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12 लोगों की क्षमता वाली नाव से कैसे बचाई 56 लोगों की जान, कैप्टन अनमोल की जुबानी मुंबई हादसे की आंखो-देखी

कैप्टन श्रीवास्तव के जहाज़ में सिर्फ़ 12 लोगों को ले जाने की क्षमता थी, लेकिन उन्होंने अपने समुद्री अनुभव का इस्तेमाल करके जहाज़ का पूरा आकलन किया और 57 लोगों को जहाज़ पर ले गए.  बचाए गए लोगों में एक सात साल का बच्चा भी था, जो श्रीवास्तव और जर्मन पर्यटकों द्वारा सीपीआर दिए जाने के बावजूद बच नहीं पाया.

मुंबई नाव हादसे में गई थी 14 लोगों की जान मुंबई नाव हादसे में गई थी 14 लोगों की जान
दिव्येश सिंह
  • मुंबई,
  • 21 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:43 PM IST

जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह प्राधिकरण के जहाज पायलट कैप्टन अनमोल श्रीवास्तव कुछ ही मिनटों में दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए और अपनी नाव, जिसकी क्षमता केवल 12 लोगों की थी, का उपयोग करके 56 लोगों को बचा लिया.

मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से एलिफेंटा के लिए रवाना हुई नील कमल नामक एक बोट 18 दिसंबर को नेवी के जहाज से टकरा गई, जिससे बोट डूब गई. इस दर्दनाक हादसे में 14 लोगों की मौत हुई. इस बोट पर उस समय 100 से ज्यादा लोग सवार थे. 

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जैसे ही हादसा हुआ तो नेवी को एक अलर्ट मिला और उसने अपने बचाव दल को तुरंत हादसे वाली जगह पर भेजा. पायलट कैप्टन अनमोल श्रीवास्तव घटना के कुछ ही मिनटों के भीतर घटनास्थल पर पहुंच गए और अपनी नाव, जिसकी क्षमता केवल 12 लोगों की थी, का उपयोग करके 56 लोगों की जान बचाई.

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हादसे के समय नजदीक में ड्यूटी पर थे कैप्टन श्रीवास्तव

अगर कैप्टन श्रीवास्तव ने वीरतापूर्ण कार्य न किया होता तो मृतकों की संख्या और भी ज़्यादा होती. कैप्टन श्रीवास्तव, जो जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह में आने-जाने वाले बड़े मालवाहक जहाजों का मार्गदर्शन का जिम्मा संभालते हैं, वह हादसे के दौरान ड्यूटी पर थे. उन्हें दोपहर 1.45 बजे एक मालवाहक जहाज को एस्कॉर्ट करना था, लेकिन कार्गो को लोड करने में समय लगने के कारण इसमें एक घंटे की देरी हो गई. जब वे जहाज को एस्कॉर्ट करने के बाद वापस बंदरगाह पर लौट रहे थे, तो उन्हें रेडियो पर डूबती हुई नौका के बारे में एक एसओएस कॉल मिली.

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कैप्टन अनमोल श्रीवास्तव

श्रीवास्तव ने बताया, "हमें एहसास हुआ कि हम पांच मिनट के भीतर उस स्थान पर पहुंच सकते हैं और तुरंत पूरी स्पीड से वहां पहुंच गए."मौके पर पहुंचने के बाद कैप्टन श्रीवास्तव ने पाया कि नौका लगभग पूरी तरह डूब चुकी थी, और बच्चे समेत यात्री नौका के बचे हुए हिस्सों को कसकर पकड़े हुए थे. कुछ माता-पिता अपने बच्चों को पानी के ऊपर पकड़े हुए थे.

12 लोगों की ले जाने की क्षमता वाली बोट में बचाई 57 लोगों की जान

बिना किसी देरी के श्रीवास्तव और उनके दल ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी, और जीवित बचे लोगों को नाव पर खींचने के लिए लाइफबॉय, लाइफ जैकेट और स्टील की सीढ़ियां उतारीं. उन्होंने बताया, "लोग सदमे में थे और घबराए हुए थे. हर कोई नाव में चढ़ना चाहता था, लेकिन हमने सबसे पहले बच्चों को, फिर बुजुर्ग महिलाओं को और फिर पुरुषों को उतारा."

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हालांकि उनके जहाज़ में सिर्फ़ 12 लोगों को ले जाने की क्षमता थी, लेकिन कैप्टन श्रीवास्तव ने अपने समुद्री अनुभव का इस्तेमाल करके जहाज़ का पूरा आकलन किया और 57 लोगों को जहाज़ पर ले गए.  बचाए गए लोगों में एक सात साल का बच्चा भी था, जो श्रीवास्तव और जर्मन पर्यटकों द्वारा सीपीआर दिए जाने के बावजूद बच नहीं पाया.

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इस त्रासदी में 14 लोगों की जान चली गई, जबकि एक व्यक्ति अभी भी लापता है. इस साहसिक बचाव अभियान का जिक्र करते हुए श्रीवास्तव ने कहा, "एक नाविक के रूप में, मुझे SOLAS (समुद्र में जीवन की सुरक्षा) के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. यह किस्मत थी कि हम दुर्घटना स्थल के नजदीक थे." जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह प्राधिकरण (जेएनपीए) ने घोषणा की है कि कैप्टन श्रीवास्तव को उनकी असाधारण बहादुरी और सेवा के लिए गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया जाएगा.

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