
महाराष्ट्र में सियासी संकट के बाद भी एकनाथ शिंदे और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच शह-मात का खेल जारी है. एकनाथ शिंदे शिवसेना के विधायकों को अपने साथ लेकर गुवाहटी में कैंप किए हुए हैं और अब मुंबई वापसी के लिए सियासी जोड़तोड़ बैठाने में जुटे हैं. एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी के अध्यक्ष राज ठाकरे से फोन पर बात की है, जिसके चलते शिवसेना के बागी विधायकों के एमएनएस में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उद्धव के खिलाफ शिंदे का सियासी हथियार बनेंगे राज ठाकरे?
एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के दो तिहाई यानी 37 विधायकों का समर्थन होने के बाद भी विधानसभा में अलग पार्टी की मान्यता मिलना आसान नहीं है. वहीं, शिवसेना के 16 बागी विधायक, जो शिंदे गुट के हैं, उन्हें डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल ने नोटिस जारी किया है. ऐसे में शिंदे के साथ अपने गुट के 16 विधायकों को बचाने के लिए रास्ता तलाशना होगा. एकनाथ शिंदे के पास सबसे आसान रास्ता खुद का किसी दल में विलय करना है. यही वजह है कि शिंदे और राज ठाकरे के बीच फोन पर हुई बातचीत के बाद शिवसेना विधायकों के एमएनएस में शामिल संभावना देखी जा रही है.
एकनाथ शिंदे ने किया राज ठाकरे को फोन
बता दें कि दो दिन पहले एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के बीच फोन पर बातचीत हुई थी. हालांकि, राज ठाकरे इस समय अस्पताल में भर्ती हैं. उनकी एक सर्जरी हुई है. वे रिकवर हो रहे हैं. इसी दौरान एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे को फोन किया था. महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट ते बीच एकनाथ शिंदे का राज ठाकरे को फोन करना, इस पर सबका ध्यान आकर्षित होना स्वभाविक है.
एक तरफ उद्धव ठाकरे पर एकनाथ शिंदे सीधे वार कर रहे हैं और हिंदुत्व सहित उन्हीं मुद्दे को लेकर घेर रहे हैं, जो पिछले दिनों राज ठाकरे ने उठाए थे. वहीं, बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने भी उन्हीं तमाम मुद्दों को लेकर सीएम उद्धव ठाकरे की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे. राणे के बाद ही राज ठाकरे और अब शिंदे ये मुद्दे उठाने लगे हैं.
वहीं, महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच अब चर्चा इस बात पर भी काफी हो रही है कि अदालत में अगर शिंदे गुट को असली शिवसेना का हिस्सा नहीं माना जाता है तो बागी विधायकों को किसी पार्टी में मर्ज करना होगा. ऐसी सूरत में उनके पास क्या सियासी ऑप्शन्स हो सकते हैं?
क्या बीजेपी बनेगी विकल्प?
शिवेसना के बागी विधायकों के पास बीजेपी भी विकल्प हो सकती है. शिंदे गुट का पहले से ही कहना है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी के साथ जाना चाहिए. ऐसे में बीजेपी एक ऑप्शन जरूर है, लेकिन कहा जा रहा है कि बीजेपी के साथ मर्ज होने के लिए कई विधायक तैयार नहीं हैं. ऐसी स्थिति में वो पार्टी तलाश करनी है, जिसके जरिए ये साबित करना है कि वो बाला साहेब के आदर्शों पर आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में एमएनएस उनके लिए सियासी विकल्प के तौर पर काम आ सकती है.
राज ठाकरे और एकनाथ शिंदे की बातचीत को इस नजर से भी देखा जा रहा है. एमएनएस का भले ही विधानसभा में एक विधायक है, लेकिन पार्टी लगभग पूरे महाराष्ट्र में स्थापित है. ऐसे में किसी अन्य दल के साथ विलय की जगह शिंदे गुट के लिए एमएनएस सबसे सटीक पार्टी हो सकती है. एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे दोनों ही बाला साहेब की विचारधारा से प्रभावित हैं और उनकी तरह ही कट्टर हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं.
हालांकि, देखा जाए तो बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को सपोर्ट किया है, जिसमें बागी विधायकों को गुवाहाटी भेजना, चार्टर्ड प्लेन अरेंज करना, इन सारी चीजों को देखते हुए राज ठाकरे का सियासी करियर बनाने के लिए बीजेपी इतनी बड़ी बगावत करवाएगी, ये बात थोड़ा मुश्किल लगती है. लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव हो सकता है, उसे देखते हुए चर्चा काफी जोरदार चल रही है.
उद्धव ठाकरे के साथ एक तरफ एकनाथ शिंदे के संबंध पूरी तरीके से खराब होते जा रहे हैं जबकि मनसे चीफ राज ठाकरे के साथ उनके संबंध काफी ठीक हैं. यही बात इस पूरी बातचीत से निकलकर सामने आ रही है. आखिर में ये संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला रहता है?
एकनाथ शिंदे लगातार कह रहे हैं कि शिवसेना विधायक दल के असली नेता वो ही हैं. उनके साथ सीएम उद्धव ठाकरे से ज्यादा शिवसेना के विधायक हैं. ये बात अगर कोर्ट में मान ली जाती है तब फिर मर्ज होने की बात का सवाल नहीं उठता है. वरना निश्चित तौर पर विलय करने के विकल्प पर विचार किया जा सकता है. ऐसे में माना जा रहा है कि शिंदे गुट को मनसे में जोड़ बीजेपी अपने प्लान को अमलीजामा पहना सकती है?