
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने 100 दिन पहले 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर इतिहास रचा था. मुख्यमंत्री का ताज भगवंत मान सिंह के सिरा सजा था. तीन महीने बाद भगवंत मान के गृह क्षेत्र संगरूर में आम आदमी पार्टी अपना किला बचाने में पूरी तरह विफल रही है. AAP ने अपनी इकलौती संसदीय सीट गंवा दी है और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत मान सांसद चुने गए हैं. संगरूर उपचुनाव की हार को आम आदमी पार्टी के साथ-साथ मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए सियासी तौर पर बड़ा झटका माना जा रहा है?
संगरूर लोकसभा सीट मुख्यमंत्री भगवंत मान के इस्तीफे से खाली हुई थी, जिसके चलते उपचुनाव हुए थे. इस संसदीय सीट के तहत 9 विधानसभा सीटें आती हैं. 2022 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में सभी 9 सीटें आम आदमी पार्टी जीतने में सफल रही थी, लेकिन उपचुनाव में पार्टी न तो सीट बचा सकी और न ही वोट शेयर. 2019 में AAP का वोट शेयर 37 प्रतिशत था जो उपचुनाव में घटकर 34.79 प्रतिशत रह गया. अकाली दल (अमृतसर) 35.61 वोट शेयर के साथ ये सीट जीतने में कामयाब रही.
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बने अभी 100 दिन ही हो रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान के गृह क्षेत्र संगरूर में पार्टी की हार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. साथ ही इस हार में भगवंत मान के लिए भी संदेश छिपा है. दिल्ली के सीएम केजरीवाल की तरह भगवंत मान खुद पंजाब में अभी तक कोई छाप नहीं छोड़ पाए हैं और न ही अपना सियासी प्रभाव जमा सके हैं. इसी का नतीजा है कि उन्हें घर में ही सियासी मात मिली है. इसके चलते लोकसभा में आम आदमी पार्टी जीरे हो गई है, क्योंकि 2019 में भगवंत मान सिंह एकलौते सांसद जीतकर आए थे और अब हार के बाद कोई भी लोकसभा सदस्य पार्टी का नहीं बचा.
सूबे में 100 दिन की सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप के चलते भगवंत मान के एक मंत्री को कुर्सी छोड़नी पड़ी है. कानून व्यवस्था पर अभी तक किसी तरह अंकुश नहीं लग सका है. पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की सरेआम हत्या कर दी गई तो बेदअबी का मामला अभी तक सुलझ नहीं सका है. ऐसे में संगरूर लोकसभा सीट के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की हार और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत मान की जीत ने भगवंत मान सिंह के लिए टेंशन खड़ी कर दी है.
1. सिद्धू मूसेवाला फैक्टर
पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की 29 मई को मानसा में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी. मूसेवाला संगरूर से सांसद बने सिमरनजीत सिंह मान के करीबी थे और उन्हें बापू (पिता का रूप) कहते थे. एक वायरल वीडियो में मूसेवाला ने कहा था कि वे सिमरनजीत मान से मिलना चाहते हैं. ऐसे में मूसेवाला की हत्या से पैदा हुई सरकार विरोधी लहर से जाहिर तौर पर सिमरजीत सिंह मान को फायदा हुआ माना जा रहा है. मूसेवाला के समर्थक राज्य सरकार से नाराज़ थे, जिसने उनकी हत्या से ठीक पहले उनके सुरक्षा घेरे में कटौती की थी. मूसेवाला के अंतिम संस्कार में उनके पिता की हालत देख बुजुर्ग भी भावुक हो गए थे. माना जा रहा है कि उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा.
2. धार्मिक वोट बैंक में बदलाव
पंजाब में धर्म को पारंपरिक रूप से राजनीति का हिस्सा माना जाता रहा है. सिख पंथक वोट कहे जाने वाले धार्मिक मतों को लेकर शिरोमणि अकाली दल की राजनीति करती रही है, इसलिए अकाली दल ने जेल में बंद खालिस्तानी आतंकवादी बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर को मैदान में उतारा था, जो पूर्व सीएम बेअंत सिंह हत्याकांड में दोषी है. हालांकि, अकाली दल संगठन के विघटन, वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देने और मुख्य धार्मिक मुद्दों से हटने के आरोपों से अपने पंथक वोट शेयर को बरकरार नहीं रख सकी. सिमरनजीत सिंह मान इस वोट शेयर को आकर्षित करने में सक्षम रहे, क्योंकि इसमें एक बड़ा बदलाव मतदाताओं का हुआ है. उपचुनाव में इसी का फायदा सिमरनजीत मान को मिला और अकाली दल को नुकसान उठाना पड़ा.
3. बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति
आम आदमी पार्टी नेतृत्व भले ही इनकार करे, लेकिन संगरूर की हार के लिए एक प्रमुख कारण राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था भी मानी जा रही है. विपक्षी दल इस मुद्दे को भुनाने में सफल रहे, क्योंकि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद चाहे मूसेवाला की हत्या हो या फिर पंजाब पुलिस के खुफिया कार्यालय पर आरपीजी हमले. पंजाब में गैंगवार और आम आदमी पार्टी के शासन के 100 दिनों के दौरान हुई हत्याओं को विपक्ष ने मुद्दा बनाया था. इसी का नुकसान आम आदमी पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ा है.
4. बेअदबी के मामले नहीं सुलझे
पंजाब में बेअदबी के मामले अभी तक नहीं सुलझ सके हैं, जिसके चलते आम लोगों में नाराजगी मानी जा रही है. चुनाव के वक्त लोगों से आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के लिए जिम्मेदार लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा. ऐसे में माना जाता है कि सरकार बनने के 100 दिन के बाद भी इस मामले को लेकर सरकार किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. ऐसे में जमीन पर बात करने पर लोगों का मानना था कि बेअदबी से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं, क्योंकि सरकार इन मामलों को सुलझाने में विफल रही है.
5. चुनावी वादे नहीं हुए पूरे
भगवंत सरकार भले ही चुनाव पूर्व किए वादों को पूरा न करने के लिए खाली खजाने का हवाला दे रही हो, लेकिन जमीन पर लोग इस कारण को मानने के लिए तैयार नहीं थे. वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए लोगों को सरकार को कोसते हुए पाया गया, विशेष रूप से प्रत्येक वयस्क महिला को 1000 रुपये प्रति माह के अलावा मुफ्त और निर्बाध बिजली आपूर्ति, जिसने पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जनादेश हासिल करने में मदद की थी. ऐसे में मुफ्त बिजली का मुद्दा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए महंगा पड़ा, जिसके चलते नतीजे के दूसरे दिन सदन में बजट सत्र के दौरान मुफ्त बिजली के वादे के पूरा करने की बात कही गई.
मुख्यमंत्री भगवंत मान से लेकर राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा समेत आप नेताओं ने संगरूर में मिली हार को जनता के द्वारा दिया गया जनादेश बताकर जरूर स्वीकार कर लिया है, लेकिन चिंता जरूर बढ़ गई है. संगरूर उपचुनाव के नतीजे गुजरात के अलावा पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में पार्टी की विस्तार योजनाओं के लिए एक बड़ा झटका है. संगरूर में सिमरनजीत सिंह मान की जीत से आप सरकार की चिंता भी बढ़ सकती है, क्योंकि वे खालिस्तानी विचारक रहे हैं. ऐसे में चुनाव जीतने के बाद हैशटैग खालिस्तान ट्रेंड कर रहा था, जो भगवंत मान सरकार के लिए टेंशन बढ़ाने वाला है?
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