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किसान नेता अनिल घनवत ने सीजेआई को लिखा पत्र, कृषि कानूनों की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद कृषि कानूनों की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की गई है. यह मांग किसानों से बातचीत करने वाली मध्यस्थ कमेटी के प्रमुख अनिल जयसिंह घनवट ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर की है.

सुप्रीम कोर्ट को लिखा है पत्र सुप्रीम कोर्ट को लिखा है पत्र
पॉलोमी साहा/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:42 AM IST
  • कमेटी प्रमुख ने कहा— कृषि सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत
  • सरकार रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए

कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद सरकार को कृषि कानूनों की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर देना चाहिए. इस मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट को लिखे गए अपने पत्र में कृषि कानूनों पर किसानों के साथ बातचीत करने वाली मध्यस्थ कमेटी के प्रमुख अनिल जयसिंग घनवट ने कहा है कि उन्होंने कृषि कानूनों (Farm Laws) पर कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग फिर से उठाई है.

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घनवट इसके पहले भी इसी मांग को लेकर चीफ जस्टिस को चिठ्टी लिख चुके हैं, लेकिन अब उन्होंने चिट्ठी तब लिखी है, जब सरकार कृषि कानून वापस ले चुकी है. लिहाजा अब तो रिपोर्ट सार्वजनिक की जा सकती है. इसके साथ ही आम जनता को पता चले कि कमेटी ने इस विवाद के सर्वमान्य निपटारे के लिए क्या रास्ता सुझाया था.

सुप्रीम कोर्ट से कृषि कानून समिति की रिपोर्ट जारी करने और सरकार को एक मजबूत नीति प्रक्रिया लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. पत्र में घनवट ने कहा कि मुझे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कृषि कानूनों से संबंधित किसानों की शिकायतें सुनने और सरकार के विचारों को सुनने और सिफारिशें करने के लिए एक समिति में नियुक्त करने का मौका मिला. 

उन्होंने कहा कि 19 मार्च 2021 को समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विशिष्ट कानून अब मौजूद नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि न्यायालय के ध्यान में लाना चाहता हूं कि कई दशकों से भारत के किसान अपने आप में उद्यमी के रूप में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं. उनके उत्पादन और विपणन के प्रयास प्रभावित हो रहे हैं. विनियमन का उद्देश्य एक उद्यमी की कार्रवाई से होने वाले किसी भी नुकसान को कम करना है, लेकिन किसानों के मामले में विनियमन ही किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसान का कारण रहा है. 

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घनवट ने कहा कि देश के बहुत से किसान सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, विशेष रूप से बाजार की स्वतंत्रता और प्रौद्योगिकी स्वतंत्रता पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के लिए बेताब हैं. इन कानूनों को हमारे किसान आंदोलन ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया था, लेकिन पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था. सरकार की नीति प्रक्रिया परामर्शी नहीं है, इसलिए उच्चतम न्यायालय सरकार को कार्यान्वित करने का निर्देश देने पर विचार करे. 

शेतकारी संगठन के वरिष्ठ नेता और स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष अनिल घनवत ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कहा कि उन्होंने कृषि कानून समिति की रिपोर्ट जारी करने का अनुरोध किया था. यह रिपोर्ट एक शैक्षिक भूमिका निभा सकती है और सुधारों के बारे में कई किसानों की गलतफहमी को कम कर सकती है. 

कृषि कानूनों को किसानों के हित में बेहतर बनाया जा सकता था

इन कानूनों को संभावित रूप से काम करने के लिए बेहतर बनाया जा सकता था. समय के साथ इसमें सुधार किया जा सकता था. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने किसानों से सलाह-मशविरा किया होता और उन्हें कानून बनाने से पहले व्यवस्थित रूप से शिक्षित किया होता, तो परिणाम काफी अलग होता. अफसोस की बात है कि वर्तमान दृष्टिकोण ने कुछ नेताओं को किसानों को गुमराह किया है. नेता सिर्फ किसानों को ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भारी नुकसान कर रहे हैं. कई दशकों से भारत के किसान, अपने आप में उद्यमी के रूप में, उत्पादन और विपणन के लिए अपनी नियामक आवश्यकताओं पर समझ या ध्यान की कमी से पीड़ित हैं, उन पर लगाए गए विनियमन ने उनके उत्पादन और विपणन प्रयासों को अवरुद्ध कर दिया है.

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कृषि नीति संबंधी बहसों को सार्वजनिक रूप से कराया जाए उपलब्ध

कानूनों के निरस्त होने से बड़ी संख्या में किसान अब अपनी आवश्यकताओं पर ध्यान न देने से और भी निराश हैं. नए कृषि कानून बनाने के लिए एक मजबूत नीति प्रक्रिया में एक समिति की स्थापना शामिल होगी. उन्होंने कहा कि समिति एक श्वेत पत्र तैयार करेगी, जो लागतों पर आधारित होगा. जिन संगठनों ने फार्म लॉ कमेटी को सबमिशन दर्ज कराया है, उन्होंने मुझसे रिपोर्ट की सामग्री के बारे में पूछा है. अपने मीडिया इंटरेक्शन के दौरान भी मैंने विभिन्न नीतिगत पहलुओं पर मौखिक विवरण दिया किया है, लेकिन यह अधिक उपयुक्त होगा कि सरकार कृषि नीति संबंधी बहसों की रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए. संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय के बाद समिति की रिपोर्ट अब उन कानूनों के संबंध में प्रासंगिक नहीं है, लेकिन किसानों के मुद्दों पर रिपोर्ट में ऐसे सुझाव हैं, जो बड़े जनहित के हैं. 

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