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फैसले कर्नाटक में, संदेश देशभर के लिए, जानिए कैसे फ्रंटफुट पर आकर सिद्धारमैया साध रहे हैं एक तीर से कई निशाने

कर्नाटक में सिद्धारमैया की सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा करने के साथ-साथ कुछ ऐसे सियासी फैसले भी ले रही है जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है. सरकार धर्मांतरण पर कानून निरस्त करने का फैसला ले चुकी है और हेडगेवार-सावरकर पर चैप्टर हटाने का भी फैसला कर चुकी है.

कर्नाटक में जल्दी में क्यों है सिद्धारमैया, साध रहे हैं एक तीर से कई निशाने कर्नाटक में जल्दी में क्यों है सिद्धारमैया, साध रहे हैं एक तीर से कई निशाने
किशोर जोशी
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2023,
  • अपडेटेड 1:43 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार धड़ाधड़ फैसले ले रही है. इनमें से कुछ फैसले ऐसे हैं जिनमें आगामी चुनावों के साथ-साथ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए भी संदेश छिपा है. पिछली सरकार के फैसलों को पलटने के क्रम में गुरुवार को सरकार ने उस धर्मांतरण रोधी कानून को निरस्त करने का फैसला किया जिसे पिछली बीजेपी (BJP) सरकार लाई थी.

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इतना ही नहीं पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने कन्नड़ और सामाजिक अध्ययन की किताबों में जीबी हेडगेवार और वीर सावरकर समेत विवादित लेखकों के जो भाषण शामिल किए थे, कांग्रेस सरकार ने उन भाषणों को भी हटाने का फ़ैसला किया है. अब ऐसा दावा किया जा रहा है कि सिद्धा सरकार राज्य के स्कूल-कॉलेजों में लगे हिजाब बैन को भी हटा सकती है.

धर्मांतरण कानून को लेकर सिद्धा ने किया था वादा

दरअसल जब बीजेपी सरकार ने विधानसभा में धर्मांतरण का कानून पास किया था तो उस समय सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे. उन्होंने तब कहा था कि जिस दिन कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी, उसके बाद इस कानून को वापस लिया जाएगा. अब, जब सिद्धारमैया सरकार ने कानून को रद्द करने का फैसला कर लिया है तो साफ है कि जो लोग अब अपना धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं, वो आसानी से कर सकते हैं और उन्हें डीएम की परमिशन नहीं लेनी होगी.  

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इस फैसले के जरिए सिद्धारमैया ने पार्टी समर्थकों को भी मजबूत संदेश दिया है कि वह केवल खोखले वादे ही नहीं करते हैं बल्कि उसे लागू भी करते हैं. 

हेडगेवार-सावरकर पर चैप्टर हटाने का फैसला

इतना हीं नहीं सिद्धारमैया कैबिनेट ने कन्नड़ और सोशल स्टडीज़ की पाठ्यपुस्तकों से आरएसएस के संस्थापक जीबी हेडगेवार और सावरकर से जुड़े चैप्टर भी हटाने का फैसला किया है. जबकि सावित्रीबाई फुले, चक्रवर्ती सुलिबेले, इंदिरा गांधी को जवाहरलाल नेहरू के पत्र और बीआर अंबेडकर पर कविताएं पाठ्यक्रम में शामिल की जाएंगी. मतलब साफ है कि कांग्रेस अपने उस वोट बैंक को कतई निराश नहीं करना चाहती है जिनकी बदौलत उसे जीत मिली है. यह केवल कर्नाटक के लिए ही नहीं बल्कि 2024 के चुनावों से पहले भी अपने उस वोट बैंक के लिए एक संदेश है जिसकी मदद के जरिए वह कर्नाटक की सत्ता पर काबिज हुई.

हिजाब पर क्या होगा रूख?

कुछ समय पहले ही एमनेस्टी इंडिया ने सिद्धारमैया सरकार से हिजाब पर बैन वापस लेने की मांग की थी. जब कर्नाटक के मंत्री जी परमेश्वरन से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हम देखेंगे कि भविष्य में हम क्या बेहतर कर सकते हैं, फिलहाल हमारा फोकस उन पांच गारंटियों को लागू करना है जिनका वादा चुनाव से पहले लोगों से किया गया था. कुछ दिन पहले कांग्रेस विधायक कनीज फातिमा ने कहा था कि कांग्रेस स्कूलों से जल्द ही हिजाब बैन हटाएगी.  दरअसल बोम्मई सरकार ने स्कूल कॉलेजों में ड्रेस कोड को लागू कर दिया था जिसे हाईकोर्ट ने भी जारी रखा था. 

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इन वादों पर रहेगी नजर

कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में यूं तो कई वादे किए हैं लेकिन पांच गारंटियों के अलावा कुछ वादे ऐसे हैं जिन पर सबकी नजर रहेगी, इन वादों में शामिल है- 

1- विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा था कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो वह भाजपा सरकार द्वारा चार प्रतिशत मुस्लिम कोटा खत्म करने को बहाल कर देंगे. दरअसल इसी साल मार्च में बोम्मई सरकार ने राज्य में अल्पसंख्यकों के लिए चार प्रतिशत कोटा को समाप्त करने और राज्य के दो प्रमुख समुदायों के मौजूदा कोटे में जोड़ने का फैसला किया था.

2- बजरंग दल के साथ पीएफआई को बैन करना

3- पुलिस बल में 33 फीसदी महिलाओं की नियुक्ति जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए कम से कम एक फीसदी आरक्षण .

4- अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, ईसाई, जैन, बुद्ध और अन्य) के कल्याण के लिए बजट 10 हजार करोड़ तक बढ़ाने का वादा.

5- केएसआरसीटी की बसों में पूरे राज्य में महिलाओं को फ्री बस सेवा, परिवार की महिला मुखिया को 2000 भत्ता.

मुस्लिम वोट बैंक पॉलिटिक्स

कर्नाटक में कांग्रेस जिस तरह फ्रंटफुट पर आकर फैसले ले रही है, उससे वह न केवल अपने उस वोट बैंक को एकजुट रखना चाहती है जिसके जरिए वह सत्ता पर काबिज हुई है बल्कि वह लोकसभा चुनाव से पहले देश में एक संदेश भी देना चाहती है. कर्नाटक के इन फैसलों की चर्चा आगामी चार राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश , तेलंगाना और छत्तीसगढ़) में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी होगी. इसके जरिए पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी अलग राह तैयार कर सकती है और विपक्ष के उस वोट बैंक में सेंध लगा सकती है जो अन्य राज्यों में पार्टी से दूर हो रहा था. 

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इसके अलावा सिद्धारमैया जिस तरह से फैसले ले रहे हैं, उससे उनकी कोशिश ये भी है कि जनता के बीच उनकी छवि ऐसे कड़क लीडर वाली बने जो केवल बोलता ही नहीं है बल्कि निर्णय लेने का साहस भी कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो वह न केवल डीके शिवकुमार पर भारी पड़ेंगे बल्कि आसानी से पांच साल का कार्यकाल भी पूरा कर सकेंगे. 


 

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