
देश के युवाओं को सेना से जोड़ने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून को अग्निपथ स्कीम की घोषणा की है. पूर्वी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल केके रेप्सवाल ने बताया कि अग्निपथ योजना के तहत अगले तीन में महीने में युवाओं की भर्ती शुरू हो जाएगी. इस योजना को लेकर भारतीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी क्या कहते हैं, पढ़िए.
रिटायर्ड डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने इस योजना के बारे में कहा कि ये नई योजना है और इससे पहले कभी ट्राई नहीं किया गया और न ही कोई पायलट प्रोजेक्ट किया गया है. हमारी फौज बड़ी इफेक्टिव है और पूरी दुनिया में जानी जाती है और उन्हें जो भी काम दिया जाता है, वह पूरी शिद्दत के साथ करती है. चाहे करगिल हो या फिर जम्मू कश्मीर, नॉर्थ-ईस्ट हो या चीन के साथ सिचुएशन हो. हमारी जो सबसे बड़ी ताकत थी वह एक सैनिक है एक सेलर है और एक एयरमैन है लेकिन आज हम उसी को बदल रहे हैं. रिक्रूटमेंट क्राइटेरिया वही है, लेकिन हम सेवा की शर्तों को बदल रहे हैं.
रिटायर्ड अधिकारी के मुताबिक, पहले एक फौजी 2 से 3 साल तैयारी करके रिक्रूटमेंट लेकर आता था और सोचता था कि मैं जिंदगी भर यहां रहूंगा, लड़ूंगा. लेकिन अब वह 2 से 3 साल तैयारी करके सिर्फ 4 साल के लिए क्यों आएगा बल्कि अब वह दूसरी सरकारी नौकरियों में जाएगा. ऐसे में हमें बेहतर जवान नहीं मिलेंगे. हमारा जो रेजिमेंटल सिस्टम है, वह काम करता है. उनकी एक यूनिट की इज्जत है. चाहे वर्ल्ड वॉर देख लीजिए. हमारे जो सैनिक लड़े थे, वह ब्रिटिश आर्मी के लिए नहीं, अपनी यूनिट के लिए लड़े थे. सारागढ़ी की लड़ाई में भी हमारे जवान अपनी यूनिट के लिए लड़े थे. करगिल की लड़ाई में भी विक्रम बत्रा ने कहा था यह दिल मांगे मोर, ये उन्होंने अपनी यूनिट के लिए बोला था. आज हम उसी ताकत को बदलने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा जवान रिस्क नहीं लेगा और सोचेगा 4 साल बाद काम करके मैं घर चला जाऊंगा. इसलिए बहुत सारे पहलुओं को देखने की जरूरत है.
15 साल बाद सेना में हो जाएंगे आधे अग्निवीर
साथ ही उन्होंने कहा कि आज से 10-15 साल बाद देखेंगे सेना में आधे से ज्यादा अग्रनिवीर हो जाएंगे, 2030 में तब क्या होगा. हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारे सोल्जर हैं, हम उसी को बदल रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब अग्निवीर रिटायर होकर घर जाएगा तो उसे वो इज्जत नहीं मिलेगी. गांव के लोग कहेंगे इसे रिजेक्ट कर दिया गया है. नई नौकरी मिलेगी या नहीं. ये सब सामाजिक समस्याएं खड़ी करेंगे. हम सोच रहे हैं फौज में जाकर वैल्यू सीखेगा, लेकिन यह उल्टा भी पड़ सकता है. अगर 10-15 फीसदी भी उल्टे पड़ गए तो कानून व्यवस्था खराब हो जाएगी और समाज का मिलिटिराइजेशन होने लगेगा.
बीएसएफ के रिटायर्ड एडिशनल डीजी संजीव कृष्ण ने इस योजना के बारे में कहा कि अग्नि वीरों को ट्रेंड करने में काफी समय लग जाता है. इसलिए उनकी सर्विस का जब तक समय आएगा तब तक उनके रिटायरमेंट का समय पूरा हो जाएगा.
उन्होंने कहा कि जो भी ऐसी योजनाएं आएं, उसमें फोर्स की कॉम्बैट प्रिपेयर्डनेस को देखना चाहिए ना कि इकोनॉमी. लड़ने की क्षमता या कॉम्बैट फिटनेस के लिए जरूरी है कि सेना को एक लंबा समय दिया जाए लेकिन 4 साल के टूर ऑफ ड्यूटी में 6 महीने इनकी ट्रेनिंग होगी, जो पहले 9 महीने की होती थी. इसलिए यह जब ट्रेंड होंगे दूसरा जब तक 4 साल में यह रमा होंगे, तब तक इनका निकलने का टाइम हो जाएगा.
4 साल में से 6 महीनों की ट्रेनिंग
तीसरा पहलू यह है कि इन्हीं 4 साल के अंदर 6 महीने ट्रेनिंग भी होगी और तीन चार महीने या छुट्टी पर भी जाएंगे. ऐसे में उनकी सर्विस जो मिलेगी सिर्फ 3 साल की मिलेगी. अभी जो ड्यूटी है वह 17 साल की है और जो अनुभव 16-17 साल काम करने वाले जवान के पास होता है वह इनके पास नहीं होगा. साथ ही इनको पता है कि 4 साल में इनको चले जाना है. ऐसे में इनमें कमिटमेंट की कमी होगी.
टेक्नोलॉजी ब्रांच में लगता है अधिक समय
वहीं सेना की टेक्नोलॉजिकल ब्रांच के बारे में उन्होंने कहा कि इसकी ट्रेनिंग में अधिक समय लगता है. इस योजना के तहत आने वाले लोग 4 साल में तैयार नहीं हो पाएंगे. इससे सेना की क्षमता पर असर पड़ेगा साथ ही जो रेजिमेंटेशन होती थी जिसमें कमांडर और ट्रूप्स एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह जानते थे. मैंने बीएसएफ बटालियन कमांड की है. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि मैंने 1036 जवानों को नाम से या उनके कार्य से अच्छी तरह पहचानता हूं, लेकिन अब यह संभव नहीं होगा.
हर साल क्रिएट नहीं हो सकती वैकेंसी
अर्द्धसैनिक बलों में 11 लाख जवान हैं. इनमें हर जवान 60 साल तक नौकरी कर सकता है और वीआरएस ले सकता है. लेकिन इस टूर से 75 फीसदी जवान आएंगे, उनके लिए हर साल वैकेंसी क्रिएट नहीं हो सकती. बांग्लादेश-पाकिस्तान बॉर्डर पर हमें फायर करने की जरूरत पड़ती है, लेकिन ज्यादातर हमें सिविलियन से इंटरैक्ट करना है. कई बार पैरामिलिट्री को लॉयन ऑर्डर ड्यूटी में भी लगाया जाता है. ऐसे में हमें सॉफ्ट स्किल की ज्यादा जरूरत पड़ती है इसलिए सेना से आने वाले इन जवानों को हम फिर से ट्रेनिंग देनी होगी. उससे भी ज्यादा जो आर्मी आर्टिलरी जैसी तकनीकी ब्रांच से निकल कर के आएंगे उन्हें पूरी तरह फिर से ट्रेनिंग देनी होगी. अगर सरकार यह सोचती है कि ट्रेनिंग में बचत हो जाएगी तो ये गलत है.
4 साल का समय काफी कम
रिटायर्ड विंग कमांडर प्रफुलल् बख्शी ने भी इस योजना में कई कमियां बताईं. उन्होंने कहा कि इसकी कमियों का असर सेनाओं के कॉम्बैट कैपेबिलिटी पर पड़ेगा. मुझे लगता है 4 साल की जगह अगर यह ड्यूटी 10 से 12 साल की होगी तो इन अग्नि वीरों को ज्यादा सीखने का भी मौका मिलेगा और जब यह रिटायर होंगे, तब इनके अंदर गुणवत्ता और स्किल भी ज्यादा होगी. जिससे बाहरी दुनिया में भी इन्हें अच्छा काम मिल सकेगा. चार साल बाद एक युवा को जब तक एयर फोर्स में ट्रेनिंग और तकनीकी ट्रेनिंग का कोर्स पूरा होगा, तब तक उसके रिटायरमेंट का समय आ जाएगा. ऐसे में एयरफोर्स उसकी सुविधाएं कैसे ले पाएगी, लेकिन जो 25% रिटर्न किए जाएंगे वह जरूर एयरफोर्स के लिए कारगर होंगे.
रेजिमेंटल भावना नहीं होगी विकसित
रिटायर्ड अधिकारी के मुताबिक, सेनाओं की तकनीकी कोर में 4 साल में ट्रेनिंग नहीं हो पाती और बेहतर सैनिक बनने के लिए समय लगता है. ऐसे में रेजिमेंटल भावना और बेहतर सैनिक गुणवत्ता 4 साल में पूरी नहीं हो पाएगी. साथ ही वह जवान खुद को रिस्क में भी नहीं डालेगा. सोच के हिसाब से यह पहल अच्छी हो सकती है, लेकिन इसमें बहुत कुछ किया जाना बाकी है. ऐसे में बेहतर होगा कि इन अग्नि वीरों को 10 से 12 साल के लिए नौकरी पर रखा जाए. साथ ही सबसे पहले इसे पायलट बेस पर शुरू किया जाए और फिर इसके असर को देखते हुए लागू किया जाए. पैरामिलिट्री फोर्स की कैपेबिलिटी सेना से कम नहीं होती है, ऐसे में जरूरी है कि इसको सबसे पहले पैरामिलिट्री फोर्स में लागू किया जाए और वहां पर टेस्ट नतीजों को देखा जाए.