
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि अक्ल दाढ़ का न होना रेप पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए एक निर्णायक सबूत नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में 10 साल की सजा पाए आरोपी को बरी कर दिया है.
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई की बेंच कहा कि अक्ल दाढ़ का होना ज्यादा से ज्यादा ये साबित कर सकता है कि किसी की आयु 17 साल या उससे अधिक है, लेकिन अक्ल दाढ का न होना यह साबित नहीं करता है कि किसी की आयु 18 साल से कम है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जस्टिस ने कहा कि इस मामले में पीड़िता को तीसरी अक्ल डाढ़ न आने की बात का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. उन्होंने कहा कि उम्र तय करने के लिए होने वाले टेस्ट से सिर्फ मार्गदर्शन हासिल किया जा सकता है. इससे सटीक जानकारी के लिए निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता. मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए आरोपी को बरी किया जाता है.
जानकारी के आरोपी यूपी का रहने वाला है. उसने शादी का झांसा देकर पीड़िता से शारीरिक संबंध बनाया था. उस समय लड़की कक्षा-10 वीं में पढ़ती थी. जब उसने वादा करने के बाद भी शादी नहीं की तो पीड़िता ने उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट में शिकायत दर्ज कराई थी. 2019 में डेंटिस्ट ने क्लिनिकली और रेडियोग्राफिक दोनों तरह से पीड़िता की उम्र की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अक्ल दाढ़ या तीसरी दाढ़ नहीं मिलने के आधार पर उसकी उम्र लगभग 15 से 17 साल हो सकती है. डेंटिस्ट की गवाही के आधार पर निचली अदालत ने आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराया था. इसके बाद आरोपी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी.
लड़की से शादी करना चाहता था...: आरोपी का दावा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीड़िता के वकील ने कोर्ट में बताया कि उसने 25 मार्च 2016 को आरोपी को बताया था कि वो प्रेगनेंट है. उसके बाद से उसने फोन उठना बंद कर दिया. वहीं आरोपी का कहना था कि वह और पीड़िता रिश्ते में थे. वो यही बताने के लिए यूपी गया था, लेकिन जब वह वापस रायगढ़ लौटा तो लड़की उसे नहीं मिली. वह लड़की से शादी करना और बच्चे को अपनाना चाहता था, लेकिन तब तक पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
अक्ल दाढ़ को लेकर यह आई रिपोर्ट
अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए विशेष अदालत ने दंत चिकित्सक की गवाही पर भरोसा किया था, जिसने कहा था कि लड़की इस आधार पर नाबालिग है कि उसके पास अक्ल दाढ़ नहीं था. डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उसने जब पीड़िता की जांच की तो उसके मुंह में तीसरी अक्ल दाढ़ नहीं नजर आई. इस आधार पर डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 15 से 17 साल के बीच होने का अनुमान जताया था.
हालांकि जब इस तथ्य को लेकर कोर्ट में बहस हुई तो यह सामने आया कि कई बार 18 साल के बाद तीसरी अक्ल दाढ़ आती है. मोदी मेडिकल जुरिसप्रूडेंस के मुताबिक पहली अक्ल दाढ़ 12 से 14 साल की उम्र के बीच आती है, जबकि तीसरी अक्ल दाढ़ 17 से 25 साल के बीच आती है. अक्ल दाढ़ यानी विसडम टूथ, मुंह के ठीक पीछे आने वाली एक दाढ़ होती है. इसे तीसरी दाढ़ भी कहा जाता है.