था जब 2019 में अजीत पवार ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी और देवेंद्र फडणवीस के साथ रात के समय राजभवन में डिप्टी सीएम की शपथ ले ली थी. कभी शिवसेना के लिए मजबूती से लोहा लेने वाले एकनाथ शिंदे फिर से चर्चा में हैं लेकिन इस बार वजह पार्टी से नाराजगी है.
हादसे में हो गई थी बच्चों की मौत
एक हादसे में शिंदे ने अपने 2 बच्चों को खो दिया था. उनका बेटा और बेटी उनकी आंखों के सामने सतारा में डूब गए थे. इस घटना के बाद शिंदे एकांतप्रिय हो गए थे. उन्होंने राजनीति छोड़ दी थी. वह तब शिवसेना के पार्षद थे. लेकिन आनंद दिघे उन्हें दोबारा सार्वजनिक जीवन में वापस लाए और उन्हें ठाणे नगर निगम में सदन का नेता बनाया.