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सामना में लेख- किसानों ने ठंड में छुड़ाए सरकार के पसीने, महाराष्ट्र कब दिखाएगा ऐसी एकजुटता?

शिवसेना ने एक बार फिर अपने मुखपत्र के जरिए मोदी सरकार को घेरा है. लेख में किसानों के आंदोलन की तारीफ की गई है, साथ ही पंजाब के कलाकारों को भी किसानों के साथ खड़े होने के लिए शुक्रिया कहा गया है.

दिल्ली की सीमा पर कई दिनों से डटे हैं किसान (PTI) दिल्ली की सीमा पर कई दिनों से डटे हैं किसान (PTI)
सौरभ वक्तानिया
  • मुंबई,
  • 04 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:14 AM IST
  • सामना में किसानों के आंदोलन की तारीफ
  • किसानों ने छुड़ाए सरकार के पसीने: सामना
  • कंगना रनौत पर फिर किया गया तंज

कृषि कानून के खिलाफ पंजाब के किसानों का दिल्ली की सीमा पर आंदोलन जारी है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में इस आंदोलन की तारीफ की गई है. सामना में लिखा गया है कि ठंड में भी किसानों ने मोदी सरकार के पसीने छुड़ा दिए हैं. बीजेपी की आईटी सेल ने आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन आंदोलन तेजी से आगे बढ़ रहा है. सामना में सवाल किया गया कि जैसी एकजुटता आंदोलन के पीछे पंजाब दिखा रहा है, ऐसा महाराष्ट्र कब दिखाएगा?

सामना में लिखा गया कि प्रधानमंत्री मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के एक हाथ में जादू की छड़ी और दूसरे हाथ में चाबुक है, वे किसी को भी झुका सकते हैं. इस गलतफहमी को पंजाब के किसानों ने झूठा साबित कर दिया. पंजाब के लाखों किसानों ने ही मोदी सरकार को नोटिस भेजकर ‘पीछे हटो अन्यथा कुर्सी खाली करो’ का संदेश भेजा है. 

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सरकार पर तंज कसते हुए कहा गया कि लॉकडाउन से आजिज आ चुकी जनता को अयोध्या में राम मंदिर का झुनझुना दिया. परंतु पंजाब के किसानों के सामने उनका कोई भी ‘लॉलीपॉप’ नहीं चला, यह यश पंजाब की एकजुटता में है.

मुंबई को पाक अधिकृत कश्मीर कहनेवाली भाजपा की बकवास करनेवाली अभिनेत्री ने किसान आंदोलन में भाग लेनेवाली एक वृद्ध ‘चाची’ को इस अभिनेत्री ने 100 रुपए रोजाना पर काम करनेवाली ‘शाहीन बाग वाली ‘आंटी’ ठहराया. 

सामना में लिखा गया कि अमित शाह ने बार-बार आंदोलनकारियों से पीछे हटने का आह्वान किया. हम इस आंदोलन की एकजुटता का बार-बार उल्लेख करते हैं क्योंकि एकजुटता ही बड़ी सफलता है.

पंजाब के सभी गायक, कलाकार, खिलाड़ी ने अपने राष्ट्रीय पुरस्कार केंद्र को वापस लौटाने का निर्णय लिया है और भाजपा वाले खिल्ली उड़ाते हैं. यह कोई पुरस्कार वापसी गैंग नहीं है. पद्मश्री, पद्मभूषण, अर्जुन पुरस्कार लौटाकर भी ये लोग किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं. 

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प्रकाश सिंह बादल को लेकर सामना में लिखा कि अब तो अकाली दल के सर्वेसर्वा, वरिष्ठ नेता तथा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी नए कृषि कानून और किसानों के खिलाफ की गई कार्रवाई के निषेध के रूप में ‘पद्मविभूषण’ पुरस्कार लौटा दिया है. हमारा किसान नहीं जिएगा तो यह पुरस्कार छाती पर सजाकर क्या करें?

किसानों की आवाज दिल्लीश्वर नहीं सुनते होंगे तो हमें आपके पुरस्कार नहीं चाहिए. धन्य वो कलाकार, धन्य वो खिलाड़ी! महाराष्ट्र में इस एकजुटता का दर्शन कब होगा? महाराष्ट्र पर ऐसे कई अवसर आए और गए लेकिन पंजाब के खिलाड़ी, कलाकारों की तरह कितने ‘मराठी’ बुद्धिजीवी महाराष्ट्र के सवाल पर एकजुटता के साथ खड़े रहे? एकदम कल ही उस भाजपा समर्थित अभिनेत्री का मामला ले लो.

मुंबई को पाकिस्तान कहने तक का दुस्साहस कर गई. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुंबई में आकर गड़बड़ी करते हैं परंतु पुरस्कार वगैरह वापस लौटाने की बात एक तरफ छोड़ दो, साधारण निषेध के सुर भी किसी ने नहीं निकाले, कहने के लिए कुछ लोगों ने भूमिका अपनाई लेकिन पंजाब जैसी एकजुटता कहीं नहीं दिखी. 

 

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