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क्या राम मंदिर पार लगाएगा राज ठाकरे की नैया? रामलला की शरण में मनसे प्रमुख

मार्च के पहले हफ्ते मे राज ठाकरे पहली बार अयोध्या जाकर अपनी राजनीति के लिए नई दिशा तलाशने जा रहे हैं. 9 मार्च 2021 को राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस को 15 साल पूरे होने जा रहे हैं.

मनसे प्रमुख राज ठाकरे (फाइल फोटो) मनसे प्रमुख राज ठाकरे (फाइल फोटो)
साहिल जोशी
  • मुंबई,
  • 04 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 8:29 PM IST
  • राम लला के दर्शन के लिए जा रहे हैं राज ठाकरे
  • क्षेत्रवादी पार्टी से हिन्दुत्ववादी पार्टी बनने की कोशिश
  • शिवसेना की जगह भरने पर है नजर

गांव-देहात मे, जब भी कोई मुश्किल मे होता है तो कहते हैं कि भगवान राम की शरण में जाओ, इसी तरह महाराष्ट्र की राजनीति में बुरी तरह पिछड़े राज ठाकरे अपनी नई पारी की शुरुआत अयोध्या में राम दर्शन से करने जा रहे हैं. मार्च के पहले हफ्ते मे राज ठाकरे पहली बार अयोध्या जाकर अपनी राजनीति के लिए नई दिशा तलाशने जा रहे हैं.

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9 मार्च 2021 को राज ठाकरे की महाराष्ट्र नमनिर्माण सेना यानी एमएनएस को 15 साल पूरे हो जाएंगे. लेकिन पिछले कुछ सालों तक महाराष्ट्र की राजनीति में उभरता सितारा माने जाने वाली एमएनएस के सितारे फिलहाल गर्दिश में हैं. और पार्टी के तमाम नेताओं और खुद राज ठाकरे को लगता है कि ‘महाराष्ट्रियत्व’ को अगर हिंदुत्व का साथ मिल जाए तो पार्टी दोबारा अपनी पुरानी चमक में लौट सकती है.

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राज ठाकरे ने जब अपनी पार्टी बनाई थी तब वे शिवसेना का थोड़ा पुराना, कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरा नकारते हुए, सही मायने मे क्षेत्रीय लेकिन सर्व समावेशक पार्टी बनाने का सपना देख रहे थे. अपनी पार्टी के शुरुआती दिनों में वे ये कहते हुए मिलते थे कि “मुझे सिर्फ महाराष्ट्र से मतलब है, जो यहां का वो मेरा''. एक युवा नेता होने के साथ-साथ उनकी यूएसपी ठाकरे होना भी था और ठाकरे नाम से जुड़ा मराठी मानुष का इतिहास भी. इसी को भुनाते हुए उन्होने हार्डलाइन क्षेत्रवाद को पकड़ते हुए महाराष्ट्र की राजनीति में अपने पांव जमाने शुरू किए थे.

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अपने पहले ही विधानसभा चुनाव यानी साल 2009 में उन्होनें 13 सीटें जीतकर साबित कर दिया था कि आने वाला दशक उनका हो सकता है. लेकिन कुछ फैसले गलत क्या हुए कि उनकी पार्टी की नींव हिलने लगी. राज ठाकरे उन पहले गिने चुने नेताओं में से एक थे जिन्होने नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में उदय को भांप लिया था. मोदी और राज ठाकरे की नजदीकियां इस कोशिश के तहत भी देखी गई थीं कि अगर मोदी के हाथ में बीजेपी की कमान आती है तो महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना से छुटकारा पाने के लिए एमएनएस से दोस्ती कर लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साल 2014 के लोकसभा चुनाव मे बीजेपी ने शिवसेना को साथ में लिया. उस वक्त मोदी को समर्थन की बात करते हुए राज ठाकरे ने सिर्फ शिवसेना को निशाना बनाया, लेकिन उनका दांव चल नहीं पाया.

इसके बाद बीजेपी ने शिवसेना का साथ तो छोड़ दिया लेकिन एमएनएस को साथ नहीं लिया, इससे गुस्साये राज ठाकरे ने नोटबंदी के बाद से ही मोदी सरकार को जमकर निशाना बनाना शुरू कर दिया. और दूसरी तरफ एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से नजदीकियां बढ़ाना शुरू कर दिया. यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव मे अपना एक भी उम्मीदवार ना उतारते हुए भी मोदी सरकार के खिलाफ रैलियां कीं.

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यहां तक कि 2019 के विधानसभा चुनाव के लिये उन्होने एनसीपी और कांग्रेस के साथ अंदरुनी समझौत भी किया. लेकिन चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में अकल्पनीय मोड़ आया और एनसीपी और कांग्रेस की मदद से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. राज ठाकरे एक बार फिर हाशिये पर चले गए.

इसलिए राज ठाकरे अब इस कोशिश में हैं कि शिवसेना के कांग्रेसी खेमे में जाने के बाद खाली हुई हिंदुत्व की स्पेस को वो भर सकें .पार्टी के पंचरंगी झंडे को बदलकर उन्होंने अब भगवा रंग अपना लिया है. अगले साल मुंबई महानगरपालिका के साथ-साथ 9 अहम महानगर पालिकाओं के चुनाव महाराष्ट्र में होंगे. ऐसे में हिंदुत्व के नारे के साथ बीजेपी से कुछ समझौता करने की कोशिश मनसे के द्वारा की जा सकती है. अयोध्या टूर उसी रणनीति से जुड़ा हुआ है.

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