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Civic Body Polls: एमपी में निकाय चुनावों में OBC आरक्षण मंजूर, महाराष्ट्र में कहां लटका है मामला

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में ओबीसी को आरक्षण दिए जाने का आदेश तो दे दिया है लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ऊपर नहीं होना चाहिए. वहीं राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की कोर्ट में पेश रिपोर्ट में भी ओबीसी को 35 फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा की गई थी.

महाराष्ट्र निकाय चुनाव में OBC आरक्षण पर SC में लंबित है मामला (फाइल फोटो) महाराष्ट्र निकाय चुनाव में OBC आरक्षण पर SC में लंबित है मामला (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2022,
  • अपडेटेड 5:12 PM IST
  • SC ने MP को चार दिन में आरक्षण के साथ चुनाव कराने का दिया है आदेश
  • कोर्ट का आदेश आने के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मध्य प्रदेश में निकाय और पंचायत चुनाव की अड़चन दूर हो गई है. अब ओबीसी आरक्षण के साथ निकाय चुनाव होंगे. एमपी में निकाय चुनाव की सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद महाराष्ट्र के निकाय चुनाव को लेकर भी सियासत तेज हो गई है. दरअसल इन दोनों ही राज्यों का मामला ओबीसी आरक्षण के चलते फंसा हुआ था.

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मध्य प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को राज्य निर्वाचन आयोग को दो सप्ताह में ओबीसी आरक्षण के बिना नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद शिवराज सरकार ने संशोधन के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की थी. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि महाराष्ट्र में निकाय चुनाव पर मामला क्यों अटका हुआ है.

MP के लिए इतनी जल्दी फैसला, महाराष्ट्र के लिए देरी क्यों?

मध्य प्रदेश निकाय चुनाव मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा क्या हो गया कि सुप्रीम कोर्ट ने चार दिन में मध्यप्रदेश को आरक्षण के साथ स्थानीय चुनाव कराने का आदेश दे दिया.

वहीं महाराष्ट्र सरकार दो साल से ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण देने के लिए लड़ाई लड़ रही है, लेकिन केंद्र सरकार महाराष्ट्र के मामले में लगातार रुकावट पैदा कर रही है.  

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राज्य पिछड़ा आयोग का फॉर्मूला SC ने किया स्वीकार

सुप्रीम कोर्ट में शिवराज सरकार ने पुनर्विचार याचिका के साथ राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की एक रिपोर्ट भी पेश की थी, जिसमें ओबीसी के आरक्षण देने का फॉर्मूला था.

इसमें यह बताया गया था कि प्रदेश में 48 फीसदी ओबीसी हैं और उन्हें ट्रिपल टेस्ट के अनुसार आरक्षण देने का तरीका बताया. कोर्ट ने एमपी ओबीसी आयोग के पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण का फॉर्मूले को स्वीकार कर लिया है.

उद्धव सरकार नहीं तैयार कर सकी ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को भी ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने के लिए ट्रिपल टेस्ट के लिए कहा था, जिसके बाद उद्धव सरकार ने परिसीमन कार्य प्रगति पर होने का हवाला दे दिया था.

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि पांच साल में निकाय चुनाव कराए जाए वो फिर चाहे आरक्षण के बिना ही क्यों न हों. इसके बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट तैयार नहीं करा सकी. 

MP जैसा बिल महाराष्ट्र भी लेकर आया है: अजीत पवार

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार जिस तरह का बिल लेकर आई है, ठीक वैसा ही बिल हम भी लाए हैं. बिल को विधानसभा और काउंसिल में भी स्वीकार किया गया है. राज्यपाल उस पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि महाविकास अघाड़ी आने वाले चुनाव में ओबीसी के आरक्षण की मांग पर कायम है.

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'उद्धव सरकार ने आयोग को बजट और स्टाफ नहीं दिया'

बीजेपी नेता और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि राज्य सरकार एक साल तक केंद्र सरकार पर आंकड़ों को लेकर सवाल उठाती रही है. रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक आयोग का गठन किया गया था, जिसे पर्याप्त धन और स्टाफ नहीं दिया गया.

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिपोर्ट को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ट्रिपल टेस्ट पूरा कर एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसके बाद निकाय चुनाव की राह साफ हो गई और अब ओबीसी आरक्षण के तहत निकाय और पंचायत चुनाव होंगे.

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