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सामना में शिवसेना का वार- किसानों के आंदोलन की धार के बीच पेट्रोल के दाम में मार

किसान आंदोलन के बीच देश में पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ रहे हैं. इस मसले पर अब शिवसेना ने सरकार पर निशाना साधा है और कहा है कि दोनों ही मुद्दों पर केंद्र कुछ नहीं कर रहा है.

पेट्रोल के दाम के मसले पर विरोध जारी पेट्रोल के दाम के मसले पर विरोध जारी
सौरभ वक्तानिया
  • मुंबई,
  • 14 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:21 AM IST
  • शिवसेना का मुखपत्र सामना में वार
  • ‘पेट्रोल की कीमतों पर कुछ करे सरकार’

कोरोना संकट और अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के बीच देश में पेट्रोल के दामों में फिर आग लगी है. लगातार दाम बढ़ते जा रहे हैं और अब सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए इस मसले को उठाया है और केंद्र सरकार पर सवालों की बौछार की है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र में लिखा कि कोरोना पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार, प्रशासन के साथ-साथ जनता ने भी बराबरी की जिम्मेदारी निभाई, पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि पर नियंत्रण सिर्फ सरकार की ही जिम्मेदारी है.

शिवसेना ने लिखा कि जिस किसान कानून को लेकर देश के कृषक वर्ग में आग लगी है, उस बारे में सरकार कुछ भी नहीं कहती है. उल्टे आंदोलन और आंदोलनरत किसानों पर कीचड़ उछालने का प्रयास चल रहा है. पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि के संदर्भ में भी ‘सरकार कुछ कहती नहीं है और दर वृद्धि भी रुकती नहीं है’, ऐसा ही चल रहा है. इसलिए वहां किसान आंदोलन की ‘धार’ तेज हो रही है और यहां ईंधन वृद्धि की मार पड़ रही है. पहले ही बढ़ी हुई महंगाई में तेल डाला जा रहा है. दिल्ली में किसान आंदोलन का दावानल भड़क उठा है. देश में ईंधन दर वृद्धि की ‘आग तेज’ हो गई है. इस ‘दावानल’ और ‘आग’ को समय रहते शांत करना केंद्र सरकार के ही हित में है. सिर्फ इसका एहसास उन्हें होगा क्या? यह वास्तविक सवाल है.

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‘लॉकडाउन काल से बढ़ रहा दाम’
लेख में लिखा गया है कि हमारे देश में ईंधन की दरों में वृद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में होने वाली वृद्धि केवल निमित्त होती है. फिलहाल यह भाव बढ़ा है, ठीक है लेकिन जून में लॉकडाउन काल के दौरान सब कुछ स्थिर रहने के बावजूद पेट्रोल-डीजल की दरों ने 90 का आंकड़ा पार किया था. अब तो सरकार वैश्विक दर वृद्धि की ढाल आगे करके इन दर वृद्धि के मामलों में हाथ ऊपर करेगी, यह स्पष्ट है. 

शिवसेना ने कहा कि सरकारी आय के मुख्य स्रोत के रूप में ईंधन की दर ऊंची ही रखी जाए, यह कोई लोक कल्याणकारी काम-काज के लक्षण नहीं हैं. लोगों की जेब खाली करके सरकारी तिजोरी भरनी है, यही अर्थनीति विगत कुछ वर्षों से चल रही है, इसलिए ईंधन दर वृद्धि का बेलगाम घोड़ा सरपट दौड़ रहा है. 

‘रोजगार की चिंता के बीच जेब पर भार’
सामना में लिखा गया है कि पहले ही कोरोना और लॉकडाउन के कारण आम आदमी की आर्थिक स्थिति नाजुक हो गई है. बेरोजगारी बढ़ी है, जो हैं वो रोजगार भी डूब रहे हैं, जिनकी नौकरियां सलामत हैं, उनमें से कई लोगों को कम पगार में काम करना पड़ रहा है. हाथ के भरोसे पेट भरनेवालों की तो अवस्था और भी दयनीय है. अनलॉक प्रक्रिया और कोरोना के कुछ प्रमाण में कम हुए प्रादुर्भाव के कारण व्यवहार शुरू हो रहे हैं, इसलिए अर्थव्यवस्था की और दैनिक व्यवहार की गाड़ी धीरे-धीरे आगे सरकने लगी है लेकिन उसी समय र्इंधन दर वृद्धि का हथौड़ा जैसे-तैसे शुरू हुए मध्यमवर्गीय, कनिष्ठ मध्यमवर्गीय की रोजी-रोटी पर चला है. 

शिवसेना ने अपने मुखपत्र में कहा कि वैश्विक बाजार की ईंधन दर वृद्धि हमारी सरकार के नियंत्रण में नहीं है, यह सत्य ही है परंतु देश के अंदर दर वृद्धि को रोकना तो आपके हाथ में है ना? ईंधन पर जो अनाप-शनाप कर लादे गए हैं और उनमें से जो र्इंधन दर को ‘गुब्बारा’ बनाकर रखनेवाले हैं, उन्हें तो कम-से-कम वर्तमान कठिन परिस्थितियों में कम किया जा सकता है या नहीं? 

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