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क्या है नबाम रेबिया केस, जिसके फैसले को लेकर SC ने उद्धव vs शिंदे मामला बड़ी बेंच को भेजा

महाराष्ट्र के उद्धव vs शिंदे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर उस समय पॉलिटिकल पार्टी ने व्हिप जारी किया था तो नियम के मुताबिक उसका व्हिप ही माना जाना चाहिए, न कि लेजिस्लेचर पार्टी का. फैसला सुनाने के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया केस का भी जिक्र किया था.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2023,
  • अपडेटेड 11:19 AM IST

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को उद्धव-शिंदे मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि 2016 का नबाम रेबिया मामले में कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती है, जबकि उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है. आइए जानते हैं यह नबाम रेबिया केस क्या है और इस मामले का सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव-शिंदे केस में क्यों जिक्र किया?

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अरुणाचल प्रदेश का नबाम रेबिया केस और महाराष्ट्र का शिवसेना vs शिवसेना का केस एक जैसा ही है. दरअसल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी हाई कोर्ट के उस निर्णय पर मुहर लगा दी थी, जिसमें कांग्रेस के बागी 14 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने पर रोक लगा दी थी. इसी के साथ ही कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के बर्खास्त सीएम नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश दे दिया था.

तब सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के फैसले को भी गलत बता दिया था. दरअसल 9 दिसंबर 2015 को कांग्रेस विधायकों का एक गुट तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रेबिया को हटाने की मांग लेकर राज्यपाल राजखोवा के पास पहुंच गया था. उन्होंने राज्यपाल से कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष उन्हें अयोग्य घोषित करना चाहते हैं. इसके बाद राज्यपाल ने विधानसभा का आपात सत्र बुला लिया था. 

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अरुणाचल प्रदेश के सीएम नबाम तुकी ने राज्यपाल को 14 जनवरी 2016 को विधानसभा सत्र बुलाने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने 16 दिसंबर 2015 को ही सत्र बुला लिया था. उनके इस फैसले से संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था, जिसके बाद नबाम तुकी ने विधानसभा भवन को लॉक करा दिया था. उसी दिन स्पीकर ने कांग्रेस के 14 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था. वहीं राज्यपाल के फैसले को विधानसभा अध्यक्ष रेबिया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराया था. अब इसी मामले का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र का मामला बड़ी बेंच को भेज दिया है. बताया जा रहा है कि 7 जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर सकती है.

स्पीकर करेंगे अयोग्यता पर फैसला 

पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के कई विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी. बाद में इन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. राज्यपाल ने शिंदे-बीजेपी गठबंधन सरकार को मान्यता देकर शपथ दिला दी थी. ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में सभी 16 विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए याचिका दायर की थी. अब विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दी है. हालांकि इसी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि गोगावाले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने के स्पीकर के फैसला अवैध करार दिया है. कोर्ट का कहना है कि व्हिप को पार्टी से अलग करना ठीक नहीं है. अगर कोई पॉलिटिकल पार्टी व्हिप जारी करती है तो उसके ही व्हिप को माना जाना चाहिए, न कि लेजिस्लेचर पार्टी के व्हिप को. 

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SC ने गवर्नर की भूमिका पर भी उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र मामले में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर भी सवाल उड़े किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी कलह में पड़ना गवर्नर का काम नहीं है. गवर्नर की जिम्मेदारी संविधान की सुरक्षा की भी होती है. राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था. फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते. राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था, जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं. राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं.

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