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आज का दिन: बीजेपी के लिए निषाद पार्टी संग गठबंधन गले की फांस, ओमिक्रॉन पर दुनिया की बढ़ती चिंता

ख़बरों पर विस्तार से चर्चा के अलावा ताज़ा हेडलाइंस, देश-विदेश के अख़बारों से सुर्खियां, आज के इतिहास की अहमियत सुनिए 'आज का दिन' में अमन गुप्ता के साथ

बीजेपी के लिए निषाद पार्टी संग गठबंधन गले की फांस बीजेपी के लिए निषाद पार्टी संग गठबंधन गले की फांस
अमन गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 21 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:35 AM IST

शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी के धर्म बदलने पर पिछले दिनों ख़ूब हो हल्ला हुआ.उन्होंने इस्लाम छोड़ सनातन धर्म अपना लिया था. ये तो ख़ैर अपनी मर्ज़ी से धर्म बदलने की बात हुई लेकिन अक़्सर इस तरह की ख़बरें आती रहती हैं कि फलां जगह पर लालच देकर और डरा धमका कर धर्म परिवर्तन का गोरखधंधा चल रहा है. इसी कड़ी में पिछले दिनों मध्यप्रदेश, गुजरात से लेकर कर्नाटक तक के क्रिश्चन मिशनरीज पर हमलें की खबरें आईं जहाँ आरोप था कि इन राज्यों में फोर्सफुल कन्वर्जन यानी ज़बरन धर्मांतरण कराया जा रहा है.

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दरअसल, बात ये है कि अपना संविधान रिलीजन को प्रोपेगेट करने की इजाज़त तो देता है हर धर्म को, लेकिन फोर्सफुल कन्वर्जन की इज़ाज़त नहीं है. शायद इन्हीं सब चीज़ों को ध्यान में रख कर कर्नाटक कैबिनेट ने कल एंटी कन्वर्जन बिल को मंजूरी दे दी. इस बिल पर लम्बे समय से कर्नाटक की सियासत गर्माई हुई थी. विपक्षी दल और ईसाई समुदाय के लीडर इसका विरोध कर रहे हैं मगर भाजपा सरकार अपने मनमाफिक बिल के साथ आगे बढ़ रही है और आज पॉसिबली इस बिल को विधानसभा में पेश किया जा सकता है. तो इसी बिल के बैकग्राउंड और प्रोविजन्स को समझने के लिए मैंने बात कि इंडिया टुडे मैगज़ीन के सीनियर एडिटर अनिलेश एस. महाजन से और उनसे पूछा कि ये बिल क्या कहता है और इस‌ बिल को लाने के पीछे का कारण क्या है? किसे इसका फ़ायदा होगा?

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यूपी की गठबंधन वाली राजनीति

चुनावों के पहले गठजोड़ की परंपरा पुरानी रही है. कुछ छोटे छोटे टर्म्स एंड कन्डीशन होते हैं जिन्हें आपस मे समझ बुझ कर पार्टियाँ एक साथ मैदान में उतरती हैं. उत्तरप्रदेश में एक ऐसा ही गठबंधन हुआ था बीजेपी और निषाद पार्टी के बीच. गठबंधन के लिए निषाद पार्टी की शर्तें तो काफी थीं, उनमें से कुछ को मान कर बीजेपी ने गठबंधन को हरी झंडी दिखा दी थी. गठबंधन के पहले भी और गठबंधन के बाद तक निषाद पार्टी की एक मुख्य मांग थी जो अब तक बनी ही हुई है, वो ये कि निषाद समुदाय के लोगों को आरक्षण कोटा दिया जाए. अनुसूचित जाति के आरक्षण की आस लगाए निषाद समाज ने अब‌‌ बीजेपी पर दबाब बनाना शुरू कर दिया है. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बीजेपी से बड़े स्पष्ट शब्दों मे कह दिया है कि निषाद समाज को अगर आरक्षण नहीं मिलता तो हम बीजेपी को समर्थन भी नहीं देंगे. दूसरी तरफ सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी ने भी निषाद आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. लेकिन अब तक बीजेपी की तरफ से निषाद आरक्षण को लेकर कोई संकेत मिलते नहीं दिख रहे हैं. ज़ाहिर है बीजेपी सरकार अब भी निषादों की इस मांग को लेकर पसोपेश में ही है. अब चारो तरफ से निषाद आरक्षण की आ रही मांगों के बावजूद भी भाजपा अब तक दुविधा में क्यों है? और चुनाव से पहले निषाद वोटर्स के तबके को सन्तुष्ट करने की बजाय भाजपा बीच का रास्ता क्यों खोज रही है?

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ओमिक्रॉन को लेकर बढ़ती चिंता

अमेरिका के हेल्थ एक्स्पर्ट एंथनी फाउची और एम्स के डॉयरेक्टर रणदीप गुलेरिया जैसे मेडिकल साइंस के जानकारों का कहना है कि कोरोना के ओमीक्रॉन वैरिएंट से सतर्क रहने की बेहद जरूरत है क्योंकि वैक्सीन लगाए व्यक्ति को भी ‌ये वेरिएंट अपनी चपेट में ले रहा है. और ये तस्वीर कमोबेश हमें हर देश में दिखाई भी पड़ रही है. भारत में अब तक ओमीक्रॉन से इन्फ़ेक्टेड केसेस की संख्या 160 पार‌‌ जा चुकी है. दिल्ली में भी छह महीने बाद सबसे ज्यादा पॉजिटिविटी रेट‌ देखा गया है.

ब्रिटेन की बात‌ करें तो वहां के एक्स्पर्टस् ने कहा है कि डेल्टा और ओमीक्रॉन मिलकर सुपर वैरिएंट भी बना सकते हैं. दूसरी ओर फाइजर, मॉडर्ना, सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया‌ जैसी मेडिकल कंपनियों ने ओमिक्रॉन की वैक्सीन और बूस्टर डोज पर काम भी शुरू कर दिया है, जहां मुख्यतौर पर पांच‌ साल से कम उम्र के बच्चों को ध्यान में रख‌‌ते हुए वैक्सीन पर शोध किया जा रहा है. तो इसी दौरान विदेश से मुंबई आया एक शख्स कोरोना पॉजिटिव पाया गया, और इसमें खास‌‌ बात ये रही कि इस‌ शख्स ने कोविड वैक्सीन की तीनों डोल ली हुई थी. तो अब इन तमाम बातों को देखते समझते क्या ये कहा जा सकता है कि कोरोना वैक्सीन की कंपोजिशन में बदलाव की अब जरूरत‌ आ‌ गयी है? और वैक्सीन को लेकर अब तक कितनी साफ-साफ जानकारी निकल कर सामने आ पाई है?

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कितने कर्जे में कौन सा देश?

चीन पर प्रति व्यक्ति करीब 9 हज़ार डॉलर का क़र्ज़ है, दूसरी तरफ़ पाकिस्तान में हर नागरिक के उपर 1250 डॉलर की उधारी है, वही भारत‌ में ये आंकड़ा 407 डॉलर है ‌और बंगलादेश में 264  डॉलर. लेकिन इस आंकड़े के‌ सहारे यहां हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि जिस ‌देश में प्रति व्यक्ति क़र्ज़ ‌ सबसे ज्यादा  है, क्या ‌उसकी अर्थव्यवस्था ‌ढंग से चल सकती है, अगर‌‌ हां तो क्यों, और‌ अगर नहीं ‌तो‌‌ क्यों नहीं?

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