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भाई अजित पवार की बगावत से बढ़ी सुप्रिया सुले की टेंशन, अब इस चुनौती से होगा सामना

बारामती लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. यानी यहां 6 विधायक हैं. इसमें से केवल 2 एनसीपी के हैं. एक हैं अजित पवार और दूसरे हैं इंदापुर के विधायक दत्ता भरणे. फिलहाल दत्ता भरणे अजित पवार के खेमे में हैं.

अजित पवार की बगावत के बाद सुप्रिया सुले के लिए बारामती सीट बचाना मुश्किल हो सकता है अजित पवार की बगावत के बाद सुप्रिया सुले के लिए बारामती सीट बचाना मुश्किल हो सकता है
अभिजीत करंडे
  • बारामती,
  • 06 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:28 PM IST

अजित पवार ने चाचा शरद पवार से बगावत कर दी है. वह अपने खेमे के नेताओं को लेकर अलग हो गए हैं. एनसीपी अब दो धड़ों में बंट चुकी है. अजित खेमा और शरद पवार खेमा. लेकिन इस सियासी उठापटक ने आगामी लोकसभा चुनाव में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर दी है. माना जा रहा है कि अगले चुनाव में वोटों के बंटवारे के कारण इस सीट को आसानी से जीतना मुश्किल हो सकता है.

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बारामती लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. यानी यहां 6 विधायक हैं. इसमें से केवल 2 एनसीपी के हैं. एक हैं अजित पवार और दूसरे हैं इंदापुर के विधायक दत्ता भरणे. फिलहाल दत्ता भरणे अजित पवार के खेमे में हैं. जबकि बाकी 4 में से 2 बीजेपी के और बाकी 2 कांग्रेस के विधायक हैं. बीजेपी के भीमराव तपकिर खड़कवासला सीट से आते हैं, जबकि राहुल कुल दौंड विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. वहीं पुरंदर सीट से कांग्रेस के संजय जगताप और भोर विधानसभा क्षेत्र से संग्राम थोपटे विधायक हैं.


 
बीजेपी का बारामती पर है फोकस

दरअसल, बीजेपी ने महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में 45 से ज्यादा सीटें जीतने की प्लानिंग तैयार की है. इसके लिए पार्टी ने कुछ हाई प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो कि पिछले चुनाव तक उनकी पहुंच से बाहर थे. इसमें बारामती एक प्रमुख सीट है ,जहां बीजेपी लंबे समय से फोकस कर रही है. यहां तक कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य केंद्रीय नेताओं ने हाल ही में कई बार बारामती क्षेत्र का दौरा किया है. उन्होंने बीजेपी की नीतियों को किसानों, महिलाओं और युवाओं तक पहुंचाया है. इतना ही नहीं, बीजेपी के नेता बारामती लोकसभा सीट के डॉक्टरों, शिक्षकों और इंजीनियरों के साथ भी बैठक कर रहे हैं. 1967 से बारामती विधानसभा सीट पवार परिवार के पास है. जबकि 1991 से बारामती लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र पवार परिवार का अभेद्य गढ़ है.

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कभी बारामती सीट अजित ने चाचा शरद पवार के लिए छोड़ी थी

1991 में अजित पवार ने बारामती से लोकसभा सीट जीती थी. हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. दरअसल उन्होंने ये सीट अपने चाचा के लिए छोड़ी थी. अजित के इस्तीफे के बाद शरद पवार ने वहीं से चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद वह 2004 तक इसी सीट से चुनाव लड़ते रहे. फिर साल आया 2009 का. तब से सुप्रिया सुले बारामती का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. पिछले चुनाव में अजित पवार की बारामती विधानसभा ने उन्हें 1 लाख से अधिक वोटों की बढ़त दी थी. 1 लाख 50 हजार वोटों के अंतर से उनकी जीत के लिए ये सबसे बड़ा समर्थन था.

अजित का बीजेपी से गठबंधन सुप्रिया पर पड़ सकता है भारी

अब अजित पवार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया है तो वोटों का बंटवारा सुप्रिया सुले पर भारी पड़ सकता है. इंडिया टुडे ने यही सवाल शरद पवार के पोते रोहित पवार से पूछा, जो अजित पवार खेमे में शामिल नहीं हुए हैं. उन्होंने कहा कि बारामती के लोग बहुत बुद्धिमान हैं, वे लंबे समय से हमारा काम देख रहे हैं. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि बारामती विधानसभा में अजित पवार को कोई नहीं हरा सकता और लोकसभा में लोग सोच समझकर वोट करेंगे.

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गेमचेंजर साबित हो सकते हैं ये निर्वाचन क्षेत्र

पिछले लोकसभा चुनाव में दौंड विधायक राहुल कुल की पत्नी कंचन ने सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उन्हें 5 लाख 30 हजार 940 वोट मिले थे. उन्होंने सुले को कड़ी टक्कर दी थी. बारामती लोकसभा में शहरी मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक है. पुणे शहर के कई हिस्से बारामती लोकसभा में शामिल हैं. खड़कवासला, कोथरुड और कात्रज भी इसमें शामिल हैं. और यह लोकसभा सीट के लिए गेमचेंजर क्षेत्र हैं.

 

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