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महाराष्ट्र सरकार को कोर्ट की चेतावनी, पुलिस में दो पद ट्रांसजेंडर्स के लिए रखो वरना रोकी जाएगी भर्ती प्रक्रिया

बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को फटकारते हुए स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि अगर सरकार ने नरमी नहीं बरती और कम से कम दो ट्रांसजेंडरों के लिए दो पद खाली नहीं रखे तो अदालत पूरी भर्ती प्रक्रिया को रोक सकती है.

बॉम्बे हाई कोर्ट बॉम्बे हाई कोर्ट
विद्या
  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:42 AM IST

गृह विभाग के तहत ट्रांसजेंडरों के लिए पद निर्मित करने के मामले में  बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकारा है. उन्होंने ट्रांसजेंडरों के लिए दो पद न रखे जाने पर नाराजगी जताई और पूरी भर्ती प्रक्रिया रोक देने की चेतावनी दी. बॉम्बे हाईकोर्ट की एक बेंच ने कहा- सात साल से, यह सरकार गहरी नींद में है. आप अपने काम नहीं करते हैं और पीड़ित लोगों को अदालतों में आना पड़ता है. जब अदालतें आदेश पारित करती हैं, तो हम पर अतिक्रमण का आरोप लगाया जाता है. 

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ट्रांसजेंडर्स ने खटखटाया था एमएटी का दरवाजा

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की पीठ ने गुरुवार को राज्य सरकार को फटकारते हुए स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि अगर सरकार ने नरमी नहीं बरती और कम से कम दो ट्रांसजेंडरों के लिए दो पद खाली नहीं रखे तो अदालत पूरी भर्ती प्रक्रिया को रोक सकती है. दरअसल, पुलिस कांस्टेबल की भर्ती के लिए फार्म न भर पाने पर मामले को लेकर ट्रांसजेंडरों ने महाराष्ट्र प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (एमएटी) का दरवाजा खटखटाया था.

2014 में ही जारी हुआ था आदेश

पीठ ने कहा, "आप नियम नहीं बनाएंगे और आप उन्हें (ट्रांसजेंडर) को शामिल नहीं करेंगे तो हम प्रक्रिया पर रोक लगा देंगे, फिर आपको नियम बनाने के लिए मजबूर किया जाएगा." बता दें कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक पदों को भरने के दौरान ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए कहा था. कई राज्यों ने इसे लागू किया है जबकि महाराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया.

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फार्म में तीसरे लिंग का विकल्प नहीं

पिछले महीने, एक ट्रांसजेंडर ने MAT से  संपर्क किया था जिसने बताया कि वे भर्ती फॉर्म नहीं भर सके क्योंकि तीसरे लिंग का विकल्प उपलब्ध नहीं था. जबकि एमएटी ने राज्य सरकार को  पहले ही यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति फॉर्म भरने में सक्षम हों और उनके पास भर्ती होने का मौका रहे. एमएटी ने यह भी कहा था कि सरकार को ट्रांसजेंडरों के लिए शारीरिक मानक और जांच का मानदंड तय करना चाहिए. हालांकि राज्य ने यह कहते हुए एमएटी के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि उनकी भर्ती प्रक्रिया पहले से ही चल रही है और वे इस समय अन्य लिंग के सदस्यों की भर्ती नहीं कर सकते हैं.

सरकार ने अपनी याचिका में दावा किया था कि ट्रिब्यूनल के निर्देश को लागू करना "बेहद मुश्किल" था क्योंकि राज्य सरकार ने अभी तक ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए विशेष प्रावधानों के संबंध में कोई नीति नहीं बनाई है.

11 राज्य सरकारों ने पहले ही किए हैं आदेश के अनुसार प्रावधान

इधर, ट्रांसजेंडर की ओर से पेश अधिवक्ता क्रांति एलसी ने गुरुवार को कहा कि 11 राज्य सरकारों ने पहले ही शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार प्रावधान किए हैं. इस पर बेंच ने कहा, 'महाराष्ट्र क्यों पीछे रहे? हम चाहते हैं कि महाराष्ट्र भी ऐसा करे.' भगवान हर किसी के लिए दयालु नहीं रहे हैं. हमें दयालु होने की जरूरत है."

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वहीं महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत को बताया कि सरकार ट्रांसजेंडरों के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह व्यावहारिक और कानूनी कठिनाइयों का सामना कर रही है. पीठ ने कुंभकोनी को निर्देश दिया कि वह सरकार से निर्देश ले कि क्या वह मैट से संपर्क करने वाले ट्रांसजेंडरों के लिए दो पदों को खाली रखने और फिर भविष्य की भर्तियों के लिए नियम तैयार करने और इसे शुक्रवार को सुनवाई के लिए पोस्ट करने के लिए तैयार है.

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