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'हम वो हैं जिनका कोई देश नहीं', दिल्ली में UNHCR के बाहर प्रदर्शन करते अफगानी नागरिक

राजधानी दिल्ली के वसंत विहार स्थित UNHCR के दफ्तर के बाहर सोमवार सुबह से ही अफगानी नागरिकों का प्रदर्शन जारी है. उनकी मांग है कि उन्हें किसी ऐसे देश भेजा जाए जहां उन्हें अप्रवासी नागरिक का दर्जा मिले, ताकि वो पढ़ाई और काम कर सकें.

रात में भी UNHCR के बाहर ही बैठे रहे अफगानी नागरिक. रात में भी UNHCR के बाहर ही बैठे रहे अफगानी नागरिक.
अमित भारद्वाज
  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 11:46 AM IST
  • प्रदर्शनकारियों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल
  • दो मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं अफगान लोग

'मेरे पिता तालिबान के फिदायीन हमले में मारे गए थे. उसके बाद हमारा परिवार अफगानिस्तान से भारत आ गया था.' ये बातें 19 साल के एजाज अहमद गुस्से में और चिढ़चिढ़ाकर कहते हैं. एजाज अहमद उन प्रदर्शनकारियों में शामिल हैं, जो दिल्ली के वसंत विहार स्थित यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीस (UNHCR) के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं. 

UNHCR के दफ्तर के बाहर सोमवार को अफगान शरणार्थियों (Afghan Refugees) ने प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी रात में भी दफ्तर के बाहर ही बैठे रहे. जैनब हमीदी 22 साल की हैं और 10 साल पहले उनका परिवार टूरिस्ट वीजा पर भारत आया था और यहीं बस गया. दोबारा अफगानिस्तान नहीं लौटने का कारण पूछने पर जैनब तालिबान और उसका आतंक बताती हैं.

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जैनब बताती हैं, 'मेरी मां एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं. मेरा बड़ा भाई काबुल में एक अमेरिकी एजेंसी के साथ इंटरप्रेटर का काम करता था. एक दिन तालिबानियों ने हमें धमकाया. तालिबान ने मेरी छोटी बहन को उस वक्त अगवा कर लिया जब वो स्कूल जा रही थी. तीन दिन बाद उसकी लाश को वो हमारे दरवाजे पर छोड़कर चले गए.'

प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल हुईं.

जैनब आगे कहती हैं, 'तालिबान ने लगातार हमें सरकारी एजेंसियों के साथ काम नहीं करने को लेकर धमकाया. उस वक्त हम किसी सुरक्षित जगह जाना चाहते थे. 2012 में हम भारत आए और एक ऐसे देश में जाने की कोशिश कर रहे हैं जहां हमें एक नागरिक या अप्रवासी के तौर पर स्वीकार किया जाए.' जैनब कहती हैं कि इस वक्त प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, लेकिन उनके जैसे कई अफगानियों (Afghanis) के पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं है.

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जैनब कहती हैं, 'तालिबान ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया है. पहले हमें उम्मीद तो थी कि हमारे पास अपना देश है, लेकिन अब हमने उसे भी खो दिया है.' वो बताती हैं कि तालिबान के आने से कइयों की कमाई भी छूट गई है, क्योंकि कई सारे अफगानी ऐसे भी थे जो दिल्ली और काबुल के बीच कारोबार करते थे.

जैनब की तरह ही सैकड़ों अफगानी नागरिक UNHCR के दफ्तर के बाहर बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी सिर्फ दो ही मांगें हैं. पहली तो ये कि उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया जाए और दूसरी उन्हें उन देशों में भेजा जाए जो इस संकट की घड़ी में उन्हें अप्रवासी के तौर पर स्वीकारें.

प्रदर्शनकारियों ने बाहर ही बैठकर खाना खाया.

23 अगस्त की सुबह से ही UNHCR के बाहर बच्चे, बूढ़े और महिलाएं जुटने लगे थे. 19 साल के एजाज अहमद भी यहां आए थे. एजाज के पिता अफगानिस्तान में सुरक्षाबलों के साथ काम करते थे. सितंबर 2016 में तालिबान के फिदायीन हमले में उनके पिता मारे गए थे. अहमद बताते हैं, 'हमें डर था कि तालिबान हमें भी मार डालेंगे, इसलिए 2018 में कनाडा और इंग्लैंड जैसे देशों में अप्रवासी के तौर पर जाने की उम्मीद के साथ हमने अपना देश छोड़ दिया.' वो कहते हैं कि भारत उनके परिवार के लिए एक अस्थायी घर है. उन्होंने कई बार UNHCR में अर्जी दी कि उन्हें किसी ऐसे देश भेजा जाए जहां उन्हें अप्रवासी का दर्जा मिले, लेकिन UNHCR की ओर से उनकी अर्जी मंजूर ही नहीं की गई. बाद में कोरोना की वजह से काम और रुक गया.

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UNHCR के बाहर सैकड़ों अफगानी नागरिक जुटे हैं.

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अहमद कहते हैं, 'मेरी मां चाहती हैं कि मैं और मेरी छोटी बहनें आगे की पढ़ाई करें. लेकिन ये तभी हो पाएगा जब हमें अप्रवासी का दर्जा मिलेगा.' अहमद ने अफगानिस्तान में 12वीं तक की पढ़ाई की है और आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं. वो बताते हैं, 'मैं भारतीय यूनिवर्सिटीज में एक विदेशी नागरिक के तौर पर ज्यादा फीस नहीं भर सकता. मेरी मां की तबीयत बहुत खराब है. इसलिए मैं न तो भारत में पढ़ाई कर सकता हूं और न ही काम कर सकता हूं.' 

अहमद के दोस्त 19 साल के वली और भी ज्यादा निराश और गुस्से में हैं. उन्होंने दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग से 12वीं की पढ़ाई की है. वली कहते हैं, 'जब आपका भविष्य अधर में हो तो आप कैसे महसूस करेंगे? बेशक निराशा ही होगी.'

अफगानियों का कहना है जब तक मांग नहीं मानी जाती, तब तक डटे रहेंगे.

वली तालिबान के आतंक की कहानियां सुनकर बड़े हुए हैं. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि तालिबान इतनी क्रूर ताकत के साथ सत्ता में लौटेगा. वली जैसी पूरी पीढ़ियों का भविष्य अफगानिस्तान संकट (Afghanistan Crisis) के कारण अधर में लटका हुआ है. वली समेत सैकड़ों अफगानी UNHCR के बाहर डटे हुए हैं और उनका कहना है कि 'जब तक हमारे दर्जे को लेकर UNHCR कुछ साफ नहीं करता, तब तक हम यहां से नहीं हटेंगे.'

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(रिपोर्टः अमित भारद्वाज)

 

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