
तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को अपने आदेश में कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का उतना ही अधिकार है, जितना अन्य धर्म की महिलाओं को है. तलाक के बाद मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर कर सकती है. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के विरोध में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की वर्किंग कमेटी की बैठक रविवार को दिल्ली में हुई.
कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नकारा
इस वर्किंग कमेटी में 51 सदस्य हैं जिसमें 5 महिलाएं भी शामिल हैं.इस बैठक में 8 प्रस्ताव पास किए गए.कमेटी ने कहा कि कोर्ट का फैसला शरीयत से अलग है और मुसलमान शरीयत से अलग नहीं सोच सकता है. हम शरीयत के पाबंद हैं. हम इससे अलग नहीं सोच सकते हैं. कमेटी ने कहा कि शादी - विवाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिक्कत पैदा करेगा. वर्किंग कमेटी ने कहा कि जब किसी शख्स का तलाक हो गया है तो फिर गुजारा भत्ता कैसे मुनासिब है.
संविधान का दिया हवाला
AIMPLB ने कहा कि संविधान हमें हक देता है की हम अपने धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं के हिसाब से जी सकते हैं. उत्तराखंड यूसीसी पर बोर्ड ने कहा कि यह सांस्कृतिक विरासत खत्म करने की साजिश है और इसे हम अदालत में चुनौती देंगे. साथ ही इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भी अपनी राय स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि हम फिलिस्तीनियों के साथ हैं.
कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था...
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजारा भत्ता दान का मामला नहीं है, बल्कि विवाहित महिलाओं का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने कहा था कि हमारे संविधान में हर धर्म की महिला को समान हक देने का कानून है. इसलिए मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का उतना ही अधिकार है जितना अन्य धर्म की महिलाओं को है. तीन तलाक झेल रहीं महिलाओं को भी इसका अधिकार है.