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महाराष्ट्र के सियासी संग्राम का क्लाइमैक्स शुरू हो चुका है. अलग-अलग शहरों में हो रहे सियासी खेल की फाइनल लड़ाई मुंबई में होनी है. बागी एकनाथ शिंदे शिवसेना छोड़ने को नहीं तैयार है. वो बाला साहेब की बात करते हैं. वहीं, उद्धव के सामने दोहरी चुनौती है. एक ओर सिंहासन बचाना है तो वहीं दूसरी ओर बाला साहेब की विरासत. इन तमाम सियासी अटकलों के बीच शिवसेना ने अपने मुखपत्र ''सामना'' के जरिए बीजेपी पर तीखा हमला बोला है.
सामना में लिखा है कि शिवसेना की स्थापना के बाद राजनीति में 280 सेना उभरकर सामने आईं. अमुक सेना या तमुक सेना वगैरह, लेकिन पिछले 56 वर्षों से टिकी हुई है तो सिर्फ शिवसेना ही. गुवाहाटी में ‘पहाड़, झाड़ी, नदी, होटल’ का मजा लेते हुए जो विधायक बैठे हैं, उन्हें शिवसेना के चमत्कार की जानकारी नहीं है, इसे कैसे मान लिया जाए? अब कोर्टबाजी शुरू हो गई है और ‘होटल, पहाड़, झाड़ियों’ में बैठे विधायकों पर 11 तारीख तक कोई कार्रवाई न करें, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है. यह एक प्रकार की ‘राहत’ ही है. उस राहत का लाभार्थी कौन, इसका खुलासा भविष्य में होगा ही. विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि झिरवल झाड़ी में बैठे विधायकों की अपात्रता के बारे में कोई निर्णय न लें, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है. मतलब विधानसभा का अधिवेशन 11 जुलाई के बाद ही बुलाया जा सकता है. तब तक विधायकों को ‘पहाड़-झाड़ी-होटल’ में ही रहना पड़ेगा.
इन सब परिस्थितियों में भाजपा कहां है?
भाजपा कहें तो सर्वत्र है, लेकिन कहीं भी नहीं! उनका काम नारद-मुनि की तरह चलता है. सुधीर मुनगंटीवार जैसे नेता विजय की दो उंगलियों को नचाते हुए अपनी गाड़ी में घूम रहे हैं. भाजपा अपने मित्रों सहयोगी पक्षों का ‘निवाला’ निगलने पर ही शांत होती है, ये अब झाड़ी में बैठे विधायक और नेताओं को जल्द ही पता चलेगा. इन विधायकों के गुट को महाशक्ति के अजगर ने लपेट लिया है. ये अजगर पूरा बकरा जैसे निगलता है, वैसे ही आगे चलकर इस गुट को भी निगल जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के कल के फैसले के बाद झाड़ी-पहाड़ों के विधायकों के नेता ने प्रतिक्रिया व्यक्त की- ‘यह बालासाहेब ठाकरे, आनंद दिघे के विचारों की विजय है!’
आनंद दिघे एक निष्ठावान, कट्टर शिवसैनिक थे और बालासाहेब के विचार उनकी सांस और ध्येय था. जीवन भर उन्होंने किसी पद की लालसा नहीं रखी. शोषित लोगों के सुख-दुख के साथी थे. इसलिए उनके किस विचार की जीत हुई? गद्दारी करने वालों का विरोध करने वाले शिवसैनिक प्रह्लाद सावंत पर झाड़ी के विधायकों द्वारा किराए पर लाए गए लोगों ने हमला किया, इसे भी ठाकरे-दिघे के विचारों की जीत समझा जाए क्या? शिवसेना पर होने वाले हमलों का करारा जवाब देने के लिए लड़ाई लड़ने वाले संजय राउत पर मौके का फायदा उठाते हुए ‘ईडी’ का समन भेजा गया, इसे भी बालासाहेब ठाकरे के विचारों की जीत मानी जाए क्या? विधायक उस झाड़-झंखाड़ से बोल रहे हैं कि ‘हम शिवसेना में ही हैं. हमने कहां शिवसेना छोड़ी है? राष्ट्रवादी की तकलीफों से ऊब कर हम यहां झाड़-झंकाड़ में आए!’ लेकिन ऐसा बोलने वालों में से अधिकांश लोग राष्ट्रवादी की झाड़ियों से शिवसेना में आए व मंत्री बन गए. अब वे कुछ भी बोलें. शरद पवार को वे नेता मानते ही थे ‘शरद पवार जैसा नेता नहीं होगा’. लेकिन अब उन्हें महाशक्ति के अजगर ने लपेटकर निगल लिया और इसके कारण उनको महाराष्ट्र का झाड़-झंखाड़, शिवसेना नापसंद हो गई. महाविकास आघाड़ी नहीं चाहिए न? फिर आओ यहां. मेरे सामने बैठो, शिवसैनिकों और जनता के मन का संभ्रम दूर करो. किसी के बहकावे की बलि मत चढ़ो. नया खेल खेलेंगे, लेकिन फिर उसी निष्ठा से काम करोगे क्या? राम का नाम लेते हो और रावण का कार्य करते हो! शिवसेना की अयोध्या जलाने ही ये लोग निकले हैं. श्रीराम सर्वशक्तिमान हैं.
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामन्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर।
‘झाड़-झंखाड़’ वाले MLA को गुवाहाटी में ही रहना पड़ेगा
रावण कितना भी बलवान हो फिर भी विजय प्रभु रामचंद्र की ही होती है, ये महत्वपूर्ण है. महाराष्ट्र के मंत्री अपना विभाग छोड़कर, विधायक अपना निर्वाचन क्षेत्र छोड़कर ‘झाड़-झंखाड़’ में बैठे हैं. इसके विरोध में भी न्यायालय में एक याचिका दाखिल हुई है. अब मुख्यमंत्री ने इन मंत्रियों के विभाग वापस ले लिए हैं लेकिन ये विभाग रहित मंत्री अपने पदों से इस्तीफा देते हैं तो कसम है! 11 जुलाई तक इन ‘झाड़-झंखाड़’ वाले विधायकों को गुवाहाटी में ही रहना पड़ेगा और कल महाराष्ट्र में केंद्रीय सुरक्षा लेकर लौटे तो चूहों की तरह बिल में छुपकर रहना पड़ेगा, इस ढंग की चिढ़ और संताप महाराष्ट्रीय लोगों में है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस इस परिस्थिति में मुख्यमंत्री पद की लालसा लेकर बैठे होंगे फिर भी उनको पहले महाराष्ट्र में भड़की हुई आग से सामना करना पड़ेगा. भाजपा कितनी सत्तापिपासु पार्टी है और इसके लिए उसने ‘महाराष्ट्र रक्षक’शिवसेना को तोड़ा इसका काला इतिहास लिखा जाएगा. देवेंद्र फडणवीस का यह कृत्य उन पर ही उल्टा पड़ेगा और भाजपा का तांगा महाराष्ट्र में पलटेगा, ऐसा आज का माहौल है.
राज्यसभा, विधान परिषद गद्दारों की मदद से जीता, लेकिन अंत में लोगों की भावना मुख्य है. शिवसेना से जो टूटे वो टिके नहीं. भुजबल को शरद पवार ने और राणे को भाजपा ने सहारा नहीं दिया होता तो उनका क्या बचा होता? खुद का सत्व और अस्तित्व ये लोग गंवा चुके हैं. हिंदुस्थान को तोड़कर जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया, लेकिन वो देश न रहकर पृथ्वी का एक ‘गर्त’ ही बन गया है. वैसी ही दशा बागी वगैरह कहे जाने-वाले झाड़ी-पहाड़ गुट की होने वाली है. इसीलिए जिनकी आत्मा आज भी जीवित है, उन्हें इस ‘गर्त’ से बाहर निकलना चाहिए और महाराष्ट्र के स्वर्ग में आना चाहिए. गुवाहाटी में ‘झाड़ी-पहाड़-होटल’ वगैरह है लेकिन महाराष्ट्र में शिवराय और बालासाहेब ठाकरे का विचार है. शाहू, फुले, आंबेडकर की नीति है. पहला कहना है कि ‘गर्त’ से बाहर निकलो और दूसरा ये कि भाजपा इस ‘गर्त’ में नहीं कूदे. महाराष्ट्र में भगवा की ही विजय होगी. विचारों की विजय इसे ही कहते हैं...