
ब्रिटेन में नई सरकार आने के बाद लगा था कि अब वहां सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा होता हुआ दिख नहीं रहा. बढ़ती महंगाई और फेल नीतियों के कारण बोरिस जॉनसन को कुर्सी गंवानी पड़ी थी. नई पीएम बनी लिज ट्र्स लेकिन अब इसी आधार पर लिज ट्रस की भी कुर्सी खतरे में पड़ती नजर आ रही है. दरअसल, 2 अक्टूबर को लिज ट्रस अपने चुनावी वादे से मुकर गई थीं.
उन्होंने ब्रिटेन के लोगों के टैक्स में कटौती का वादा किया था. इसके उलट उन्होंने देश के अमीरों से ज्यादा टैक्स लगाने वाला कानून वापस ले लिया. ट्र्स के इसी फैसले के बाद पार्टी के अंदर ही उनकी आलोचना शुरू हो गई. अब बात यहां तक पहुंच गई है कि उनकी ही पार्टी के सांसद उनके पद पर बने रहने के ही खिलाफ हो गए हैं. कहा जा रहा है कि 24 तारीख को कंजरवेटिव पार्टी के ही लगभग 100 सांसद ट्र्स के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं.
इसी स्थिति को देखते हुए ट्र्स ने अपने पार्टी सांसदों को रिसेप्शन पर बुलाया था लेकिन उसमें ज्यादातर सांसद नहीं पहुंचे. ऐसे में सवाल ये है कि प्रधानमंत्री बनने के इतने कम समय मे ही स्थिति इतनी क्यों बिगड़ गई, लिज ट्र्स को अगर पता था कि उनके इस फैसले का विरोध उनकी कुर्सी पर खतरे तक आ जाएगा तो फिर ऐसा करने के पीछे उनकी मजबूरी क्या थी?
डिफेंस निर्यात का लक्ष्य 2025 तक हासिल कर पाएगा भारत?
गुजरात के गांधीनगर में आज से शुरू हो रहा है 12वां डिफेंस एक्सपो, जो 22 अक्टूबर तक चलेगा. डिफेंस एक्सपो में दरअसल डिफेंस सेक्टर के प्रोडक्ट्स बनाने वाली भारतीय कंपनियां जुटती हैं और सरकार के साथ उनका करार होता है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार के आने के बाद इस एक्सपो के ठिकाने भी अलग-अलग होने लगे हैं और मेक इन इंडिया मुहिम की वजह से ये एक्सपो और इम्पोर्टेंट बन गया है.
कहा जा रहा है कि करीब 1320 भारतीय कंपनियों के पास इसके जरिये सीधा मौका होगा कि वो डिफेंस के सेक्टर में डील कर सकें. तो ये एक्सपो किस लिहाज से इम्पोर्टेंट है और इसको लेकर क्या-क्या तैयारियां की गई हैं वहां? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक 5 बिलियन डॉलर के निर्यात की बात कही थी. अभी की स्थिति देखते हुए ये टारगेट कितना संभव नजर आता है?
विनिवेश लक्ष्य हासिल क्यों नहीं कर पा रहा भारत?
इकोनॉमी और बिजनेस की दुनिया मे एक शब्द है डिसइन्वेस्टमेंट. हिंदी में कहें तो विनिवेश. ये नीति है. अधिक आय कमाने के लिए सरकारें इसे अपनाती हैं. अपने किसी भी ऑर्गनाइजेशन का एक हिस्सा बेचकर. पिछले साल के बजट में सरकार ने इसके तहत 1 करोड़ 75 लाख करोड़ जुटाने का टारगेट रखा लेकिन उसका 5 परसेंट भी नहीं जुट पाया. फिर इसी साल मार्च में जब बजट बनाया जा रहा था तब इस टारगेट को घटा कर 65000 करोड़ कर दिया गया. दावा था कि ये टारगेट तो अचीव हो ही जाएगा और उसका कारण भी था.
एलआईसी का आईपीओ आ रहा था. भारत पेट्रोलियम, एचसीएल जैसी तमाम संस्थाओं की हिस्सेदारी बेच कर सरकार कमाई का प्लान कर रही थी. लेकिन अब जब ये साल निकलने में चार महीने ही बचे हैं, नए बजट की तैयारी शुरू हो गई है. ये टारगेट अब भी दूर की कौड़ी है. सवाल ये है कि मौजूदा परिस्थितियों में और बचे हुए समय मे ये 65000 करोड़ जुटाने का टारगेट कितना अचीवेबल नजर आ रहा है? टारगेट घटाने के बाद भी कहां चैलेंज फेस कर रही है सरकार?
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