
राष्ट्रपति चुनाव की जब घोषणा हुई तो उसी के साथ विपक्ष की सक्रियता भी तेज हुई. लीड कर रही थीं तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी. लग रहा था कि हरकत में आया विपक्ष इन चुनावों में एनडीए के सामने मुश्किलें पेश कर सकता है. लेकिन अभी के जो घटनाक्रम हैं, उनसे ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा.
तीन नाम जो विपक्षी दलों की इस बैठक में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर बताए जा रहे थे कि इन्हीं में से कोई विपक्ष का उम्मीदवार होगा, तीनों ने एक-एक कर के इनकार कर दिया. पहले शरद पवार, फिर फारुक अब्दुल्ला और कल गोपाल कृष्णा गांधी. तीनों ने साफ कह दिया - थैंक्यू सो मच फॉर योर ऑफर बट आई ऍम नॉट इंट्रेस्टेड.
ऐसे में ममता की ये कोशिशें जो उनकी सक्रियता के बाद सकारात्मक परिणाम देती नजर आ रही थीं, एक बार फिर से अधर में हैं. तो क्या कारण हैं राष्ट्रपति पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के एक-एक करके मना करने के? आज बैठक में क्या होगा?
आजमगढ़ और रामपुर बचा पाएगी सपा?
यूपी की महत्वपूर्ण सीटों में से मानी जाती हैं आजमगढ़ और रामपुर संसदीय सीट. यहां लोकसभा उपचुनाव है. आजमगढ़, जो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई और रामपुर की सीट आजम खान के इस्तीफे के बाद खाली हुई. सपा के ये दोनों नेता हाल ही में विधानसभा चुनाव जीते हैं और सांसद पद के इनके इस्तीफे के बाद ये सीटें खाली हैं. आजमगढ़ में बीजेपी के प्रत्याशी इस बार भी दिनेश लाल यादव निरहुआ हैं जो जोर-शोर से प्रचार में लगे हैं. बसपा ने आजमगढ़ में तो प्रत्याशी उतारा है लेकिन रामपुर में इनका प्रत्याशी नहीं है.
यादव-मुस्लिम आबादी बहुल ये दोनों सीटें सपा का गढ़ मानी जाती हैं. अखिलेश और आजम भारी अंतर से इन सीटों से संसद गए थे. एक चीज और नई है. इस चुनाव में सपा ने अपनी पूरी ताकत आजमगढ़ में तो झोंक रखी है लेकिन रामपुर में आजम के अलावा सपा का कोई नेता चुनाव प्रचार के लिए नहीं दिखा है. रामपुर सीट पर बीजेपी से घनश्याम सिंह लोधी किस्मत आजमा रहे हैं तो सपा से आसिम राजा चुनावी मैदान में हैं.आजमगढ़ में राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत सिंह भी सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव के चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे. ऐसे में सवाल ये है कि सपा की रामपुर से ज्यादा आजमगढ़ को लेकर सक्रियता क्या केवल इसलिए है कि यहां चुनौती ज्यादा हैं या फिर इसके पीछे आजम खान से पार्टी के वो मतभेद तो नहीं जो बीते दिनों कई मौकों पर सामने आए?
भारत दवा उत्पादन में कैसे बनेगा आत्मनिर्भर?
कोविड के बाद दुनियाभर के मुल्कों को समझ आया कि दवाइयों और मेडिकल जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर होना किस हद तक जरूरी है. भारत ने तो न सिर्फ वैक्सीन खुद बनाई बल्कि उसका एक्सपोर्ट भी किया. ओवरऑल देखें तो इस समय भारत फार्मेसी के सेक्टर में ग्लोबल लेवल पर एक मजबूत देश है. कोविड के अलावा भी अन्य दवाइयों की भारत में मैन्युफैक्चरिंग तेज हुई है और फार्मेसी का मार्केट भी बढ़ा है. इन्वेस्ट इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में भारत का हेल्थकेयर मार्केट 11661 करोड़ का था. अंदाजा है कि ये साल 2024 तक 48543 करोड़ तक पहुंच जाएगा. भारत अभी दवाओं के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और दवाओं के मैन्युफैक्चरिंग के मामले में दुनियाभर में तीसरे नंबर का देश.
मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भारत के और मजबूत होने में एक मुश्किल भी है. अधिकतर दवाओं में एक इम्पोर्टेन्ट इनग्रीडिएंट का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कहते हैं बल्क ड्रग या एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रीडिएंट. मुश्किल ये है कि बल्क ड्रग के मामले में भारत अब तक पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं है. इनकी ज़रूरत का एक बड़ा हिस्सा भारत, चीन से इम्पोर्ट करता है. ऐसे में दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भारत के सामने ये बड़ी चनौती है कि बल्क ड्रग के सेक्टर में हम अपनी ये डिपेंडेंसी कैसे घटाएंगे? अभी भारत फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज के ग्रोथ के मामले में कहां खड़ा है? और ग्लोबल लेवल पर हमारा प्रोडक्शन कैसा है?
इन खबरों पर विस्तार से चर्चा के अलावा ताजा हेडलाइंस, देश-विदेश के अखबारों से सुर्खियां, आज के दिन की इतिहास में अहमियत सुनिए 'आज का दिन' में अमन गुप्ता के साथ.
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