Indian Railways: भारतीय रेलवे को देश के लाइफ लाइन कहते हैं. हर रोज रेल से बड़ी संख्या में लोग यात्रा करते हैं. अक्सर जब हम टिकट बुक कर रहे होते हैं, हम देखते हैं कि ट्रेनों के नाम अलग-अलग होते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ट्रेनों का नाम कैसे रखा जाता है? किस आधार पर ट्रेनों का नामकरण होता है? इसका जवाब है कि ट्रेनों के नाम उनकी खासियत के हिसाब से रखा जाता है.
आखिर राजधानी का नाम राजधानी क्यों पड़ा? राजधानी को शुरू में एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की राजधानी से जोड़ने के लिए तैयार किया गया था. देश की राजधानी दिल्ली समेत प्रदेशों की राजधानी के बीच तेज गति की ट्रेनों को चलाया जाए, इसके लिए इस ट्रेन की शुरुआत की गई थी.
राजधानी एक सुपर फास्ट ट्रेन है इसकी रफ्तार को समय-समय पर अपग्रेड किया जाता रहा है. इसकी गति 140 km प्रति घंटे के हिसाब से है. ये भारत की सबसे विशिष्ट ट्रेनों में से एक है, ट्रेनों की आवाजाही की स्थिति में सबसे पहले वरीयता इसको ही दी जाती है.
Indian Railways: शताब्दी ट्रेन भारत की सबसे ज्यादा प्रयोग में आने वाली ट्रेनों में से एक है. इस ट्रेन को 400 से 800 km के सफर में जायदा वरीयता दी जाती है. शताब्दी को इसलिए शताब्दी नाम दिया गया क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के 100वें जन्म दिन पर 1989 में इसको शुरू किया गया था.
इसकी रफ्तार की बात करें तो बेहद तेज गति से चलने वाली ट्रेन है. शताब्दी 160 km प्रति घंटे की रफ्तार से पटरी पर दौड़ती है. इसमें कोई भी स्लीपर कोच नही होते है, सिर्फ AC चेयर कार और एग्जेक्यूटिव चेयर कार होती हैं.
दुरंतो यानी की वो ट्रेन जिसमें सबसे कम स्टॉपेज होते हैं और बेहद लंबी दूरी तय करती है. दुरंतो का नाम बंगाली शब्द निर्बाद यानी restless से पड़ा. दुरंतो को कई मायने में राजधानी से तेज माना जाता है. इसकी रफ्तार करीब 140 km के आसपास रहती है, ये सबसे ज्यादा संख्या में चलती है, यानी राजधानी और शताब्दी से भी ज्यादा.
दुरंतो में LHB स्लीपर कोच होते हैं जो कि आम ट्रेन से ऊंचे होते हैं. ये कोच इसको गति प्रदान करते हैं. ये रोजाना केवल विशेष परिस्थिति में चलाई जा सकती है, वरना इन ट्रेनों को हफ्ते में 2 से 3 दिन के हिसाब से चलाया जाता है.