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आज अगर CM शिंदे के खिलाफ आया स्पीकर का फैसला तो क्या होगा महाराष्ट्र में सियासी गेम?

महाराष्ट्र में स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले से पहले राजनीतिक तापमान बढ़ गया है. शिवसेना में टूट के बाद उद्धव-शिंदे कैंप ने एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली याचिकाएं दायर की थीं. विधानसभा अध्यक्ष के फैसले से एकनाथ शिंदे सरकार और उद्धव गुट का आगे का राजनीतिक भविष्य तय होगा.

एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो) एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST

महाराष्ट्र की सियासत के लिए आज बड़ा दिन है. दल-बदल के खिलाफ अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर स्पीकर राहुल नार्वेकर फैसला लेंगे. एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव खेमे ने एक-दूसरे के खिलाफ अयोग्य घोषित किए जाने का नोटिस दिया था. ऐसे में दोनों ही दलों के लिए यह दिन खास है. उद्धव गुट ने पहले 16 विधायकों और बाद में 24 विधायकों के खिलाफ एक्शन की मांग की थी. इसलिए यह फैसला सभी 40 विधायकों पर लागू होगा. वहीं, शिंदे गुट ने भी अयोग्यता को चुनौती दी थी और उद्धव गुट के विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए पत्र लिखा था.

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फिलहाल, आज स्पीकर का फैसला किसी एक के पक्ष में आएगा. चूंकि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं. ऐसे में अगर शिंदे गुट योग्य ठहराया जाता है तो उद्धव खेमा अयोग्य घोषित हो जाएगा और अगर शिंदे गुट अयोग्य हो जाता है तो उद्धव गुट को योग्य मान लिया जाएगा. अयोग्य विधायकों के पद भी रद्द हो जाएंगे. कुछ ही महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव हैं. 

'शिंदे गुट अयोग्य हुआ तो उद्धव गुट की बढ़ेगी ताकत'

वहीं, एकनाथ शिंदे गुट को अयोग्य घोषित किए जाने की स्थिति में उद्धव खेमे की ताकत बढ़ना तय माना जा रहा है. इसका राजनीतिक लाभ भी उद्धव गुट को मिलेगा. उद्धव गुट की कोशिश रहेगी कि कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को उठाया जाए और उसके बाद विधानसभा चुनाव में भी इसी मसले के बहाने बीजेपी और शिंदे को घेरा जाए.

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'तो उद्धव गुट पड़ जाएगा कमजोर!'

यदि शिंदे गुट स्पीकर की परीक्षा में पास हो गया. यानी योग्य घोषित कर दिया जाता है तो उद्धव ठाकरे गुट के पास कुछ हाथ नहीं लगेगा. चुनाव आयोग पहले ही शिंदे कैंप को असली शिवसेना बतौर चुनाव चिह्न 'तीर-कमान' सौंप चुका है. अब स्पीकर से भी निराशा हाथ लगेगी तो पार्टी के भी टूटने की आशंका है. इतना ही नहीं, आने वाले चुनाव में संगठन के सामने खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी. संभव है कि स्पीकर के फैसले के बाद कुछ विधायक भी उद्धव का साथ छोड़ सकते हैं. यह बात उद्धव ठाकरे भी जानते हैं. इसलिए उन्होंने पहले ही ऐलान कर दिया है कि स्पीकर का फैसला पक्ष में नहीं आता है तो वो सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे और विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को चुनौती देंगे.

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'शिंदे गुट के करियर पर आ सकता है संकट'

अभी देखा जाए तो शिंदे गुट को 40 विधायकों का समर्थन है. जबकि उद्धव गुट के पास सिर्फ 15 विधायकों का समर्थन है. योग्य घोषित होने की स्थिति में एकनाथ शिंदे चौथी बड़ी बाधा पार करेंगे. इससे पहले जुलाई 2022 में उन्होंने फ्लोर टेस्ट की बाधा पार की थी. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके नेतृत्व में सरकार को हरी झंडी दी थी. चुनाव आयोग ने भी शिंदे के पक्ष में फैसला दिया था. स्वभाविक है कि शिंदे गुट की महायुति में ताकत भी बढ़ जाएगी. आने वाले दिनों में वो इसका लाभ भी उठाएंगे और खुद को बाला साहब ठाकरे का असली वारिस घोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. इसमें बीजेपी का भी शिंदे गुट को साथ और समर्थन मिलेगा. हालांकि, अयोग्य ठहराए जाने पर शिंदे और उनके विधायकों का राजनीतिक भविष्य संकट में आ सकता है. शिंदे गुट भी अयोग्य होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं. 

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'उद्धव के समर्थन में 15 विधायक'

महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. BJP के 105 विधायक हैं. शिंदे गुट के 40, अजित पवार गुट के 24 और 20 अन्य विधायकों का समर्थन है. सरकार के पास 189 विधायकों का समर्थन है. चुनाव आयोग ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को 'शिवसेना' नाम और 'धनुष और तीर' चुनाव चिह्न दिया था, जबकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को मशाल के साथ शिवसेना (यूबीटी) नाम दिया था.

'फडणवीस बोले- फैसले से न्याय मिलेगा'
 
बीजेपी नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आगे भी शिवसेना-बीजेपी-एनसीपी (अजित पवार गुट) सरकार के स्थिर रहने का भरोसा जताया. फडणवीस ने कहा, गठबंधन सरकार कानूनी रूप से सही है. उम्मीद है कि स्पीकर का फैसला उन्हें न्याय देगा.

अगर शिंदे के खिलाफ फैसला आया तो क्या होगा?

कानूनी जानकारों का कहना है कि अगर अयोग्य घोषित किया जाता है तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उनके गुट के मंत्री और विधायकों को तुरंत इस्तीफा देना होगा. टेक्निकल तौर पर सरकार भी गिर जाएगी और महायुति को नई सरकार के गठन की कवायद शुरू करनी होगी. शिंदे गुट के अयोग्य होने की स्थिति में भी बीजेपी गठबंधन के पास जरूरी बहुमत रहेगा. विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं. बहुमत के लिए 145 सदस्यों का साथ होना जरूरी है. 2019 में बीजेपी ने 105 सीटें जीती थीं. अजित गुट और अन्य निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बहुमत का जरूरी आंकड़ा जुटाया जा सकता है. हालांकि, मुख्यमंत्री नया बनाया जाएगा. शिंदे गुट के अयोग्य होने पर अजित गुट का हावी होना तय माना जा रहा है. यह भी कहा जा सकता है कि बीजेपी अजित पवार को नया सीएम बनाने के लिए सहमति दे सकती है.

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'एक-दूसरे के खिलाफ याचिकाएं दी गई थीं'

बता दें कि जून 2022 में शिंदे और कई विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी, जिसके कारण शिवसेना में टूट हो गई थी और महा विकास अघाड़ी गिर गई थी. उद्धव के साथ गठबंधन में एनसीपी और कांग्रेस भी शामिल थी. दोनों गुट ने दलबदल विरोधी कानून के तहत एक-दूसरे के खिलाफ स्पीकर के समक्ष क्रॉस-याचिकाएं दायर की और कार्रवाई की मांग की. उद्धव के नोटिस पर शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. पिछले साल मई में SC ने स्पीकर राहुल नार्वेकर को याचिकाओं पर शीघ्रता से फैसला करने का निर्देश दिया था. पिछले साल जुलाई में एनसीपी का अजित पवार गुट भी शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गया था. महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं.

शिंदे बोले- हमारी सरकार संवैधानिक

वहीं, सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा, मुझे चुनाव चिह्न और पार्टी का नाम ईसीआई ने दिया है. हमें यह इसलिए मिला क्योंकि हमारे पास बहुमत था. कुछ लोग मैच फिक्सिंग के आरोप लगा रहे हैं. उनके विधायक भी स्पीकर से मिले. विधानसभा क्षेत्र के काम से स्पीकर मिलने आये थे. यह एक आधिकारिक मुलाकात थी. वे जो कहते हैं उसमें कोई तथ्य नहीं है. अगर फैसला उनके पक्ष में आता है तो वे खुश होते. स्पीकर को गुण-दोष के आधार पर हमारे पक्ष में फैसला देना चाहिए. हमारी सरकार असंवैधानिक नहीं है. सीएम के इस्तीफा देने के बाद हमें सरकार बनाने के लिए बुलाया गया था. वे अपना नुकसान देख रहे हैं और इसलिए ऐसा बयान दे रहे हैं. आज भी हमारा चाबुक उन पर लागू है. हम योग्यता के आधार पर फैसले की उम्मीद करते हैं. विधानसभा में 67 फीसदी बहुमत हमारे साथ है. लोकसभा में 75 फीसदी बहुमत मेरे साथ है.

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क्या है पूरा मामला?

2019 के चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था और 56 सीटें जीती थी. जून 2022 में जब शिंदे गुट ने शिवसेना और उद्धव ठाकरे से बगावत की, तब उन्हें 16 विधायकों का समर्थन था. यानी बगावत करने वाले सदस्यों की संख्या दो तिहाई नहीं थी. ऐसे में उन पर अयोग्यता की तलवार लटकी थी. अविभाजित शिवसेना के मुख्य सचेतक के रूप में सुनील प्रभु ने शिंदे और अन्य 15 विधायकों के खिलाफ विधानसभा सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने का नोटिस दिया था. शिंदे गुट के बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इस बीच, शिंदे गुट के विधायकों की संख्या 40 हो गई. यानी पहले जब बागी विधायकों को नोटिस दिया गया, तब उनकी संख्या सिर्फ 16 थी. उसके बाद 14 और विधायकों के साथ आने से कुल बागी विधायकों की संख्या 40 हो गई थी. चुनाव आयोग ने भी शिंदे गुट को असली शिवसेना मानते ही चुनाव चिह्न 'धनुष वाण' देने का फैसला किया था.

शिंदे गुट का तर्क है कि उसे दो तिहाई से ज्यादा 40 विधायकों का समर्थन है. जबकि उद्धव गुट ने पहले 16 और 14 बागी विधायकों को नोटिस जारी किए थे. ऐसे में उनका कहना है कि शिंदे गुट के समर्थन में एक साथ दो तिहाई बागी विधायक नहीं गए. अब फैसला लेने के लिए स्पीकर के पाले में गेंद है.

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दल विरोधी कानून क्या कहता है?

संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून को शामिल किया गया है. इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में 'दल-बदल' की कुप्रथा को समाप्त करना है. कानून के अनुसार, सदन के स्पीकर के पास सदस्यों को अयोग्य करने संबंधी निर्णय लेने का अधिकार है. यदि स्पीकर के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है.  इसके अलावा, कानून में कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों का भी जिक्र है, जिनमें दल-बदल पर भी अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है. दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक पार्टी को किसी अन्य राजनीतिक पार्टी में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है. बशर्ते कि उसके कम से कम दो तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों. ऐसे में ना तो दल-बदल रहे सदस्यों पर कानून लागू होगा और ना ही राजनीतिक पार्टी पर. स्पीकर को इस कानून से छूट प्राप्त है.

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