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आगरा शिखर वार्ता की कहानी: जब आडवाणी से मुलाकात के दौरान भड़क गए थे परवेज मुशर्रफ...

आगरा वार्ता के लिए 14 जुलाई 2001 को परवेज मुशर्रफ अपनी पत्‍नी के साथ दिल्‍ली में राष्‍ट्रपत‍ि भवन पहुंचे थे. करगिल युद्ध को केवल 2 साल हुए थे तो घाव ताजा थे लेकिन सुलह की उम्मीद जागी थी. इस वार्ता से पहले और इस वार्ता के दौरान जो हुआ वह इतिहास में किस्सा बन गया.

परवेज मुशर्रफ के साथ अटल बिहारी वाजपेयी और  लाल कृष्ण आडवाणी (फाइल फोटो) परवेज मुशर्रफ के साथ अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 3:01 PM IST

पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद रविवार को निधन हो गया. 79 साल की उम्र में उन्होंने दुबई के अमेरिकन अस्पताल में अंतिम सांस ली. परवेज मुशर्रफ ने 1999 से 2008 तक पाकिस्तान पर शासन किया था. मुशर्रफ का कार्यकाल विवादों से भरा रहा. इस दौरान भारत पाक के संबंधों की बात होती है तो जुलाई 2001 की आगरा शिखर वार्ता का जिक्र आता है. ये वार्ता शुरू होने से पहले ही विफल हो गई थी. ऐसा क्यों? इसका पूरा किस्सा हम आपको यहां बताने जा रहे हैं.

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टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबित, दरअसल फरवरी 1999 में भारत के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर पाकिस्‍तान के साथ लाहौर में एक वार्ता हुई. इसमें पाकिस्‍तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ शामिल हुए. हालांकि इस वार्ता के नतीजों से पहले ही जुलाई 1999 में पाकिस्‍तान ने करगिल युद्ध छेड़ दिया. इस बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नवंबर 2000 में रमजान के मौके पर जम्‍मू-कश्‍मीर में चल रहे आतंकवाद विरोधी अभियानों पर छह महीने के लिए 'युद्धविराम' लागू करने का ऐलान कर दिया. इस दौरान सैन्‍य बल चुपचाप नहीं बैठा लेकिन आतंकवादियों के खिलाफ कम आक्रमक हो गया.

करगिल के ताजा घाव के बीच आगरा वार्ता

ये युद्ध विराम खत्‍म होने वाला ही था कि अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्‍ण आडवाणी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह से एक दिन पूछा, 'अब आगे क्‍या करें?' आडवाणी बोले, 'अटल जी, आप जनरल परवेज मुशर्रफ को भारत आकर वार्ता करने के लिए आमंत्रित क्‍यों नहीं करते?' खुद परवेज मुशर्रफ अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़े पाकिस्‍तान की छवि बदलना चाहते हैं. ऐसे में वह भी भारत से बातचीत के लिए भी इच्‍छुक थे. वार्ता के लिए आगरा को चुना गया, तारीखें तय हो गईं. 14 जुलाई 2001 को परवेज मुशर्रफ अपनी पत्‍नी के साथ दिल्‍ली में राष्‍ट्रपत‍ि भवन पहुंचे. करगिल युद्ध को केवल 2 साल हुए थे तो घाव ताजा थे लेकिन सुलह की उम्मीद जागी थी.

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प्रत्‍यपर्ण संधि पर राजी हुए थे मुशर्रफ

यहां गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी पाक राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ से मिलने पहुंचे. शुरुआती औपचारिक बातचीत के बाद आडवाणी ने मुशर्रफ से कहा, 'मैं हाल ही में तुर्की से लौटा हूं. भारत के साथ तुर्की ने प्रत्‍यपर्ण संधि की है, क्‍यों न भारत और पाकिस्‍तान भी ऐसी ही संधि कर लें ताकि एक-दूसरे के देश में छिपे अपराधियों को कानून के कटघरे में खड़ा किया जा सके?' इसपर मुशर्रफ बोले, 'हां क्‍यों नहीं, भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्‍यर्पण संधि होनी चाहिए.' 

आडवाणी बोले- लेकिन इससे पहले आप दाउद...

मुशर्रफ का इतना कहना था कि आडवाणी कह उठे, 'औपचारिक तौर पर यह संधि लागू हो इससे पहले अगर आप 1993 के मुंबई बम धमाकों के जिम्‍मेदार दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंप दें तो शांति प्रक्रिया आगे बढ़ाने में बड़ी मदद मिलेगी.' दाऊद का नाम सुनते ही मुशर्रफ के चेहरे का रंग उड़ गया. उन्‍होंने कहा, 'आडवाणी जी मैं समझ गया हूं आप क्या कहना चाहते हैं... मैं आपको साफ बता देना चाहता हूं कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्‍तान में नहीं है.' 

मुशर्रफ ने आतंकवाद छोड़ उठा दिया कश्मीर मुद्दा

ये एक बात थी कि जिसके कारण आनन फानन में आगरा समझौता वार्ता शुरू होने से पहले ही एक तरह से खत्‍म हो गई. परवेज मुशर्रफ अपने प्रतिनिधिमंडल और अफसरों के साथ आगरा तो पहुंचे. यहां 16 जुलाई को दोनों देशों की ओर से संयुक्‍त प्रस्‍ताव लाया जाना था लेकिन पाकिस्‍तान न तो शिमला समझौते का जिक्र करने को राजी था न लाहौर समझौते का. सीमा पार आतंकवाद पर रोक लगाने के मुद्दे पर भी तैयार नहीं था. यहां तो उलटे उसने कश्‍मीर मुद्दे को पूरी वार्ता के केंद्र में लाने की कोशिश की. 

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विदाई में भी दिखी बेरुखी

बात कुछ बनी नहीं और मुशर्रफ खाली हाथ लौट आए. मूड ऐसे बिगड़ा कि उन्‍हें ख्‍वाजा मुईनुद्दीन चिश्‍ती की दरगाह भी जाना था लेकिन वहां भी नहीं गए. इस वार्ता को बाद मुशर्रफ की कोई सार्वजनिक विदाई नहीं हुई, यहां तक ​​कि कैमरों के सामने वाजपेयी ने उनसे हाथ भी नहीं मिलाया.

मुशर्रफ का दिल्ली कनेक्शन

यूं तो 11 अगस्त 1943 को दरियागंज नई दिल्ली में जन्में मुशर्रफ का भारत कनेक्शन काफी गहरा था. लेकिन 1947 के विभाजन के दौरान उनके परिवार ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया था.  मुशर्रफ की उम्र जब चार साल की थी, उसी वक्त भारत को आजादी मिली और साथ ही मुल्क दो हिस्सों में बंट गया. पाकिस्तान भारत के मुसलमानों के लिए नई जगह बनी. मुशर्रफ के पिता पाकिस्तान सिविल सर्विसेज में शामिल हो गए और पाकिस्तानी सरकार के लिए काम करने लगे. बाद में उनके पिता विदेश मंत्रालय में शामिल हो गए और तुर्की में कार्यभार संभाला.

मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा इन द लाइन ऑफ फायर: ए मेमॉयर में अपने बचपन के तमाम अनुभव लिखे हैं. साल 1949 में मुशर्रफ का परिवार अंकारा चला गया, जब उनके पिता पाकिस्तान से तुर्की में राजनयिक प्रतिनियुक्ति का हिस्सा बने. फिर वो वापस लौट आए और कराची के सेंट पैट्रिक स्कूल में पढ़ाई की, इसके बाद लाहौर के फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. मुशर्रफ का सबसे प्रिय विषय गणित था, लेकिन बाद में उन्होंने अर्थशास्त्र में रुचि लेनी शुरू की. 1961 में 18 साल की उम्र में मुशर्रफ काकुल में पाकिस्तान सैन्य अकादमी में दाखिल हुए. पीएमए और प्रारंभिक संयुक्त सैन्य परीक्षण में अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान मुशर्रफ ने पाकिस्तान वायु सेना के पीक्यू मेहंदी और नौसेना के अब्दुल अजीज मिर्जा के साथ एक कमरा साझा किया.

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