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उद्धव vs शिंदे मामला: क्या आपने गलत तरीके से नियुक्त किया व्हिप? SC की टिप्पणी के बाद स्पीकर ने दिया ये जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे की सरकार को बहाल नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने खुद से इस्तीफा दे दिया था. वहीं कोर्ट ने कहा कि 16 विधायकों की अयोग्यता के मामले को स्पीकर तय समय सीमा में निपटारा करें. साथ ही कहा कि अगर व्हिप नियुक्त करते समय उद्धव ठाकरे की पार्टी प्रतिनिधित्व कर रही थी तो, ऐसे में लेजिस्लेचर पार्टी के व्हिप भरत गोगावले को मान्यता देना गलत है.

सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना vs शिवसेना मामला बड़ी बेंच को भेजा (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना vs शिवसेना मामला बड़ी बेंच को भेजा (फाइल फोटो)
साहिल जोशी
  • मुंबई,
  • 11 मई 2023,
  • अपडेटेड 3:26 PM IST

महाराष्ट्र के शिवसेना vs शिवसेना मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका दे दिया है. कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे की सरकार को बहाल नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने खुद से इस्तीफा दे दिया था. इसी के साथ ही कोर्ट ने शिंदे गुट के व्हिप भरत गोगावले की नियुक्ति को लेकर भी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि अगर उस समय पॉलिटिकल पार्टी ने व्हिप जारी किया था तो नियम के मुताबिक उसका व्हिप ही माना जाना चाहिए, न कि लेजिस्लेचर पार्टी का. इस टिप्पणी के बाद सवाल उठने लाग है कि क्या स्पीकर ने व्हिप की नियुक्ति में बड़बड़ी कर दी? इस सवाल का महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के हिसाब से खुलकर जवाब दिया.  

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स्पीकर राहुल नार्वेकर ने आजतक से बातचीत में कहा-

- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि अयोग्यता के मामले में विधानसभा अध्यक्ष ही फैसला लेंगे. इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पॉलिटिकल पार्टी व्हिप जारी करती है तो उसके ही व्हिप को माना जाना चाहिए, न कि लेजिस्लेचर पार्टी के व्हिप को. हालांकि कोर्ट ने इस बात को भी स्पष्ट किया है कि तत्कालीन पॉलिटिकल पार्टी किसकी थी, उसे कौन चला रहा था, इसका फैसला भी स्पीकर ही करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल इस आधार पर कि लेजिस्लेचर पार्टी ने व्हिप जारी किया है और स्पीकर उसे मान्यता दे दे तो तो यह गलत है.
 
- उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 10 की व्याख्या की है. इस अनुच्छेद में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया था कि पहले पॉलिटिकल पार्टी का व्हिप मान्य होगा या फिर लेजिस्लेचर का, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्पष्ट कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि पॉलिटिकल पार्टी का व्हिप एप्लिकेबल होना चाहिए. हालांकि उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मुद्दों पर अपना फैसला दिया है, जिसे बहुत ही बारीकी से पढ़े जाने की जरूरत है.

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- उन्होंने बताया कि कोर्ट ने कहा है कि उस समय कौन पॉलिटिकल पार्टी रिप्रजेंट कर रहा था, उस पर विस्तार से जांच की जानी चाहिए. कोर्ट ने यह बिल्कुल भी नहीं कहा है कि उस समय उद्धव ठाकरे या एकनाथ शिंदे ही पॉलिटिकल पार्टी के रिप्रजेंट कर रहे थे. अभी सबसे पहले यह तय करना है कि उस समय कौन सी पॉलिटिकल पार्टी प्रतिनिधित्व कर रही थी. ऐसे में मैं यह नहीं समझता हूं कि भरत गोगावले को व्हिप नियुक्त करने में कोई गड़बड़ी हुई है.

राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश देना गलत

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसला में 2022 में सियासी संकट के दौरान राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश देने के फैसले को भी गलत ठहरा दिया है. कोर्ट ने कहा, उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में बहाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही पद से इस्तीफा दे दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उद्धव-ठाकरे सरकार को गिराने वाला फ्लोर टेस्ट अवैध था. कोर्ट ने कहा, नबाम रेबिया मामले में उठाए गए सवाल को बड़ी बेंच में भेजना चाहिए, क्योंकि उसमें और स्पष्टता की आवश्यकता है.

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पार्टी की कलह में पड़ना राज्यपाल का काम नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी कलह में पड़ना राज्यपाल का काम नहीं है. गवर्नर की जिम्मेदारी संविधान की सुरक्षा की भी होती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था. फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था, जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं. राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके है.

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