
महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही सियासी बगावत के बीच राज्य के पूर्व CM और शिवसेना (UBT) चीफ उद्धव ठाकरे ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस की. यवतमाल में उन्होंने कहा,'शिवाजी पार्क में मैंने अपने माता-पिता की कसम खाकर कहा था मेरी अमित शाह से बात हुई थी कि महाराष्ट्र का सीएम पद शिवसेना को ढाई साल के लिए मिलेगा. अगर बीजेपी अपने वादे पर कायम रहती तो आज बीजेपी नेताओं की हालत है, वह ना होती.' उन्होंने आगे कहा,'मैंने दोस्ती के लिए 2019 में गठबंधन किया था.'
उद्धव ठाकरे ने आगे कहा कि सबको मुख्यमंत्री होना है, लेकिन किसान जिन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं उसका क्या? मुझे मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए रात में जो मीटिंग होती थी वह मीटिंग अगर किसानों की भलाई के लिए होती तो ज्यादा बेहतर होता. भाजपा जोड़-तोड़ की राजनीति कर रही है. महाराष्ट्र हमारा है.
आज पार्टियां भगाई जा रहीं: उद्धव
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें पोहरादेवी के दर्शन करने थे. यहां पर एक सभा लेनी थी, लेकिन गर्मियों की वजह से रह गयी. पहले राजनीति में पार्टियां तोड़ी जाती थी, आज पार्टियां भगाई जा रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश दिए हैं, उसके खिलाफ लोकसभा स्पीकर जाकर कुछ करेंगे ऐसा लगता नहीं है. बीजेपी पर निशाना साधते हुए उद्धव ने कहा कि भाजपा को दूसरों पर बोलने से पहले खुद के गिरेबान में झांकना चाहिए.
भुजबल के साथ आने पर दागे सवाल
उन्होंने आगे कहा कि बालासाहेब ठाकरे को भुजबल की वजह से गिरफ्तार किया गया था, आज भाजपा उनके साथ है. मंत्रिमंडल विस्तार से जुड़े सवाल पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि वह मुख्यमंत्री नहीं हैं, इसीलिए मंत्रिमंडल के विस्तार पर बात नहीं कर सकते हैं. एक पुरानी बात पर उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि उन्हें बिना बताए बालासाहेब ठाकरे ने नितिन गडकरी के साथ बात की होगी और राज ठाकरे के साथ आने के लिए कहा होगा.
उद्धव भी झेल चुके हैं बगावत
बता दें कि एनसीपी की ही तरह उद्धव ठाकरे भी पार्टी में हुई बगावत का असर झेल रहे हैं. उनकी सरकार के कार्यकाल में 2022 में एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ शिवसेना से अलग हो गए थे. बाद में उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और खुद मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद निर्वाचन आयोग ने इसी साल 17 फरवरी को शिवसेना का नाम और चुनावी निशान धनुष बाण पर एकनाथ शिंदे गुट को अधिकृत कर दिया था.
छिन चुका है पार्टी का नाम और निशान
निर्वाचन आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और पेश किए गए हलफनामे और अन्य सबूत देखने के बाद आदेश दिया था कि एकनाथ शिंदे गुट के पास पार्टी का नाम शिवसेना और पार्टी का प्रतीक तीर-कमान रहेगा. आयोग के इस आदेश के बाद उद्धव ठाकरे गुट का शिवसेना के नाम और चिह्न तीर-कमान पर कोई अधिकार नहीं रहेगा.