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सिर्फ चेहरा बदला या मिजाज भी? शिंदे की शिवसेना उद्धव से कितनी अलग होगी

अब शिंदे की शिवसेना में कितने परिवर्तन होते दिखते हैं, ये तो आने वाले दिनों में साफ होगा, लेकिन कुछ संकेत जरूर मिल गए हैं. शिंदे समर्थक दावा कर रहे हैं कि अब जो शिवसेना काम करने वाली है, उसमें लोकतंत्र ज्यादा रहेगा, सभी को बोलने के समान अवसर मिलेंगे और पारदर्शिता भी ज्यादा बढ़ाई जाएगी.

सीएम एकनाथ शिंदे सीएम एकनाथ शिंदे
ऋत्विक भालेकर
  • मुंबई,
  • 23 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:04 AM IST

भारत की राजनीति में ऐसा कम ही बार हुआ है कि पूरी की पूरी पार्टी ही एक हाथ से किसी दूसरे के हाथ में चली जाए. जो कम होता था, महाराष्ट्र की राजनीति ने इसे करके दिखा दिया. शिवसेना में पहले दो फाड़ हुई, फिर बगावत हुई, सत्ता परिवर्तन भी हो गया और अब एकनाथ शिंदे ही पार्टी में सबकुछ बन गए हैं. उद्धव ने सीएम कुर्सी भी गंवाई है, पार्टी भी हाथ से निकल गई और चुनाव चिन्ह भी पुराना वाला नहीं मिला है. ऐसे में अब शिवसेना में सबकुछ बदल चुका है. लीड करने वाला कोई और है, लेकिन क्या सिर्फ चेहरा बदला है या फिर मिजाज में भी कोई फर्क आया है? क्या शिंदे की शिवसेना, उद्धव की शिवसेना से अलग रहने वाली है? क्या कोई बड़े परिवर्तन देखने को मिलेंगे?

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अब शिंदे की शिवसेना में कितने परिवर्तन होते दिखते हैं, ये तो आने वाले दिनों में साफ होगा, लेकिन कुछ संकेत जरूर मिल गए हैं. शिंदे समर्थक दावा कर रहे हैं कि अब जो शिवसेना काम करने वाली है, उसमें लोकतंत्र ज्यादा रहेगा, सभी को बोलने के समान अवसर मिलेंगे और पारदर्शिता भी ज्यादा बढ़ाई जाएगी. असल में उद्धव जब शिवसेना के पार्टी चीफ थे, उस समय 2018 में पार्टी के संविधान में कुछ बदलाव किए गए थे. उन्हीं बदलावों इस बार चुनाव आयोग की सुनवाई के दौरान विरोध किया जा रहा था. चुनाव आयोग ने भी इस बात को माना है कि जो बदलाव 2018 में किए गए, उससे लोकतंत्र पार्टी में और ज्यादा कम हो जाएगा, विरोध वाली आवाजें भी कमजोर होंगी.

वैसे शिवसेना का जो संविधान है, उसमें पार्टी चीफ कैसे नियुक्त किया जाए, इस बारे में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है. नेशनल एग्जीक्यटिव और रीप्रेसेंटेटिव एसेंबली के जरिए पार्टी चीफ का चयन किया जाता है. बड़ी बात ये है कि जब तक बालासाहेब ठाकरे थे, तब उन्हें शिवसेना चीफ कहा जाता था. लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी को लगा कि शिवसेना चीफ कोई और नहीं हो सकता, ऐसे में पार्टी चीफ के नाम से एक नई पोस्ट निकाली गई और बालासाहेब के बाद उद्धव को वो पद दिया गया. लेकिन जब उद्धव का चयन हुआ, तब पार्टी में इसे लेकर किसी से मंथन नहीं हुआ था, नेशनल एग्जीक्यटिव के साथ भी चर्चा नहीं की गई.

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अब कहा ये जा रहा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना के पार्टी चीफ जरूर बने हैं, लेकिन उन्हें तय प्रक्रिया के तहत नेशनल एग्जीक्यटिव और रीप्रेसेंटेटिव एसेंबली ने चुना है. वैसे शिवसेना के संविधान में एक परिवर्तन जरूर हुआ है, पहले जो भी पार्टी चीफ होता था, वो किसी भी शख्स को किसी भी पद से हटा सकता था. अब शिंदे वाली शिवसेना में भी ऐसा होगा, लेकिन फर्क ये रहेगा कि अब किसी को पार्टी में निकालने से पहले अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाएगा. एक अनुशासनात्मक समिति का गठन कर दिया गया है. 

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