
महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार को सत्ता से बेदखल करने के बाद एकनाथ शिंदे गुट एक के बाद एक, उद्धव ठाकरे खेमे को मात देता जा रहा है. महाराष्ट्र विधानसभा में आज होने वाले बहुमत परीक्षण से पहले 3 जुलाई को स्पीकर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राहुल नार्वेकर जीत गए. राहुल नार्वेकर की जीत के बाद शिवसेना ने अब सामना के जरिये तंज किया है.
शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे एक लेख में महाराष्ट्र विधानसभा के नए स्पीकर पर हमला बोला गया है. सामना में लिखा है कि शिंदे गुट के विधायकों की मदद से बीजेपी ने विधानसभा स्पीकर चुनाव जीत लिया है. वर्तमान मुख्यमंत्री की तरह विधानसभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल नार्वेकर एक ऐसे गृहस्थ हैं, जो स्वयं को पहले शिवसैनिक कहा करते थे. शिवसेना, राष्ट्रवादी और अब बीजेपी का सफर करते हुए विधानसभा के स्पीकर तक पहुंच गए. उन्हें पता होता है कि कब और कहां पैर रखना है. बीजेपी में इतना साहस और क्षमता नहीं है कि शिवसेना या महाराष्ट्र की अस्मिता को परास्त कर सके.
स्पीकर चुनाव में बीजेपी की जीत से हैरान नहीं
शिवसेना के मुखपत्र सामना में बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा गया है कि पार्टी में तोड़फोड़ करके उनमें से ही किसी एक को खिलाफ खड़ा कर दिया जाता है. इसलिए बीजेपी ने विधानसभा स्पीकर का चुनाव जीत लिया. इस पर हमारे हैरान होने की तो कोई वजह नहीं है. राहुल नार्वेकर को 164 विधायकों ने वोट दिया. शिवसेना के राजन साल्वी के पक्ष में 107 वोट पड़े. शिंदे गुट के बीजेपी समर्थित विधायकों ने पार्टी के व्हिप का पालन नहीं किया इसलिए इस संबंध में उनके खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई शुरू की जाएगी.
स्पीकर को निर्देश देकर मनचाहे फैसले लेगी बीजेपी
शिवसेना ने सामना के जरिये कहा है कि बीजेपी ने कानून के जानकार व्यक्ति को विधानसभा स्पीकर के पद पर इसीलिए बैठाया है कि अयोग्यता की कार्रवाई को टाला जा सके. स्पीकर को निर्देश देकर उन्हें जो चाहिए वो निर्णय लिए जाएंगे. शिंदे गुट के 16 विधायकों के पात्र-अपात्र होने से संबंधित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन होने के दौरान इन विधायकों को मतदान में हिस्सा लेने की अनुमति देना गैरकानूनी है. उद्धव ठाकरे के इस्तीफा देने के बाद से महाराष्ट्र में कानून का राज नहीं बचा है.
कसाब की सुरक्षा में भी तैनात नहीं थी इतनी पुलिस
शिवसेना के मुखपत्र में तंज करते हुए कहा गया है कि सूरत, गुवाहाटी, गोवा और मुंबई में लंबा प्रवास करके शिंदे गुट के विधायक मुंबई हवाई अड्डे पर पहुंचे. तब सुरक्षा के लिए हवाई अड्डे से कुलाबा स्थित उनके होटल तक सड़क के दोनों तरफ केंद्रीय बलों के जवान हाथ में बंदूक लिए खड़े थे. सिर्फ वायुसेना और फौज का इस्तेमाल करना ही शेष रह गया था. इतनी पुलिस कसाब की सुरक्षा के लिए भी तैनात नहीं थी लेकिन महाराष्ट्र शहीद स्वाभिमानी ओंबले का है. शिंदे गुट के विधायकों को ये भूलना नहीं चाहिए. विधायक आए, भगवा साफा पहनकर बाला साहेब की प्रतिमा को प्रणाम करते हुए निष्ठा का नाटक किया लेकिन उन सभी के चेहरे लटके थे. उनका पाप उनके मन को कचोट रहा था.
विधानसभा स्पीकर का चुनाव अवैध
शिवसेना के मुखपत्र में कहा गया है कि पार्टी के प्रमुख का स्मारक चेतना और ऊर्जा का सूर्य है. ये भगवाधारी विधायक जुगनू भी नहीं थे. शिवसेना में रहने के दौरान क्या वो तेज, क्या वो रुआब, क्या वो हिम्मत, क्या वो सम्मान, क्या वो स्वाभिमान, ऐसा बहुत कुछ था. ‘कौन आया, रे कौन आया, शिवसेना का बाघ आया’ ऐसी गर्जना की जाती थी. वैसा कोई दृश्य देखने को नहीं मिला. कान टोपी की तर्ज पर भगवा साफा पहनने से कोई ‘मावला’ बन सकता है क्या? ये विधायक केंद्रीय सुरक्षा में आ गए और उन्होंने विधानसभा का अध्यक्ष चुन लिया. यह चुनाव अवैध है. यह चुनाव लोकतंत्र और नैतिकता के अनुरूप नहीं है.
अनैतिक कार्य में राज्यपाल शामिल
शिवसेना ने राज्यपाल पर भी निशाना साधते हुए अपने मुखपत्र में कहा है कि इस अनैतिक कार्य में हमारे महामहिम राज्यपाल का शामिल होने पर हैरानी नहीं होनी चाहिए. इससे पहले महाविकास अघाड़ी ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए राज्यपाल से अनुमति मांगी थी लेकिन 15 मार्च को मामला न्यायालय में विचाराधीन होने की बात अनुमति देने से इनकार कर दिया गया. फिर आघाड़ी के लिए जो नियम लगाए गए, वही इस बार क्यों नहीं लगाए जाने चाहिए? हालांकि, इस सवाल का जवाब मिलने की संभावना नहीं ही है. एकनाथ शिंदे समेत उनके गुट के 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की नोटिस पहले ही जारी हो चुकी है. मामला विचाराधीन है ही न?
राज्यपाल के हाथ में संविधान की पुस्तक किसकी
शिवसेना ने ये भी कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव ‘हेड काउंट’ पद्धति से किया गया लेकिन एमवीए को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी. उस समय उन्हें गुप्त मतदान चाहिए था. ऐसे में राज्यपाल के हाथ में मौजूद संविधान की पुस्तक डॉक्टर आंबेडकर की है या किसी और की? उनके हाथ में न्याय का तराजू सत्य का है या सूरत के बाजार का? यह सवाल महाराष्ट्र की जनता के मन में उठ रहा है. महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार के जाने का, हिंदू हृदय सम्राट के विचारों की सरकार के बदलने से हमारे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी सबसे ज्यादा खुश हैं. उनके चेहरे की खुशी ऐसी है, जैसी क्रांतिकारी भगत सिंह को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी देने के बाद अंग्रेजों को हुई थी.
बंद हो गई होगी राजभवन में पेड़े की दुकान
शिवसेना ने ये सवाल भी उठाया है कि नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री शिंदे को राज्यपाल ने उसी खुशी और उत्साह के साथ बधाई दी. उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे तब उन्हें ये खुशी नहीं मिली थी. राजभवन परिसर स्थित पेड़े की दुकान बंद हो गई होगी. शरद पवार की बात सही है. शरद पवार ने कहा था कि मैं अब तक चार बार मुख्यमंत्री रह चुका हूं लेकिन राज्यपाल ने एक बार भी पेड़ा नहीं खिलाया और ना ही कभी बुके दिया. राज्यपाल तटस्थ और संविधान के संरक्षक होते हैं. मुख्यमंत्री कौन है या वह किस पार्टी से आए या गए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन पिछले दो-चार साल में महाराष्ट्र के राजभवन में एक अलग ही तस्वीर नजर आ रही है.
ऐरे-गैरे को लाकर कोई भी चुनाव जीत सकते हैं
शिवसेना के मुखपत्र में कहा गया है कि ‘ठाकरे सरकार’ के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जब कुछ मंत्रियों ने शपथ की शुरुआत ‘शाहू, फुले और आंबेडकर का नाम लेकर की तो राज्यपाल भगत सिंह नाराज हो गए. राज्यपाल ने ये कहते हुए मंच पर ही फटकार लगा दी थी कि शपथ संविधान के अनुरूप नहीं है. संविधान और शपथ की वो रक्षा इस खेप के मामले में नजर नहीं आई. संविधान के तथाकथित संरक्षक ही ऐसे दोयम दर्जे का व्यवहार कर रहे हैं तो अयोग्य विधानसभा सदस्य ही क्या, बाहरी किसी भी ऐरे-गैरे को अंदर लाकर ये लोग विधानमंडल में कोई भी प्रस्ताव पारित करा सकते हैं, चुनाव जीत सकते हैं. सिर्फ मुंह दबाए गए सिर ही तो गिनने हैं.
महाराष्ट्र में कभी नहीं हुई ऐसी राजनीति
शिवसेना के मुखपत्र सामना में कहा गया है कि ऐसा व्यवहार और राजनीति महाराष्ट्र में कभी नहीं हुई. शिवरात्रि को साक्षी मानकर बाला साहेब ठाकरे की शपथ लेकर यदि कोई यह पाप करता होगा तो भारत माता उसे माफ नहीं करेंगी. अब सवाल उन 12 मनोनित विधान परिषद सदस्यों का भी है जो पिछले ढाई साल से राज्यपाल की मेज पर विचाराधीन है. अब नई सरकार आई है इसलिए उस फाइल के बदले नई फाइल लाई जाएगी और चौबीस घंटे के भीतर राज्यपाल के हस्ताक्षर से इसे मंजूरी भी मिल जाएगी. पेड़े खिलाने का कार्यक्रम भी बार-बार दोहराया जाएगा. समय बहुत ही मुश्किलों भरा आया है, यह सत्य है. यह अंधकार का समय भी बीत जाएगा.