
शिवसेना ने किसान आन्दोलन को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में, केंद्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर किसानों पर चलाने का आरोप लगाया है. शिवसेना ने लिखा है, ''सर्वोच्च न्यायालय ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी है, फिर भी किसान आंदोलन पर अड़े हुए हैं, अब सरकार की ओर से कहा जाएगा, ‘देखो, किसानों की अकड़, सर्वोच्च न्यायालय की बात भी नहीं मानते’. सवाल सर्वोच्च न्यायालय के मान-सम्मान का नहीं है बल्कि देश की कृषि संबंधी नीति का है. किसानों की मांग है कि कृषि कानूनों को रद्द करो. निर्णय केंद्र सरकार को लेना है. सरकार ने न्यायालय के कंधे पर बंदूक रखकर किसानों पर गोली चलाई है लेकिन किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.''
शिवसेना ने आगे कहा है, ''सरकार सर्वोच्च न्यायालय को आगे करके किसानों का आंदोलन समाप्त कर रही है एक बार सिंघु बॉर्डर से किसान अगर अपने घर लौट गया तो सरकार कृषि कानून के स्थगन को हटाकर किसानों की नाकाबंदी कर डालेगी, इसलिए जो कुछ होगा, वह अभी हो जाए.''
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''किसान संगठनों और सरकार के बीच जारी चर्चा रोज असफल साबित हो रही है. किसानों को कृषि कानून चाहिए ही नहीं और सरकार की ओर से चर्चा के लिए आनेवाले प्रतिनिधियों को कानून रद्द करने का अधिकार ही नहीं है. किसानों के इस डर को समझने की जरूरत है''
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई चार सदस्यों की समिति पर शिवसेना ने कहा, '' सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों से चर्चा करने के लिए चार सदस्यों की नियुक्ति की है. ये चार सदस्य कल तक कृषि कानूनों की वकालत कर रहे थे, इसलिए किसान संगठनों ने चारों सदस्यों को झिड़क दिया है.''
किसान आन्दोलन में खालिस्तानियों के घुस आने की बात पर शिवसेना ने कहा है, ''सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में कहा गया कि आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस गए हैं! सरकार का यह बयान आश्चर्यजनक है. आंदोलनकारी सरकार की बात नहीं सुन रहे, इसलिए उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानी साबित करके क्या हासिल करने वाले हो? अगर इस आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस आए हैं तो ये भी सरकार की असफलता है. सरकार इस आंदोलन पर देशद्रोह का रंग चढ़ाकर राजनीति करना चाहती है.''
सामना में आगे लिखा है, ''अब तक 60-65 किसानों ने आंदोलन में बलिदान दे दिया है. आजादी के बाद पहली बार इतना कठोर और अनुशासित आंदोलन हुआ है. इस आंदोलन, किसानों की हिम्मत और जिद का प्रधानमंत्री मोदी को स्वागत करना चाहिए. कृषि कानून रद्द करके किसानों का सम्मान करना चाहिए. मोदी आज जितने हैं, उससे भी बड़े हो जाएंगे. मोदी, बड़े बनो!''