युगपुरुष महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी की आज 151वीं जयंती है. स्वतंत्रता आंदोलन में बापू के योगदान से तो हर भारतवासी परिचित है. हम यहां आपको राष्ट्रपिता के 10 बेहतरीन सिद्धांतों और विचारों के बारे में बता रहे हैं. ये वही विचार थे, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में उन्हें सर्वकालिक हस्तियों में शुमार करा दिया.
महात्मा कहते हैं... सत्य ईश्वर है. जीवंत गुण है. जीवन है. विचारों का साक्षी है. राजा हरिश्चंद्र की बचपन में सुनी कहानी से बापू आजीवन प्रेरणा लेते रहे और सत्याचरण को ईश्वर सेवा मानते रहे. उन्होंने अपनी आत्मकथा को 'सत्य के प्रयोग' कहा.
अहिंसा परमवीर की पहचान है. हथियारों से दुनिया जीतना आसान है. मनोवृत्तियों पर विजय पाना बहुत दुष्कर है. अहिंसा प्रेम का सिद्धांत है. प्रकृति के प्रत्येक जीव का संरक्षण मनुष्य का कर्तव्य है. विरोधी के प्रति बदले की भावना रखे बिना हक के लिए अड़े रहना ही वीरत्व भाव है.
ब्रह्मचर्य चरित्र की कुंजी है. ईश्वर आस्था के बिना इसे पाना लगभग असंभव है. दंपति का संतान प्राप्ति के लिए ही संसर्ग करना उचित है. पति-पत्नी एक दूसरे के सहचर हैं. दास नहीं. ब्रह्मचर्य व्रत से व्यक्ति दीर्घजीवी और निरोग होता है. गांधी कहते हैं- उध्र्वगामी वीर्य की सृजनात्मक शक्ति को कौन माप सकता है. इसकी एक बूंद मानव जीवन की सृष्टि करने में समर्थ है.
त्याग या अपरिग्रह मनुष्य को हल्का बनाते हैं. वस्तुएं भार बढ़ाती हैं. गांधी कहते हैं... उन्हें शीघ्र ही यह एहसास हो गया कि मानव जाति की सेवा करनी है तो उन्हें अपना सर्वस्व त्याग देना है. ईसा, मोहम्मद, बुद्ध, नानक, कबीर, चैतन्य, शंकर, दयानंद, रामकृष्ण आदि महापुरुषों ने भी जानबूझकर निर्धनता का वरण किया.
गांधी ने रोटी के लिए शारीरिक श्रम का सिद्धांत दिया. बापू मानते थे- बगैर श्रम के भोजन लेना पाप है. एक चिकित्सक और इंजीनियर के समान ही नाई व बढ़ई आदि का कौशल है. बौद्धिक प्रयासों को प्रत्येक व्यक्ति को निशुल्क ही जनसेवा में लगाना चाहिए. शारीरिक श्रम प्रत्येक के लिए अनिवार्य होना चाहिए.
सर्वोदय के सिद्धांत में गांधी कहते हैं- वे अद्वैतवादी हैं. मनुष्य ही नहीं प्राणीमात्र की एकता में विश्वास रखते हैं. जब एक व्यक्ति आध्यात्मिक स्तर पर उठता है तो सम्पूर्ण प्राणीजगत का उत्थान होता है. इसी तरह एक आदमी का पतन पूरे संसार का पतन है. हम में से प्रत्येक को अंतिम आदमी के बाह्य और आंतरिक उत्थान के लिए हरसंभव जुटे रहना है.
स्वराज के विषय में गांधी कहते हैं- उन्हें भारत को केवल अंग्रेजों की पराधीनता से मुक्त कराने में दिलचस्पी नहीं है. वे सभी प्रकार की पराधीनताओं से मुक्ति के लिए संकल्पित हैं. उनकी एक शासक को हटाकर दूसरा शासक लाने की कोई इच्छा नहीं है. स्वराज की स्थापना भारत के 7 लाख गांवों की आत्मनिर्भरता में निहित है. हर व्यक्ति उसी समय स्वाधीन है जब वह स्वयं की आत्मा की आवाज पर गलत के लिए 'ना' कहना सीख ले. गांधी के सपनों का स्वराज गरीबों का स्वराज है.
महात्मा प्रेम के बल को आत्मा और सत्य का बल मानते थे. इसी प्रेम के बल से समाज के असंख्य विवाद सजहता से हल होते हैं. भाईचारा और प्रेम के अभाव में पशुबल का प्रदर्शन होने लगता है. व्यक्तियों और राज्यों के बीच झगड़े, युद्ध व न्यायिक विवाद की संख्या समाज में अत्यंत न्यून होती है. इसका कारण, भाईचारा और प्रेम है. प्रेम से सुलझे विवाद अखबारों में नहीं आते हैं. ऐतिहासिक नहीं होते. इसलिए वे चर्चा का अंग नहीं होते.
सच्चे लोकतंत्र के लिए बापू न्यासिता अर्थात् ट्र्ष्टीशिप को आवश्यक मानते थे. समाज और राज्य, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार अर्थोपार्जन का अधिकार देता है. इस कमाई में से केवल आवश्यकतानुसार लेकर शेष पर व्यक्ति का न्यासी की तरह अधिकार जताना चाहिए. परिवार और पुत्रादि के लिए संपत्ति छोड़ना गांधी उचित नहीं मानते थे. उनका स्पष्ट मत है कि प्रत्येक का अपनी जरूरत के अनुरूप धन स्वयं अर्जित करना चाहिए.
गांधी गोपनीयता को पाप मानते हैं. घृणा की दृष्टि से देखते हैं. मनुष्य की प्रकृति गंदगी छिपाने की होती है. वो कहते हैं- गंदे और छिपाए जाने वाले विचार भी हमें अपने मस्तिष्क में नहीं लाने चाहिए. गांधी स्वयं आश्रम में खुले में रात्रि विश्राम किया करते थे. उनके आश्रमों में एक साथ कई परिवार रहा करते थे. ऐसे में गांधी का पूरा जीवन ही पारदर्शी रहा.