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बीजेपी जिस रुख पर शरद पवार को घेर रही, उस पर NCP ने क्या कहा?

मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर किसान पिछले 11 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच, पूर्व केंद्रीय कृषि शरद पवार के किसान आंदोलन का समर्थन करने पर सियासी जंग छिड़ गई है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसे विपक्षी दलों को दोहरा रवैया बताया. लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने कहा कि शरद पवार किसानों के लिए हमेशा एमएसपी की गारंटी चाहते रहे हैं.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार (फोटो-PTI) एनसीपी प्रमुख शरद पवार (फोटो-PTI)
साहिल जोशी
  • मुंबई,
  • 08 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 12:25 AM IST
  • बीजेपी ने एक पत्र को लेकर पवार को घेरा
  • एनसीपी बोली- आधी बात बता रही बीजेपी
  • आधी बात छिपा रही बीजेपी- एनसीपी

मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर किसान पिछले 11 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच, पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के किसान आंदोलन का समर्थन करने पर सियासी जंग छिड़ गई है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसे विपक्षी दलों का दोहरा रवैया बताया. लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने कहा कि शरद पवार किसानों के लिए हमेशा एमएसपी की गारंटी चाहते रहे हैं.    

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कहना है कि शरद पवार ने 2010-11 में कृषि मंत्री रहते हुए राज्यों को पत्र लिखा था और APMC एक्ट की वकालत की थी. बीजेपी एक पत्र दिखा रही है जिसे शरद पवार ने 11 अगस्त, 2010 को दिल्ली और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को लिखा था. इस पत्र में कृषि क्षेत्र के विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि के लिए अच्छी तरह से काम करने वाले बाजारों और भारी निवेश की जरूरत का जिक्र किया था. पत्र में उन्होंने उल्लेख किया है कि कैसे निजी क्षेत्र को अब इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए और इसीलिए राज्यों को अपने एपीएमसी अधिनियम में संशोधन करना चाहिए.

नए कानूनों के खिलाफ समर्थन को बीजेपी ने शरद पवार के रुख को यू-टर्न बताया है. बीजेपी अब पूछ रही है कि कृषि अधिनियम में संशोधन करके मोदी सरकार जो कर रही है, वह शरद पवार के पत्र से अलग कैसे है. महाराष्ट्र के बीजेपी नेता भी शरद पवार के पत्र और उनके विचारों को एपीएमसी और इसके कामकाज के संबंध में उद्धृत कर रहे हैं.

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शरद पवार की आत्मकथा का हवाला देते हुए बीजेपी विधायक अतुल भातखलकर ने सोशल मीडिया पर आरोप लगाया है कि एनसीपी प्रमुख का 'नया रुख' कुछ और नहीं बल्कि सियासी अवसरवाद है. उद्धरण में शरद पवार ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि, "किसान जहां अपना प्रोडक्ट बेचना चाहता है उसे अपनी उपज बेचने में सक्षम होना चाहिए.  उसके लिए बाजार समितियों का आधिपत्य टूटना चाहिए." उसी पैरा में वे आगे लिखते हैं कि "जहां जी चाहे कृषि उपज को छोड़कर कोई भी अन्य उत्पाद बेचा जा सकता है तो फिर यह मजबूरी कृषि उपज पर ही क्यों है कि इसे एपीएमसी में बेचा जाना चाहिए. APMC का कॉन्सेप्ट अब अपने समय से आगे निकल चुका है."

दिलचस्प बात यह है कि शरद पवार के खिलाफ बीजेपी मुखर है. क्योंकि एनसीपी प्रमुख पार्टी नेताओं के साथ जल्द ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मिलने वाले हैं. लेकिन अतीत में शरद पवार के खुद के बयान और राज्यसभा में उनकी अनुपस्थिति जब ये संशोधन मोदी सरकार द्वारा लाया गया और चर्चा की जा रही थी, इस मुद्दे पर उनके वास्तविक रुख के बारे में सवाल खड़ा करता है. 

शरद पवार के पत्र पर क्या बोली एनसीपी?

एनसीपी सूत्रों ने कहा कि इस बात से कोई इनकार नहीं है कि शरद पवार खुले बाजार के समर्थक हैं और राज्यों से एपीएमसी कानूनों में संशोधन करने के हिमायती रहे हैं. लेकिन वह हमेशा से यह भी कहते रहे हैं कि यह तभी किया जा सकता है जब किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मिले. 

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उचित कीमत के हिमायती रहे हैं शरद पवार

एनसीपी सूत्रों ने कहा कि बीजेपी आधा अधूरा हवाला देती है. उसी किताब में आगे ये भी शरद पवार ने लिखा है कि एपीएमसी का आधिपत्य टूटना चाहिए लेकिन इस बात की गारंटी भी मिलनी चाहिए कि किसानों को उनके उपज का उचित मूल्य भी मिले. एनसीपी ने कहा कि आज भी किसानों के आंदोलन का मुख्य बिंदु एमएसपी ही है क्योंकि उन्हें डर लग रहा है कि कानून बदलने से अपनी ऊपज पर समर्थन मूल्य खो देंगे. पार्टी ने कहा कि इसके अलावा शरद पवार जो सुझाव दे रहे थे, वे 2007 में केंद्र द्वारा तैयार किए गए एक मसौदा मॉडल कानून के आधार पर थे.

क्या था 2007 का मसौदा

तो नए कृषि कानूनों और 2007 के मसौदे में क्या अंतर है, सूत्रों ने बताया कि 2007 के मसौदे के अनुसार राज्य सरकार के पास विशेष बाजार की घोषणा करने की शक्ति थी जो बाजार समिति के तहत काम करेगी. जबकि नए कानून ने कृषि समितियों को बाजार समितियों से बाहर कर दिया है. 2007 के मसौदे के मुताबिक बाजार समिति के पास विवाद को सुलझाने की शक्ति थी और किसानों का उस में प्रतिनिधित्व था. लेकिन नए कानून के अनुसार ये अधिकार एसडीएम और उसके ऊपर के अधिकारियों के पास है.

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एनसीपी ने कहा कि इसी तरह पहले के मसौदे ने बाजार समिति को कृषि व्यापार के लिए लाइसेंस आवंटित करने का अधिकार दिया था, लेकिन अब केंद्र के पास निजी कंपनियों को लाइसेंस देने का अधिकार है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2007 के मसौदे ने मंडी प्रणाली को काफी मजबूत रखा गया था ताकि वे एमएसपी खरीद कर सकें. लेकिन नए कानून में एपीएमसी का निजी कंपनियों के लिए कोई मतलब नहीं होगा. इसलिए यह आशंका है कि एमएसपी पर खरीद का सिस्टम एपीएमसी में खत्म हो जाएगा. लेकिन शरद पवार हमेशा एपीएमसी पर इस निर्भरता के आलोचक रहे हैं. अब वह सरकार से किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए कह रहे हैं.


 

 

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