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आज का दिन: CBSE 12वीं की परीक्षा, लेकिन कैसे किया जाएगा बच्चों का इवैल्युएशन?

कल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसके बाद सीबीएसई 12वीं की परीक्षा को रद्द करने का फैसला लिया गया. इसके बाद आईसीएसई बोर्ड ने भी 12वीं की परीक्षा को कैंसिल कर दिया.

CBSE परीक्षा को लेकर बैठक करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी CBSE परीक्षा को लेकर बैठक करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2021,
  • अपडेटेड 9:09 AM IST

2 जून 2021 के मॉर्निंग न्यूज़ पॉडकास्ट 'आज का दिन' में अमन गुप्ता के साथ सुनिए नीचे दी गई ख़बरों पर विस्तार से बात, देश-दुनिया की ताज़ा हेडलाइंस, आज के अख़बारों से सुर्ख़ियां और इतिहास में आज के दिन की अहमियत. प्रोग्राम की लिंक सबसे नीचे दी गई है. वहां क्लिक करके आप इसे सुन पाएंगे.

कोविड के कारण अभी हाल ही में सीबीएसई की 10वीं की परिक्षा तो कैंसिल कर दी गई थी लेकिन 12वीं की परीक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति थी। लिहाज़ा, कल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसके बाद सीबीएसई 12वीं की परीक्षा को रद्द करने का फैसला लिया गया। इसके बाद आईसीएसई बोर्ड ने भी 12वीं की परीक्षा को कैंसिल कर दिया। बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा की हमारे छात्रों का स्वास्थ्य और सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है और इस पहलू पर कोई समझौता नहीं होगा, सो, ऐसा फैसला लिया गया है.

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बच्चे इस फ़ैसले से ख़ुश तो हैं लेकिन उनके कुछ सवाल भी हैं कि आगे दाखिला उनका कैसे होगा ? 12वीं का इवैल्युएशन किस तरह किया जाएगा ? , सरकार के इस कैंसिलेशन वाले फैसले से पहले सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि “कोई समस्या नहीं है, आप फैसला कीजिए. लेकिन अगर आप परीक्षा को लेकर पिछले साल की नीति से अलग निर्णय लेते हैं तो आपको इसका उचित कारण बताना होगा”। पिछले हफ्ते CBSE बोर्ड ने दो विकल्प भी सुझाए थे जिसपर सरकार विचार कर रही थी। पहला विकल्‍प था सभी विषयों की परीक्षा घटे हुए एग्‍जाम पैटर्न पर आयोजित करना, और दूसरा विकल्‍प था केवल महत्‍वपूर्ण विषयों की परीक्षा आयोजित करना.  लेकिन , अचानक से सरकार ने इन विकल्पों से इतर ऐसा फैसला क्यों लिया ? कौन सी चिंताओं का हल न निकल सका ? इनका इवैल्युएशन कैसे किया जाएगा ? और क्या ये फैसला राज्य के बोर्ड एग्जाम्स को भी प्रभावित कर सकता है?

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय आपने एक नाम सुना होगा, स्वपन दासगुप्ता , पेशे से पत्रकार दासगुप्ता को साल 2016 में राज्यसभा सदस्य के तौर पर मनोनीत किया गया था. पिछले दिनों जब स्वपन दासगुप्ता को बीजेपी ने पश्चिम बंगाल चुनाव में उतारने का फैसला किया, तो उनके राजनीतिक पार्टी में शामिल होने को लेकर विवाद खड़ा हो गया. टीएमसी का कहना था कि राज्यसभा के मनोनीत सांसद नियम के मुताबिक किसी भी पार्टी के सदस्य नहीं हो सकते हैं. जब उनकी राज्यसभा सदस्यता पर विवाद बढ़ा तो उन्होंने अपना इस्तीफा सभापति एम. वैंकेया नायडू को भेज दिया, जिसे मंजूरी मिल गई. ये तो हुई एक बात, अब राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने बंगाल के चुनावी समर में तारकेश्वर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, यहां तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार रामेंदु सिंहराय के सामने उन्हें हार नसीब हुई. लेकिन, अब हार के करीब एक महीने के बाद, स्वपन दासगुप्ता को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बार फिर राज्यसभा सांसद के तौर पर मनोनीत कर दिया है. वे 24 अप्रैल 2022 तक इस सीट से राज्यसभा सांसद बने रहेंगे, तो एक व्यक्ति का पहले राज्यसभा सदस्य बनाना, फिर उनका इस्तीफा, पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ना, हार जाना और अब दोबारा से उनको राज्यसभा में मनोनीत कर दिया जाना, भारतीय राजनीति में ये फैसला चौंकाता क्यों नहीं है ? संवैधानिक और नैतिक स्तर पर ये फैसला क्या प्रोब्लेमेटिक नज़र आता है ?

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कोरोना काल के दौरान सरकार पर आंकड़ों के हेरफेर के आरोप लगते रहे हैं. फिर चाहे वह मौत के आंकड़े हो या कोरोना संक्रमितों के। हालांकि सरकार इन आरोपों से इनकार भी करती रही है लेकिन कोई ना कोई मामाला ऐसा सामने आ ही जाता है, जो सरकारी दावों से इतर कुछ और ही कहानी कहता है। अब वैक्सीन के ही केस में लीजिये, लोगों तक जल्द से जल्द कोरोना वैक्सीन पहुंचाने की कवायद तो शुरू हुई लेकिन इस कवायद में सरकारी सिस्टम की पोल रह रह कर खुलती रही है, मामला गुजरात के उपलेटा का है जहां कागजी कार्रवाई पूरा करने के चक्कर में एक मृत व्यक्ति को  कोरोना वैक्सीन की डोज लगा दी गई. क्या था ये पूरा मामला ? और क्या ऐसे और भी मामले सामने आये हैं? किसकी लापरवाही है इसके पीछे?

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