
हावड़ा के एक तंग कमरे में रह रहे रहीम खान पिछले 2 हफ्तों से अफगानिस्तान में रहने वाले अपने दोस्तों और परिजनों का हाल जानने की कोशिश कर रहे हैं. कभी किसी ने फोन उठा लिया तो उससे अफगानिस्तान और उसका हाल पूछ कर तसल्ली कर लेते हैं. जब इससे भी बात नहीं बनती तो दुआओं के सहारे सुकून खोज रहे हैं. जो कि फिलवक्त अफगानिस्तान की फिजाओं से विदा ले चुका है.
कुछ ऐसा ही यही हाल असलम खान का है. पिछले दो हफ्तों से उनकी खाला यानी मौसी मरियम का कुछ पता नहीं चल पा रहा है. मरियम अफगानिस्तान के गजनी में रहती हैं जहां इन सभी का पुश्तैनी घर है. कमोबेश हावड़ा के काबुली कोठी में रहने वाले सभी अफगान हैरान परेशान हैं.
डूबी हुई आंखों से असलम खान बताते हैं कि जो 20 साल अफगानिस्तान को बनाने में खर्च हुए एक रात में खत्म हो गया. मेरी खाला का भी कुछ पता नहीं चल रहा है. हम लोग टीवी में खबर देख कर हाल चाल ले रहे हैं. लोग बेहद डरे हुए हैं. तालिबान का आना बुरा है.
वहीं रहीम खान भी अफगानिस्तान के हालात से बेहद डरे हुए हैं. रहीम खान कभी अफगानिस्तान नहीं गए. उनके पिता सालों पहले अफगानिस्तान से व्यापार के लिए हिंदुस्तान आ गए थे. रहीम कहते हैं कि अब सिर्फ डर का माहौल है. उनके कई दोस्तों से मैसेंजर पर बात होती थी पर अब ज्यादातर लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा है. रहीम यहां सूद पर रुपए देने का काम करते हैं और असलम साड़ी बेचते हैं.
पिछले 80 सालों से काबुली कोठी अफगानों का ठिकाना है. इन सबके बाप-दादा अफगानिस्तान से व्यापार करने एक सदी पहले यहां आए थे. फिलहाल यहां पर लगभग 12 अफगान रह रहे हैं. ज्यादातर यहीं पैदा हुए हैं, लेकिन अफगानिस्तान के हालात इनको परेशान किए हुए हैं. ये सभी लगातार खबरों पर नजरें गड़ाए हुए हैं.