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10 महिला सांसदों की कलम से पुराने संसद भवन की यादें, 96 साल बाद रिटायर हो रही इमारत

पुराने संसद भवन को एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था. यह 1921 से 1927 तक बनकर तैयार हुआ. 18 जनवरी 1927 और 15 अगस्त 1947 के बीच यह इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल हुआ करती थी. इसके बाद 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत की संविधान सभा और फिर संसद बनी.

नवनीत राणा, महुआ मोइत्रा, अनुप्रिया पटेल और पूनम महाजन नवनीत राणा, महुआ मोइत्रा, अनुप्रिया पटेल और पूनम महाजन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

पुराने संसद भवन में कार्यवाही का आज आखिरी दिन है. आजादी के 75 साल बाद देश के नए संसद भवन में कल से कार्यवाही शुरू होगी. संसद को नए भवन में स्थानांतरित किए जाने के ऐतिहासिक मौके पर 10 महिला सांसदों ने हाथ से लिखे नोट में पुरानी संसद में अपनी यादें, संदेश और अनुभव साझा किए हैं. विभिन्न दलों की महिला सांसदों ने भारत की 75 साल की लोकतांत्रिक यात्रा के साक्षी रहे पुराने संसद भवन को विदाई देते हुए भावुक संदेश लिखे हैं. 

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शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने पुरानी संसद भवन के विभिन्न हॉल की अपनी यात्रा का जिक्र किया. उन्होंने कहा, 2006 में एक विस्मित दर्शक से लेकर 2009 में पहली बार की सांसद, फिर 2019 में पहली बार मंत्री बनने तक लोकतंत्र के इस मंदिर में इन 144 स्तंभों ने मेरे लिए ढेर सारी यादें संजोकर रखी हैं. हरसिमरत ने कहा, इतिहास और हजारों भारतीय कलाकारों, मूर्तिकारों और मजदूरों की हस्तकला से सुसज्जित यह खूबसूरत इमारत गहन शिक्षा और अत्यधिक संतुष्टि का स्थान रही है. सेंट्रल हॉल, जहां मित्रता बनी, सभी यादें को जीवनभर संजोकर रखा जाएगा. 

शिवसेना (उद्धव गुट) की सांसद सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने नोट में ऐसी ही यादों को बयां करते हुए लिखा, यादें, सीखना, नीति निर्माण, मित्रता. इतिहास और चमत्कार की इस सुंदरता ने गहन चर्चा, व्यवधान, दिग्गज नेताओं और इतिहास निर्माताओं को देखा है. उन्होंने लिखा, संसद ने आत्मविश्वास से भरे एक राष्ट्र के रूप में हमारी 75 साल की यात्रा को आकार दिया है. इस यात्रा का हिस्सा बनकर गर्व है और आशा है कि इस संसद भवन का सार नए भवन में बना रहेगा. मेरे राष्ट्र को सदैव कृतज्ञतापूर्वक शुभकमानाएं. 

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केंद्रीय मंत्री और अपना दल (सोनेलाल) की सांसद अनुप्रिया पटेल ने संसद भवन में पहली बार प्रवेश करने के क्षणों को याद किया. उन्होंने अपने नोट में कहा, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से 2014 (16वीं लोकसभा) में पहला संसदीय चुनाव जीतने पर संसद भवन के पवित्र परिसर में प्रवेश करना मेरे लिए भावुक और विनम्र क्षण था. मैं गहरायी से महसूस कर सकती थी कि मैं एक ऐतिहासिक इमारत में प्रवेश कर रही हूं जिसने भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल करते हुए, हमारा संविधान बनाते हुए तथा देश के लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास और उन्हें मजबूत होते हुए देखा.

उन्होंने कहा, मैंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की राजसी प्रतिमा के सामने खड़े होकर काफी अभिभूत महसूस किया. इस संसद भवन ने मुझे देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिष्ठित नेताओं से संसदीय प्रक्रियाओं की बारीकी सीखने का अवसर दिया. 

पटेल ने कहा, बदलते वक्त और हमारे उभरते लोकतंत्र की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने नए संसद भवन की नींव रखी. मैं सभी सुविधाओं सहित प्रकृति से तालमेल के साथ नए आधुनिक परिसर के बारे में काफी उत्साहित हूं. मैं नए परिसर से हमारे देशवासियों के कल्याण के लिए काम शुरू करने और इतिहास बनाने का हिस्सा बनने को लेकर बेहद उत्साहित हूं. 

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बीजेपी की सांसद पूनम महाजन ने लिखा, अंतिम जय का व्रज बनाने, नव दधीचि हड्डियां गलाएं. आओ फिर से दीया जलाएं. तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने कहा कि इस इमारत की उनके दिल में हमेशा खास जगह रहेगी. उन्होंने कहा, यह इमारत वह सदन है, जहां पहली बार सांसद के रूप में मैं गईं. लेकिन यह घर बन गया. किसी के भी पहले घर की तरह इस इमारत की मेरी दिल में हमेशा एक खास जगह रहेगी. इस महान भवन ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को गले लगाया है और इसके सुरक्षा कवच में हमें हमारा छोटा-सा कोना तलाशने में मदद की. 

उन्होंने कहा, इमारत बदल सकती है लेकिन इसका प्रतीकवाद –एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र रूप से निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के लिए एक मुक्त स्थान है जिसे अक्षुण्ण बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है. केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद स्मृति ईरानी ने अपने नोट में कहा,  शुभकामनाएं. 

एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने अपने नोट में कहा, मुझे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा बनने और उस पुराने खूबसूरत संसद भवन में आयोजित सत्रों में भाग लेने का अवसर प्रदान करने के लिए महाराष्ट्र और बारामती के लोगों का धन्यवाद, जो उन नेताओं की आवाज को प्रतिबिंबित करता है, जिन्होंने हमारे सुंदर देश के विकास में योगदान दिया. 

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कांग्रेस सांसद राम्या हरिदास ने पुरानी इमारत के महत्व को याद किया और इसे लोकतंत्र का महल और मजबूत निर्णयों का जन्म स्थान बताया. उन्होंने इसकी ऐतिहासिक महत्ता और सदाबहार यादों का जिक्र किया. 

अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने कहा, पहली बार जब मैंने संसद में प्रवेश किया, वह मेरे लिए यादगार क्षण है. आप, मैं संसद की यह पीढ़ी आगे न जाने कहां होगी. पिछले दस सालों में संसद में मैंने बहुत सी चीजें सीखीं. इस संसद के साथ शानदार यादें जुड़ी हैं. उन्होंने कहा कि विशेष रूप से सेंट्रल हॉल लॉबी, मंत्री का अलग कार्यालय और अन्य चीजें शानदार हैं. यह सच है कि यह लोकतंत्र का असली मंदिर है.

राज्यसभा सदस्य पीटी ऊषा ने पुराने संसद भवन को लेकर अपनी अनूठी यादें साझा कीं.  उन्होंने अपने नोट में लिखा, 1986 में सियोल में स्वर्ण पदक जीतने के बाद एक दर्शक के रूप में मैंने पहली बार इस खूबसूरत संसद भवन की यात्रा की थी. वह समय आज भी याद है कि सभी माननीय सांसदों ने मुझे बधाई और शुभकामनाएं दी थीं. उसके बाद भी मैं किसी विशेष उद्देश्य से दो या तीन बार गई. लेकिन 27 जुलाई 2022 का दिन मेरे लिए बहुत खास था. 

उन्होंने कहा, जीवन में पहली बार मैंने जब राज्यसभा में कदम रखा, सीढ़ियों को प्रणाम किया और हरि ओम का उच्चारण किया. मैंने देखा कि इस प्रतिष्ठित सदन के सभी सम्मानित सदस्य मुझे बधाई और शुभकामनाएं देने आए, मुझे एक अच्छे सांसद की तरह कैसा व्यवहार करना है, सत्र दर सत्र यह सिखाने में उनका बहुत सहयोगात्मक व्यवहार रहा. वे हमेशा मेरे प्रति अपना प्यार और स्नेह दिखाते हैं और मुझसे मेरे परिवार, उपलब्धियों आदि के बारे में पूछते हैं. 

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पीटी ऊषा ने कहा, मुझे वास्तव में गर्व है कि इतने अनुभवी माननीय सदस्य मेरे साथ खड़े रहे. मैं भी विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित अलग-अलग मुद्दों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर सकती हूं, विशेष रूप से हमारी मातृभूमि के खिलाड़ियों के संबंध में. यह मेरे लिए सचमुच सम्मान की बात है कि लोकतंत्र का यह मंदिर हमारे हर नागरिक के दिल में हमेशा बना रहे. मैं इस पवित्र सदन के सामने सिर झुकाती हूं. 

96 साल बाद रिटायर हो रहा पुराना संसद भवन

पुराने संसद भवन को एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था. यह 1921 से 1927 तक बनकर तैयार हुआ. 18 जनवरी 1927 और 15 अगस्त 1947 के बीच यह इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल हुआ करती थी. इसके बाद 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत की संविधान सभा और फिर संसद बनी. 26 जनवरी 1950 से 18 सितंबर तक इसमें लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही हुई. 

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