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Aaj Ka Din: जर्मनी से बात करने के बाद यूक्रेन सीमा से सेना बुलाने लगा रूस

रूस ने यूक्रेन की सीमा पर सैनिकों को हटाना शुरू कर दिया है तो क्या ये मान लिया जाए कि रूस-यूक्रेन के बीच जो युद्ध की स्थिति बनी बताई जा रही थी वो अब टलती दिख रही है?

रूस के राष्ट्रपति और जर्मन चांसलर के बीच बातचीत के बाद बदल रहे हालात रूस के राष्ट्रपति और जर्मन चांसलर के बीच बातचीत के बाद बदल रहे हालात
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST

जर्मनी से बात करने के बाद रूस ने अपने कुछ सैनिकों को यूक्रेन की सीमा पर से वापस बुलाना शुरू कर दिया है जिसकी तस्वीर भी रूस ने शेयर की है. दूसरी ओर इस घटना के बाद यूक्रेन की तरफ से जवाब में कहा गया कि जब तक वो खुद इस बात की पुष्टि नहीं कर लेते तब तक वो इसे सत्य नहीं मानेंगे.

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वहीं, कुछ रोज पहले भी जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कॉल्ज ने रूस को यूक्रेन पर हमला न करने की चेतावनी दी थी. बहरहाल, अब रूस ने यूक्रेन की सीमा पर सैनिकों को हटाना शुरू कर दिया है तो क्या ये मान लिया जाए कि रूस-यूक्रेन के बीच जो युद्ध की स्थिति बनी बताई जा रही थी वो अब टलती दिख रही है?

मणिपुर में बगैर सीएम फेस चुनाव लड़ेगी बीजेपी

28 फरवरी और 5 मार्च को मणिपुर में चुनाव होने वाले हैं. प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. वीरेन सिंह मुख्यमंत्री हैं. रोचक ये है कि यूपी में सीटिंग सीएम के चेहरे के साथ चुनाव लड़ रही बीजेपी ने मणिपुर में बगैर चेहरे के जाने का फैसला लिया है. बीते हफ्ते पार्टी के महासचिव भूपेंद्र यादव ने ये बताया था. कहा जा रहा है कि बीजेपी ऐसा करके किसी भी तरह की बगावत से बचना चाहती है. क्योंकि सीएम पद के दावेदारों की सूची में लोग ज्यादा है. खुद मुख्यमंत्री वीरेन सिंह के अलावा गोविंददास और विश्वजीत सिंह जैसे दो दावेदार और हैं.

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गोविंददास कांग्रेस से भाजपा में इसी हसरत के साथ ही आए थे और बिस्वजीत सिंह भी मौके बेमौके अपनी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का एक धड़ा ये कह रहा है कि बीजेपी मणिपुर में असम जैसी रणनीति अपनाने की सोच रही है जहां उसने चुनाव में जीत मिलने के बाद सीएम सर्बानंद सोनोवाल को हटा कर हिमंता बिस्व सरमा को सीएम बना दिया था. तो क्यों ऐसा लग रहा है कि मणिपुर में बीजेपी चुनाव के बाद असम वाला फॉर्मूला ही अपना सकती है और मणिपुर के मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए क्या ऐसा होना मुमकिन नजर आता है?

मुस्लिम मतदाताओं पर पड़ता है पोलराइजेशन का प्रभाव?

भारत की राजनीति में धार्मिक सन्दर्भों का इस्तेमाल राजनीतिक दल अपने सुविधानुसार करते रहे हैं. और इस इस्तेमाल से कोई भी दल अछूता नहीं है. यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं. कई सारे दल और नेता डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तौर पर कोशिश में भी हैं कि धर्म को किस तरह से वो वोट बटोरने की तरकीब के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. यूपी की राजनीति में मुस्लिम वोटर्स की तादाद निर्णायक भूमिका में है जो कि कुल आबादी की बीस फ़ीसदी बताई जाती है. वहीं बड़ी तादाद होने के बावजूद यूपी की राजनीति में उनका उतना बड़ा प्रतिनिधित्व नहीं रहा है , और ये दावा कई मुस्लिम नेता करते आए हैं. कहा जाता है कि मुस्लिम समुदाय के अंदर का वोट का कई पार्टियों में बंट जाना एक बड़ा फैक्टर है जिसका इस्तेमाल करके हिन्दू पोलराइजेशन के दम पर  इसका फायदा दूसरे दल ले जाते हैं. बीते कुछ दिन में हिंदू और मुस्लिम दोनों कम्युनिटीज को बतौर वोटर अलग अलग करने की सियासी कोशिशें ये दिखाती भी हैं. सवाल ये है कि इन कोशिशों का असर मुस्लिम वोटर्स पर फर्क पड़ता है क्या? क्या वो वोट करते वक्त इन बातों का ख्याल रखते हैं? हिन्दू पोलराइजेशन का इस्तेमाल लंबे समय से सियासी तौर पर होता रहा है. तो क्या इस पोलराइजेशन का प्रभाव मुस्लिम वोटर्स पर पड़ता है?  

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एलआईसी के आईपीओ को लेकर क्या है चिंता

शेयर मार्केट जो कि उतार-चढ़ाव का दूसरा नाम है, वहां वो एलआईसी लिस्ट होने जा रही है जिसका वादा रहा कि ज़िन्दगी के हर-उतार चढ़ाव में वो अपने पॉलिसी होल्डर्स के साथ खड़ी रहेगी. इसके लिए कम्पनी अपने पांच प्रतिशत' शेयर को आईपीओ की शक़्ल में बेचेगी. करीब तीन चौथाई बीमा क्षेत्र का हिस्सा एलआईसी के पास है, दुनियाभर की पांचवी सबसे बड़ी बीमा कम्पनी है और सोने पर सुहागा ये की सरकारी है, लोगों को भरोसा है. सरकार की इच्छा है कि शेयर मार्केट में उसको लिस्ट कर वे अपने डिसइन्वेस्टमेंट के टारगेट को मीट कर पाएंगे. साथ ही, एक दलील ये कि इससे एलआईसी के काम काज में ट्रांसपेरेंसी आएगी. लेकिन सब धान बाईस पसेरी नहीं. कुछ चिंताएं भी इस ट्रांसपरेंसी के दावे के साथ जुड़ी  हैं और उस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं कि सरकार इस रास्ते निजीकरण की ओर बढ़ रही है तो एलआईसी के आईपीओ से जुड़ी इन्हीं चिंताओं के मद्देनजर सवाल ये है कि भारत सरकार एलआईसी के सिर्फ पांच प्रतिशत शेयर ही मार्केट में लिस्ट कर रही है. इसमें पॉलिसी होल्डर्स और कर्मचारियों के लिये भी रिजर्वेशन है, बावजूद इसके आपत्ति किन बिंदुओं पर है?

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