
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को असली शिवसेना के मुद्दे पर सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत से कई अहम टिप्पणियां सामने आईं. सुनवाई के दौरान सवाल उठा, क्या एक फैसला ना होता तो शिंदे अभी महाराष्ट्र के सीएम ना होते? क्या महाराष्ट्र में सत्ता के अलट-पलट वाले संकट के बीच राज्यपाल ने अपनी शक्तियों का सही से उपयोग नहीं किया? क्या महाराष्ट्र में सत्ता के सबसे बड़े सियासी संकट के दौरान राज्यपाल की भूमिका चिंतनीय रही? क्या महाराष्ट्र में सत्ता के उलटपलट के दौरान राज्यपाल ने विश्वास मत साबित करने को कहकर गलत किया था? क्या महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से शिंदे के पास सीएम की कुर्सी जाने के दौरान राज्यपाल ने अपनी शक्ति का प्रयोग सावधानी से नहीं किया?
ये कुछ सवाल हैं जो कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने निकल कर आए. दरअसल महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना के खिलाफ शिंदे गुट की बगावत के बाद विश्वास मत सदन में साबित करने को कहा था. इसी पर सवाल उठ रहे हैं. शिवसेना असली कौन के विवाद में सुप्रीम कोर्ट में चलती सुनवाई के दौरान राज्यपाल रहे कोश्यारी पर बड़ी तल्ख टिप्पणी आई हैं.
राज्यपाल ने ठीक से नहीं किया अपनी शक्तियों का इस्तेमाल!
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि राज्यपाल को उस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कहना चाहिए जहां उनके एक्शन से एक खास परिणाम निकले. कोर्ट ने पूछा क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं, क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन-संपत्ति को खतरा है? क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था?
'राज्यपाल को पूछना चाहिए था ये सवाल'
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ की ओर से कहा गया कि किसी सरकार को गिराने में राज्यपाल स्वेच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते हैं. राज्यपाल को विश्वास मत बुलाने से पहले खुद से पूछना था कि तीन साल तक सरकार में साथ रहे विधायक अब क्यों अलग हो रहे हैं. अदालत ने कहा, राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है. राज्यपाल सिर्फ इसलिए विश्वास मत साबित करने को नहीं कह सकते क्योंकि किसी पार्टी के अंदर मतभेद है. पीठ ने कहा, जब तक गठबंधन में संख्या समान है, राज्यपाल का वहां कोई काम नहीं बनता है.
गौरतलब है कि राज्यपाल रहे भगत सिंह कोश्यारी तो अब खुद ही पद छोड़ चुके हैं. एकनाथ शिंदे भी मुख्यमंत्री बन चुके हैं. चुनाव आयोग भी शिंदे गुट को असली शिवसेना बताकर सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा दाखिल कर चुका है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अभी जारी है और फैसला आना बाकी है. सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना पर अधिकार को लेकर फैसला आना अभी बाकी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तत्कालान राज्यपाल की भूमिका पर चिंता जताते हुए की गईं ये टिप्पणियां काफी अहम हैं.
शिवसेना के अधिकार को लेकर कानूनी लड़ाई
चुनाव आयोग पहले ही शिवसेना को शिंदे गुट के नाम कर चुका है. उद्धव ठाकरे इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. अदालत में जब यह मुद्दा उठा तो चुनाव आयोग ने भी हलफनामा दाखिल किया, जिनमें कि चुनाव आयोग ने उद्धव के तमाम आरोपों को निराधार बताया. सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने कहा कि एकनाथ शिंदे को चुनाव चिन्ह कानून के हिसाब से दिया गया था. शिंदे के पास चुनाव चिन्ह जाना उचित था. उद्धव जो आरोप लगा रहे हैं कि फैसला लेते वक्त हम निष्पक्ष नहीं थे, ये बात निराधार है. संवैधानिक स्तर पर ये फैसला हुआ है, प्रशासनिक स्तर पर नहीं. चुनाव आयोग ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस मामले में उन्हें बतौर एक पार्टी कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता है.
चुनाव आयोग ने किस आधार पर लिया फैसला?
बता दें कि अपने 78 पेज के फैसले में निर्वाचन आयोग ने कहा था कि विधान मंडल के सदन से लेकर संगठन तक में बहुमत शिंदे गुट के ही पास दिखा है. आयोग के सामने दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे और उनकी पुष्टि के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किए थे. एकनाथ शिंदे गुट के पास एकीकृत शिवसेना के टिकट पर जीत कर आए कुल 55 विजयी विधायकों में से 40 आमदार यानी विधायक थे. पार्टी में कुल 47,82,440 वोटों में से 76 फीसदी यानी 36,57,327 वोटों के दस्तावेज शिंदे गुट ने अपने पक्ष में पेश कर दिए थे. इसी वजह से चुनाव आयोग ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया.