
बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कोर्ट से राहत मिली है. कारण, मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम के तहत 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में जारी जमानती वारंट को अस्थायी रूप से निलंबित करने के अपने आदेश को आगे बढ़ा दिया. कोर्ट ने पहले ठाकुर को जमानती वारंट जारी किया था क्योंकि वह चल रहे मुकदमे में उपस्थित नहीं हुई थी जो, अपने अंत के करीब है.
दरअसल, 2 दिसंबर को कोर्ट को सूचित किया गया कि जमानती वारंट बिना तामील के वापस आ गया था, क्योंकि ठाकुर अपने घर पर नहीं मिली थी, और जांच करने पर पता चला कि वह मेरठ के अस्पताल और एकीकृत चिकित्सा विज्ञान संस्थान में इलाज करा रही हैं.
3 दिसंबर को ठाकुर की ओर से पेश हुए अधिवक्ता जेपी मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि उनके मुवक्किल का अभी भी इलाज चल रहा है, और वह डॉक्टरों की सलाह के अनुसार तीन से चार हफ्ते बाद यात्रा करने में सक्षम होंगी. इसलिए, वह 30 दिसंबर, 2024 को या उससे पहले उपस्थित रहेंगी. इन दलीलों को सुनने के बाद, विशेष अदालत ने जमानती वारंट को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था.
हालांकि, मिश्रा ने सोमवार (30 दिसंबर) को अदालत को बताया कि ठाकुर मेडिकल सुविधा से लौट आई हैं और उन्होंने भोपाल से मुंबई आने के लिए टिकट भी बुक कर लिए थे, लेकिन उन्हें टाइफाइड, तेज बुखार और पेट दर्द की शिकायत थी. मिश्रा ने अदालत को इसके लिए एक मेडिकल सर्टिफिकेट भी सौंपा.
एडवोकेट मिश्रा ने कहा, "डॉक्टरों की सलाह के अनुसार, वह 12 जनवरी, 2025 के बाद अदालत में उपस्थित हो सकेंगी."
इस दलील पर विचार करते हुए विशेष अदालत ने अपना आदेश आगे बढ़ा दिया.
मालेगांव धमाके में गई थी 6 लोगों की जान
बता दें कि एनआईए अदालत वर्तमान में 2008 के विस्फोट मामले में मुकदमे के अंतिम चरण में है और सात आरोपियों के अंतिम बयान दर्ज कर रही है. 29 सितंबर, 2008 को मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर उत्तरी महाराष्ट्र के शहर मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण के फटने से कुल छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे.
प्रज्ञा ठाकुर, सेना अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और पांच अन्य पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और अब समाप्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विस्फोट की साजिश में कथित संलिप्तता के लिए मुकदमा चल रहा है. 2011 में एनआईए को सौंपे जाने से पहले इस मामले की जांच महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी.