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दिल्ली में फ्लाईओवर तो बरेली में रेलवे स्टेशन पर मजार... कब रुकेगा सरकारी जमीन कब्जाने का खेल?

अवैध मजारों को लेकर एक दूसरा खुलासा यह है कि ऐसी मजारें सिर्फ उत्तराखंड में नहीं बल्कि पूरे देश में बनी हुई हैं. खास बात यह है कि यह मजारें एक या दो दिन में नहीं बनीं, बल्कि कई वर्षों से यह मजारों का बिजनेस फैलता आ रहा है. आइए आपको देश के अलग-अलग हिस्सों में फैले इस मजार मॉडल के बारे में डिटेल में समझाते हैं.

अवैध मजारों के अनेकों अदाहरण अवैध मजारों के अनेकों अदाहरण
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 11:47 PM IST

बीते दिन गुरुवार को आजतक पर आपने उत्तराखंड में सड़कों और सरकारी संपत्ति पर बनीं अवैध मजारों के बारे में पढ़ा था. आजतक की खबर का असर इतना हुआ कि शुक्रवार को देशभर से लोगों ने वो फोटो, वीडियो भेजे जिनमें कि साफ देखा जा सकता है कि अवैध मजारें सिर्फ उत्तराखंड में नहीं बल्कि पूरे देश में बन रही हैं. खास बात यह है कि यह मजारें एक या दो दिन में नहीं बनीं, बल्कि कई वर्षों से यह मजारों का बिजनेस फैलता आ रहा है. आइए अब आपको राजधानी दिल्ली में बनीं अवैध मजारों के बारे में बताते हैं. 

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दिल्ली के आजादपुर इलाके में फ्लाईओवर पर बनी एक मजार

ऊपर दिख रही तस्वीर दिल्ली के आजादपुर इलाके की है, जहां एक फ्लाईओवर पर एक मजार बनी हुई है और स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मजार सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनाई गई है. वर्ष 2021 में स्थानीय लोगों ने इसका विरोध भी किया था. लेकिन तब इस पर काफी राजनीति हुई और ये कहा गया कि इस मजार को फ्लाईओवर से हटाया नहीं जाएगा.

यह भी पढ़ें- संकट में देवभूमि! सड़क और सरकारी जमीन पर अवैध मजारों का कब्जा, पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

जरा सोचिए कि मजार का मतलब क्या होता है?

बता दें कि मजार उस स्थान को कहते हैं, जहां किसी पीर बाबा या सूफी संत की कब्र होती है. तो इस आधार पर क्या यह मान लिया जाए कि इस फ्लाईओवर पर कोई कब्र थी और फिर उस कब्र के आसपास मजार के रूप में ढांचा खड़ा किया गया? 

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बड़ा सवाल- मजार पहले बनी या फ्लाईओवर?

इससे भी बड़ी बात ये है कि, जिन लोगों द्वारा इस मजार की देखरेख की जाती है, उनका कहना है कि ये मजार वर्ष 1982 में बनी थी लेकिन जब हमने दिल्ली सरकार के PWD विभाग की वेबसाइट चेक की तो हमने ये पाया कि जिस फ्लाईओवर पर ये मजार बनी हुई है, उस फ्लाईओवर का उद्घाटन वर्ष 2010 में हुआ था और ये फ्लाईओवर खास तौर पर 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) के लिए बनाया गया था. तो ये कैसे मुमकिन है कि इससे पहले जब यहां फ्लाईओवर नहीं था तो वहां मजार बन गई? 

दूसरी बात ये कि कुछ लोगों का कहना है कि उस समय जब इस फ्लाईओवर का निर्माण शुरू होना था, तब ये मजार उसके रास्ते में आ रही थी. इसी वजह से कोई विवाद ना हो इसलिए इस मजार को वहां से हटाकर इस फ्लाईओवर पर शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ये बात पूरी तरह गलत है और ये मजार सिर्फ अतिक्रमण के मकसद से बनाई गई है.

लखनऊ में रेलवे ट्रैक के बीच बनी मजार

यहां बात सिर्फ इस एक मजार की नहीं है. इसके अलावा यूपी की राजधानी लखनऊ में चारबाग स्टेशन के पास पटरियों के बीचों एक मजार बनी हुई है, जिसे खम्मन पीर बाबा की मजार कहा जाता है.

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लखनऊ में रेलवे ट्रैक के बीच बनी मजार

स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मजार काफी पुरानी है. लेकिन एक दूसरा तथ्य ये भी है कि, इस मजार के नाम पर वहां पटरियों के बीचों बीच अब एक बहुत बड़ी जगह पर अतिक्रमण हो गया है और ये अतिक्रमण पिछले कुछ वर्षों में हुआ है. यानी वहां मजार थी, लेकिन बाद में इसके इर्द गिर्द निर्माण होता चला गया और रेलवे ने इस पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की.

आज के समय में रेलवे को लेकर ये व्यंग्य किया जाता है कि वो एक बार को पहाड़ खिसका सकता है. लेकिन इन अवैध मजारों को नहीं हटा सकता.

बरेली के इज्जतनगर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर बनी मजार

इसके अलावा बरेली में एक रेलवे स्टेशन है, जिसे इज्जत नगर रेलवे स्टेशन कहते हैं. यहां रेलवे प्लेटफॉर्म के बीचों बीच एक अवैध मजार बनी हुई है, जिसे हटाने के लिए रेलवे की तरफ से हाल ही में एक नोटिस जारी किया गया था. लेकिन इसके बाद इस नोटिस का जबरदस्त विरोध हुआ और मजार की देखरेख करने वाले लोगों ने ये कहा कि वो इस मजार को प्लेटफॉर्म से हटाने नहीं देंगे.

गौरतलब है कि जुलाई 2021 में भारत सरकार ने संसद में ये जानकारी दी थी कि, देशभर में ऐसे कुल 179 स्थान हैं, जहां रेलवे स्टेशन और उसके परिसर और पटरियों के आसपास अवैध धार्मिक स्थल बने हुए हैं. जिनमें मजारें बड़ी संख्या में हैं. 

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भारत सरकार ने संसद में सार्वजनिक किया आंकड़ा

आजतक की टीम ने देश के अलग-अलग राज्यों और शहरों में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा करके बनाई गई मजारों से ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की और इस दौरान हमें दो अहम बातें पता चलीं.  

पहली बात ये कि, इन अवैध मजारों में कब्र तो एक छोटे से क्षेत्र में है. लेकिन कब्र के अलावा मजार के रूप में जो बाकी ढांचा बनाया गया है, वहां कई लोग रहते हैं. यानी ये कहा जा सकता है कि इनमें से बहुत सारी मजारें तो इसलिए बनाई जाती हैं ताकि वहां सरकारी जमीन पर सुरक्षित तरीके से रहा जा सके और उस अतिक्रमण पर बुलडोजर चलने का भी कोई खतरा ना हो. दूसरी बात ये कि, देशभर में जहां भी मजारें बनी हुई हैं, वहां मुसलमानों से ज्यादा हिंदू जाते हैं.

दो वर्गों में बंटे मुसलमान

दरअसल मुसलमान प्रमुख रूप से दो वर्गों में बंटे हुए हैं. इनमें एक हैं, सुन्नी मुसलमान और दूसरे हैं शिया मुसलमान. अब इनमें जो सुन्नी मुसलमान हैं, उनकी संख्या भारत में सबसे ज्यादा है और इन सुन्नी मुसलमानों को दो फिरकों में बांटा गया है. एक है देवबंदी और दूसरे हैं बरेलवी.

अब इस्लामिक धर्मगुरुओं का कहना है कि जो बरेलवी मुसलमान हैं वो तो मजार पर चादर चढ़ाने को सही मानते हैं. लेकिन ज्यादातर देवबंदी मुसलमान मस्जिद में जाकर इबादत करते हैं और वो मजार नहीं जाते. बल्कि मुस्लिम धर्मगुरुओं का ये कहना है कि मजारों में तो हिंदू जाते हैं और उनके धर्म में मजार में इबादत करने को गलत माना गया है. इसलिए यहां ये भी एक बड़ा पॉइंट है. 

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SC की अहम टिप्पणी

उल्लेखनीय है कि ऐसे मामलों में बढ़ोतरी के बाद वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था कि अगर उसके निर्देश के बाद देश में किसी सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके कोई धार्मिक स्थल बनाया जाता है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि, जो अवैध धार्मिक स्थल पहले से बने हुए हैं, उन्हें हटाने के लिए सरकारों को जरूरी कदम उठाने चाहिए. लेकिन वोटबैंक छिन जाने के डर से कभी ऐसे मामलों में ईमानदारी से कोई कोशिश नहीं की गई.

यहां देखें वीडियो-

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