
महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले को लेकर विरोध के सुर पार्टी के अंदर से लेकर महाविकास अघाड़ी में शामिल उद्धव ठाकरे की शिवसेना तक से उठ रहे हैं. कांग्रेस के दो कद्दावर नाना पटोले और बालासाहेब थोराट के बीच आर-पार की जंग छिड़ गई है. पटोले के खिलाफ बगावती तेवर अपनाते हुए थोराट ने विधानसभा के सीएलपी पद से इस्तीफा दे दिया है. यह मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि शिवसेना ने उद्धव सरकार के घिरने के लिए नाना पटोले को जिम्मेदार ठहराया है. ऐसे में सभी के मन में यह सवाल है कि कौन नाना पटोले हैं, जिन्हें लेकर पार्टी की अंदरूनी लड़ाई से गठबंधन के सहयोगी तक से विवाद बढ़ता नजर आ रहा है?
महाराष्ट्र कांग्रेस की सियासत में नाना पटोले ने अपनी खास जगह बनाई है. राहुल गांधी के करीबी नेताओं में शुमार किए जाने के चलते ही उन्हें पार्टी की कमान सौंपी गई है. अपने छात्र जीवन में ही नाना पटोले ने राजनीति में कदम रख दिया था और 90 के दशक में पहली बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़कर जीत दर्ज की. इसके बाद नाना पटोले ने सियासत में पलटकर नहीं देखा और राजनीतिक बुलंदियों को छूते गए. कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और बीजेपी के टिकट पर एनसीपी के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल को हराकर संसद पहुंचे, लेकिन पांच साल से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में घर वापसी कर गए.
पटोले ने सियासत में ऐसे रखा कदम
नाना पटोले का जन्म महाराष्ट्र में विदर्भ के भंडारा जिले के लखनी गांव में 1962 में एक किसान परिवार में हुआ. नागपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते हुए पटोले ने सियासत में कदम रखा. साल 1987 में विश्वविद्यालय में छात्र प्रतिनिधि चुने गए और कांग्रेस का दामन थाम लिया. साल 1991 में भंडारा जिला परिषद बने. नाना पटोले के पिता फाल्गुनराव पटोले राजनीति में उतरने के उनके फैसले के खिलाफ थे. इसके बाद भी नाना पटोले अपने भाई और मां की मदद से राजनीति में आगे बढ़े.
विधायक से सांसद तक का सफर
जिला पंचायत सदस्य बनने के साथ ही नाना पटोले को सियासत का चस्का लग गया और विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोक दी. कांग्रेस से टिकट मांगा और जब पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया तो निर्दलीय मैदान उतर गए. निर्दलीय चुनाव नहीं जीत सके तो कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस के टिकट पर 1999, 2004 और 2009 में विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने. ऐसे में नाना पटोले को लोकसभा चुनाव लड़ने की ख्वाहिश जागी तो कांग्रेस छोड़ना पड़ा. इसकी वजह यह थी कि नाना पटोले जिस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, वहां से एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल प्रतिनिधित्व कर रहे थे.
कांग्रेस से इस्तीफा देकर नाना पटोले ने भंडारा-गोंदिया लोकसभा से प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ निर्दलीय ताल ठोक दी. इस चुनाव में वह हार गए, लेकिन वह दूसरे स्थान पर रहे. इसके बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एनसीपी के दिग्गज प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ मैदान में उतरे और बड़े मार्जिन से जीत हासिल की. इसके बाद बीजेपी से उनके मतभेद हो गए. साल 2018 में नाना पटोले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. नाना पटोले ने 2019 में नितिन गडकरी के खिलाफ नागपुर लोकसभा सीट चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके. इसके बाद वह 2019 में अपनी पुरानी सीट से विधायक चुने गए.
महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर बने
बीजेपी को 2019 में सत्ता से रोकने के लिए उद्धव ठाकरे की अगुवाई में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी, जिसमें कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी भी शामिल थी. ऐसे में नाना पटोले के राजनीतिक करियर को देखते हुए उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा का स्पीकर चुना गया था. नाना पटोले की पहचान तेजतर्रार नेता के तौर पर रही है. महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर पद के लिए महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार के रूप में नानाभाऊ पटोले के नाम का ऐलान बालासाहब थोराट ने किया था. महराष्ट्र में कांग्रेस ने बालासाहेब थोराट को मंत्री बनाया तो उनकी जगह पर नाना पटोलो को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी.
फिर मिली कांग्रेस की कमान
नाना पटोले की पहचान महाराष्ट्र की सियासत में किसानों के मुद्दे को उठाने के लिए जाना जाता है. वह विदर्भ के ओबीसी कुनबी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. कांग्रेस में शामिल होते ही उन्हें पहले कांग्रेस किसान संगठन का अध्यक्ष नियुक्त किया था और उसके बाद सरकार बनी तो स्पीकर. विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए नाना पटोले को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी गई. माना जाता है कि राहुल गांधी की मर्जी से उन्हें महाराष्ट्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है.
पटोले के खिलाफ उठे विरोध के सुर
नाना पटोले ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अपनी टीम का गठन किया तो उसी समय विरोध से सुर उठे थे. उन्होंने प्रदेश कमेटी में उत्तर भारतीय लोगों को खास तवज्जो नहीं दी और सिर्फ दो ही लोगों को जगह मिली थी. कांग्रेस के एक मजबूत वोटबैंक माने जाने वाले हिंदी भाषी समाज को भी पटोले की टीम में नजरंदाज किया था. एमएलसी चुनाव में नाना पटोले ने कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट के रिश्तेदार सुधीर तांबे के बेटे सत्यजीत तांबे को टिकट नहीं देने और उसके बाद निर्दलीय चुनाव में उतरने पर एक्शन लिया था. बताया जा रहा है कि बालासाहेब थोराट इसे लेकर नाराज हैं. थोराट ने सीएलपी पद से इस्तीफा दे दिया और हाईकमान को पत्र लिखकर नाना पटोले के साथ काम नहीं करने की बात कही है.
शिवसेना भी पटोले से नाराज
नाना पटोले कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के साथ चुनाव लड़ने के बजाय कांग्रेस के एकला चलो की वकालत कर रहे हैं. बीएमसी चुनाव से लेकर उपचुनाव तक में अकेले कांग्रेस की उतरने की बात करते आ रहे हैं. नाना पटोले को लेकर एनसीपी और शिवसेना दोनों ही नाराज है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में नाना पटोले को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि नाना पटोले अगर विधानसभा स्पीकर पद से इस्तीफा न दिए होते तो उद्धव ठाकरे की सरकार न गिरी होती. इस तरह से नाना पटोले के लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं.