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पुणे: शहर का ट्रैफिक संभालने के साथ अखाड़े का भी चौधरी है ये एसीपी

ड्यूटी की जिम्मेदारी निभाने के साथ चौधरी अपने कुश्ती के शौक के लिए वक्त निकालने को तड़के साढ़े चार बजे ही बिस्तर छोड़ देते हैं. पहाड़ी पर करीब दो घंटे व्यायाम के बाद चौधरी फिर मामासाहेब मोहल संकुल में कुश्ती के अभ्यास के लिए पसीना बहाते हैं. सुबह 9 बजे घर पहुंच कर नाश्ता करने के बाद चौधरी ड्यूटी के लिए निकल जाते हैं.

पुलिस की ड्यूटी के साथ-साथ अखाड़े में पूरा समय देते हैं विजय चौधरी (फोटो-पंकज) पुलिस की ड्यूटी के साथ-साथ अखाड़े में पूरा समय देते हैं विजय चौधरी (फोटो-पंकज)
पंकज खेळकर
  • पुणे,
  • 31 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 12:07 AM IST
  • एसीपी विजय चौधरी 3 बार ‘महाराष्ट्र केसरी’ भी रहे
  • ’महाराष्ट्र केसरी’ की हैट्रिक लगाने वाले दूसरे पहलवान
  • विजय चौधरी की नजर अब ‘हिंद केसरी’ खिताब पर है

असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (ACP) विजय चौधरी के कंधों पर पुणे महानगर की ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा है. लेकिन इसके अलावा इनकी एक पहचान और भी है. और वो है ‘अखाड़े के चौधरी’ की. जी हां, चौधरी कुश्ती के मैदान में बड़े-बड़े सूरमाओं को चित करने के लिए जाने जाते हैं. 33 वर्षीय चौधरी ने लगातार तीन बार ‘महाराष्ट्र केसरी’ का खिताब अपने नाम किया है. उनसे पहले एक ही और पहलवान ऐसी हैट्रिक लगा सका है.   

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महाराष्ट्र का आला पहलवान रहने से ही चौधरी को संतोष नहीं है. अब उनकी नजर देश में कुश्ती का सबसे बड़ा खिताब ‘हिंद केसरी’ अपने नाम करने पर है. देश में अब तक 58 बार इस प्रतिस्पर्धा का आयोजन हुआ है, जिसमें 11 बार महाराष्ट्र के पहलवानों ने बाजी मारी है. 

अखाड़े में अभ्यास करते विजय चौधरी

ड्यूटी की जिम्मेदारी निभाने के साथ चौधरी अपने कुश्ती के शौक के लिए वक्त निकालने को तड़के साढ़े चार बजे ही बिस्तर छोड़ देते हैं. पहाड़ी पर करीब दो घंटे व्यायाम के बाद चौधरी फिर मामासाहेब मोहल संकुल में कुश्ती के अभ्यास के लिए पसीना बहाते हैं. सुबह 9 बजे घर पहुंच कर नाश्ता करने के बाद चौधरी ड्यूटी के लिए निकल जाते हैं.

ड्यूटी को भी बखूबी अंजाम देते हैं विजय चौधरी

ड्यूटी पर भी अलर्ट

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अपने सहयोगियों के साथ पुणे की ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए वो खुद भी सड़कों पर पैनी नजर रखते देखे जा सकते हैं. दिन की ड्यूटी खत्म होने पर चौधरी फिर एक बार मामा साहेब मोहल संकुल का रुख करते हैं. अखाड़े में फिर शुरू हो जाता है दूसरे पहलवानों के साथ जोर आजमाइश का दौर. 

विजय चौधरी ने आजतक को बताया कि उनका बचपन जलगांव और धूलिया के पास छोटे से गांव सायगाव बगली में बीता. उन्हें बचपन से ही कुश्ती देखना बहुत अच्छा लगता था. फिर उन्होंने कसरत से शरीर को मजबूत कर खुद भी गांव और छोटे कस्बों में कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. पहली बार कुश्ती जीतने पर चौधरी को 50 रुपये का नकद पुरस्कार मिला. जल्द ही उन्होंने दूसरे पहलवानों को चित कर कुश्तियों में कामयाबी हासिल करना शुरू कर दिया. उनकी कामयाबी को देखकर एक रिश्तेदार ने 2008 में पुणे के मामासाहेब मोहल संकुल में जाकर कुश्ती का औपचारिक प्रशिक्षण लेने की सलाह दी.  

2012 में चौधरी ने ‘महाराष्ट्र केसरी’ कुश्ती प्रतियोगिता के फाइनल में नरसिंह यादव का सामना किया. इस मुकाबले में विजय को गंभीर चोट आई और उनका लिगामेंट फट गया. डॉक्टर ने तब चौधरी को कुश्ती लड़ना छोड़ने की सलाह दी. चौधरी इलाज के बाद ठीक हो गए तो कुश्ती से प्रेम उन्हें फिर अखाड़े में ले आया. चौधरी की मेहनत रंग लाई और 2014 में उन्होंने महाराष्ट्र केसरी का खिताब अपने नाम कर लिया. 

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पुणे रूरल पुलिस में पहली पोस्टिंग 
2014, 2015 और 2016 में तीन बार लगातार ‘महाराष्ट्र केसरी’ बनने के बाद चौधरी महाराष्ट्र पुलिस में शामिल हुए. उन्हें पहली पोस्टिंग पुणे रूरल पुलिस में डीएसपी के तौर पर मिली. बाद में उन्हें पुणे सिटी पुलिस में क्राइम ब्रांच में एसीपी के तौर पर नियुक्ति मिली. फिलहाल वे एसीपी ट्रैफिक हैं. 

चौधरी पुलिस की ड्यूटी के लिए दमखम होने को जरूरी मानते हैं. वो खुद कुश्ती में पसीना बहाने के साथ डिपार्टमेंट में इस खेल का शौक रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण भी देते हैं. चौधरी मानते हैं कि खुद की प्रैक्टिस और ड्यूटी की जिम्मेदारी के बीच दूसरों को प्रशिक्षण देना मुश्किल होता है, लेकिन युवा पुलिसकर्मियों का उत्साह देखकर वो इसके लिए वक्त निकाल ही लेते हैं.

युवा पुलिसकर्मी भी चौधरी के जज्बे की तारीफ करते नहीं थकते. वो चौधरी को अपने लिए रोल मॉडल मानते हुए खुद भी कुश्ती में बेहतर दिखाने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं. 

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