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आज का दिन: भारत में आकाशीय बिजली गिरने से इतनी मौतें क्यों होती है?

भारत में भी हर साल बिजली गिरने से कई लोगों की मौत हो जाती है. यहां तक कि साल भर में 2 हज़ार लोगों तक की मौत की ख़बर आई है तो सवाल ये है कि भारत में इतनी मौतें वो भी बिजली गिरने से क्यों होती है?

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 9:21 AM IST

बीते एक दो दिनों के भीतर आसमानी बिजली देश के अलग अलग हिस्सों में कहर बनकर गिरी. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश इन तीन राज्यों में ही आसमानी बिजली की चपेट में आकर 73 लोगों की मौत हो गई. रविवार को राजस्थान के आमेर महल में बने वॉच टॉवर पर कुछ लोग घूमने गए थे. उसी समय अचानक आसमानी बिजली वहां गिरी और 11 लोग ख़ाक हो गए. यहां और भी अलग अलग हिस्सों में मिलाकर अब तक मौतों का आंकड़ा 20 पहुंच गया है. उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में बिजली गिरने से 42 लोगों की मौत हुई.  सबसे ज्यादा मौतें प्रयागराज जिलें में हुई.  मध्य प्रदेश के कई इलाक़ों में बीते 24 घंटों में बिजली गिरने की वजह से 11 लोगों की मौत हुई है. तो बिजली का गिरना दुनिया की सबसे ज़्यादा घटने वाली प्राकृतिक घटनाओं में हैं. भारत में आधिकारिक तौर पर 12 आपदाओं को प्राकृतिक आपदा माना गया है, लेकिन आसमानी बिजली गिरना उनमें शामिल नहीं है. भारत में भी हर साल बिजली गिरने से कई लोगों की मौत हो जाती है. यहां तक कि साल भर में 2 हज़ार लोगों तक की मौत की ख़बर आई है तो सवाल ये है कि भारत में इतनी मौतें वो भी बिजली गिरने से क्यों होती है? कौन से राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित रहते हैं और इससे होने वाली मौतों को कम करने के तरीके क्या हैं?

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कोरोना की तीसरी लहर  का आना बाकी है और इस बीच दूसरी लहर के बाद जैसे ही कुछ राहत मिली लोगों ने रिवेंज ट्रैवल करना शुरू कर दिया है. लोग बड़ी संख्या में घूमने जा रहे हैं, रथ यात्रा शुरू हो गई है, पाबंदियां खुल गई हैं. लोगों के मन से शायद कोरोना का डर खत्म हो गया है. मौजूदा हालात में भी देश में जिस तरह से लोग खुशी जाहिर कर रहे हैं, IMA ने इस बात पर गहरा दुख जाहिर किया है. IMA ने कहा कि तीसरी लहर नजदीक है इसे रोका नहीं जा सकता और ऐसे में टूरिज्म और धार्मिक यात्राएं कुछ और महीने इंतजार कर सकते हैं. आईएमए ने केंद्र और राज्य सरकारों से कम से कम तीन महीने के लिए कोविड गाइडलाइन्स को सख्ती से लागू करने का आग्रह किया है. जॉनरोज ऑस्टिन जयलाल ने कहा कि इस नाजुक मुकाम पर हमें अगले दो-तीन महीने तक कोई खतरा नहीं उठाना चाहिए। सभी राज्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को जमीन पर उतारें और कोरोना के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ें. मैंने आईएमए के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट डॉ. नवजोत सिंह दहिया से बात की और पूछा की क्यों लगता है कि तीसरी लहर को नहीं रोका जा सकता है?

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नरसिम्हा फ़िल्म का वो डायलॉग अगर आपको याद हो जब दाल रोटी के भाव बढ़ाने को लेकर फ़िल्म में ओम पुरी ने कहा था कि" भाव इतना बढ़ाओ की दाल रोटी के चक्कर में लोगों को बगावत करने की फुर्सत तक ना मिले, लेकिन इतना भी मत बढ़ा दो कि लोग बग़ावत पर उतारू हो जाएं".....ये बरसो पुराना डायलॉग है लेकिन ऐसे ही कुछ हालत क्यूबा में देखने को मिल रहे हैं. एक ऐसा देश जो क्रांति के लिए जाना जाता है. ऐसा देश जो कभी अमेरिका जैसे सुपरपावर देश से टक्कर लेता था. आज उसी क्यूबा में हाल के समय का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन देखा जा रहा है. 60 सालों में पहली बार हज़ारों की संख्या में लोग देश के कई क़स्बों और शहरों में सड़कों पर हैं. वे 'आज़ादी' और 'तानाशाही का ख़ात्मा हो' के नारे लगा रहे हैं. दरअसल, क्यूबा में खाद्य पदार्थों की कमी, महंगाई, वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार और कम्युनिस्ट शासन के प्रति विरोध प्रदर्शन करते हुए हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं. हालांकि, हैरानी कि बात ये रही कि ऐसे समय में देश के मुखिया को प्रदर्शन को रोकने के उपाय खोजने चाहिए थे. लेकिन, क्यूबा के राष्ट्रपति मिगुएल डियाज़-कैनेल ने नेशनल टेलीविजन पर आकर एक भाषण दिया और अपने समर्थकों को भी सड़कों पर उतर कर प्रदर्शनकारियों का सामना करने को कहा.... राष्ट्रपति यहीं नहीं रुके उन्होंने इस अशांति के पीछे अमेरिका का हाथ बताया. अब इस प्रोटेस्ट में आगे और क्या हुआ और इस प्रदर्शन के पीछे की कहानी क्या है. इसे समझने के लिए हमने बात की शोभन सक्सेना से जो 2012 से ब्राजील के साओ पाउलो में एक विदेशी संवाददाता रहे हैं. उन्होंने लैटिन अमेरिका में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए कई स्टोरीज़ की है. तो शोभन, पिछले तीन दशकों में यह पहली बार है जब क्यूबा में इस स्तर का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला है. वैसे तो ये कहा जा रहा है कि महंगाई, वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार को लेकर लोग सड़कों पर हैं. क्या विरोध प्रदर्शन के इतने व्यापक होने के कोई और भी कारण हो सकते हैं? क्या अमेरिका को दोष देना सही है?

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1989 में सोलर तूफान आया था. इसके चलते कनाडा के क्यूबेक शहर की बिजली करीब 12 घंटे के लिए चली गई थी. लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. 1859 में जियोमैग्‍नेटिक तूफान आया था. इसने यूरोप और अमेरिका में टेलीग्राफ नेटवर्क को तबाह कर दिया था. कुछ ऑपरेटर्स ने बताया था कि उन्‍हें इलेक्ट्रिक का झटका लगा। कुछ लोगों का कहना था कि तूफान के कारण बिना बैट्री के ही इक्विपमेंट्स काम कर रहे थे. अब एक ऐसा ही सोलर तूफान धरती से आज या कल में टकराने वाला है. इसे  Geomagnetic Solar Storm भी कहा जा रहा है. ये 16 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है और NASA का तो कहना ये है कि इसकी रफ्तार अभी और बढ़ सकती है. विशेषज्ञों की मानें तो अंतरिक्ष में महातूफान आने पर पूरी दुनिया की बिजली गुल हो सकती है. तो क्या है ये Geomagnetic Storm? क्या कोई तरीक़ा है जिससे हम इन सोलर storm से हम बच सकें?


इन सब ख़बरों पर विस्तार से बात के अलावा हेडलाइंस और आज के दिन की इतिहास में अहमियत सुनिए 'आज का दिन' में अमन गुप्ता के साथ.

13 जुलाई 2021 का 'आज का दिन' सुनने के लिए यहां क्लिक करें...

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