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Exam पास करने के 2 साल बाद भी नहीं हुआ इंटरव्यू, सुसाइड नोट में लिखा- 'MPAC मायाजाल है'

स्वप्निल ने आत्महत्या करने से पहले सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसमे उसने लिखा है कि एमपीएससी एक माया जाल है, इसमें न पड़ो, मैं घबराया या परेशान नही हुआ. मेरे पास समय नहीं था.

प्रतीकात्मक चित्र प्रतीकात्मक चित्र
aajtak.in
  • पुणे ,
  • 04 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 9:53 AM IST
  • प्री और मेंस परीक्षा अच्छे नंबरों से की थी पास
  • कोविड की वजह से 2 साल में भी नहीं हुआ इंटरव्यू
  • डिप्रेशन और कर्ज के दबाव में था अभ्यर्थी

महाराष्ट्र में एमपीएससी (Maharashtra Public Service Commission) प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थियों की संख्या लाखों में है. इस परीक्षा को देने वाले विद्यार्थियों को पिछले कुछ वर्षों में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. पुणे के हडपसर फुरसुंगी इलाके में रहने वाले स्वप्निल लोनकर ने परीक्षा पास की, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिली. निराशा में उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. जिससे विद्यार्थियों में हड़कंप मच गया है.

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स्वप्निल ने आत्महत्या करने से पहले सुसाइड नोट (suicide note) छोड़ा है, जिसमे उसने लिखा है कि एमपीएससी एक मायाजाल है, इसमें न पड़ो, मैं घबराया या परेशान नहीं हुआ. मेरे पास समय नहीं था.

हडपसर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार मृतक 24 वर्षीय स्वप्निल लोनाकर के पिता की शहर के शनिवार पेठ में प्रिंटिंग प्रेस है. उसके माता-पिता रोज वहां जाते हैं, दोनों रोज की तरह बुधवार को भी गए थे. स्वप्निल की बहन किसी काम से बाहर गई हुई थी, जब बहन दोपहर को घर पहुंची तो उसे स्वप्निल कहीं दिखाई नहीं दिया. जब वह उसके कमरे में गई तो देखा कि स्वप्निल ने फांसी लगाई हुई है.

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बहन ने तुरंत इस घटना की जानकारी अपने माता-पिता को दी. जिसके बाद पड़ोसी और पुलिस बुलाकर स्वप्निल को अस्पताल में ले जाया गया. लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सौ लोगों की मदद करना चाहता था स्वप्निल 

स्वप्निल ने जो सुसाइड नोट छोड़ा उसमें उसने लिखा है ''एमपीएससी (MPAC) माया जाल है, इसके झांसे में न पड़ो, आने वाले दिनों में उम्र और बोझ बढ़ता जाता है. आत्मविश्वास ढलता है और आत्म संदेह बढ़ता है. उम्र के 24 वर्ष और पास होने को 2 वर्ष हो गए. परीक्षा के लिए लिया हुआ पहाड़ जैसा कर्ज प्राइवेट नौकरी कर कभी नहीं चुकाया जा सकता, परिवार वालों की बढ़ती अपेक्षाएं. नकारात्मक सोच कितने दिनों से मन मे थी, लेकिन आशा थी कि कुछ अच्छा होगा. लेकिन इसके आगे जिंदगी अच्छी होगी इसके आसार कम ही थे. मेरी आत्महत्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है, यह मेरा अपना निर्णय है. मुझे माफ कर दो! 100 लोगों की जान बचानी थी, डोनेशन करके, 72 बाकी हैं, हो सके तो उन तक पहुंचो, कई जिंदगियां बच जाएंगी.

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