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जो शजर बे-लिबास रहते हैं
उन के साए उदास रहते हैं
उर्दू शायर ताहिर फ़राज़ के इस शेर का मतलब समझें तो शायद वो यही कहना चाहते हैं कि किसी भी शख़्सियत को परफ़ेक्ट बनने के लिए ख़ूबसूरत लिबास भी बेहद ज़रूरी होता है. इंसान की शख़्सियत में उसका लिबास चार चांद लगा देता है. परफ़ेक्ट पोशाक आत्मविश्वास, पॉज़िटिविटी और एक अच्छे शिष्टाचार को रीप्रज़ेंट करता है. वहीं, अगर देश के पहले नागरिक यानी राष्ट्रपति के लिबास की बात हो रही, हो तो यह पहलू बहुत ज़्यादा अहम हो जाता है. ऐसे में महामहिम जैसी बड़ी शख़्सियत के कपड़े बनाने के लिए एक बेहतरीन कारीगर यानी टेलर की ज़रूरत होती है. तो चलिए आपको ऐसे ही एक टेलर के बारे में बताते हैं, जिन्होंने भारत के कई राष्ट्रपतियों के लिए शेरवानी बनाई.
जिस तरह ताले और तालीम की बात आती है, तो अलीगढ़ (Aligarh) का ज़िक्र होता है, बिल्कुल उसी तरह राष्ट्रपति की शेरवानी का ज़िक्र होते ही अलीगढ़ के तस्वीर महल इलाक़े से ताल्लुक़ रखने वाले एम हसन टेलर की चर्चा होती है. मेहंदी हसन टेलर की शॉप से पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन से लेकर रामनाथ कोविंद तक के लिए शेरवानी बनवाई गई.
टेलर मेंहदी हसन के बेटे अख़्तर मेंहदी बताते हैं, “हमारे वालिद साहब ने भारत के चार राष्ट्रपतियों- डॉ ज़ाकिर हुसैन, नीलम संजीव रेड्डी, बीवी गिरि और फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की शेरवानी बनाई. डॉ ज़ाकिर हुसैन साहब ने सत्रह साल तक हमारी शॉप से शेरवानी सिलवाई, उन्होंने कुल 170 शेरवानी बनवाई थी. दुकान की कमान संभालने के बाद, मैंने इस सिलसिले को जारी रखा. हमने 6 राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कपड़े सिले. इस फ़ेहरिस्त में प्रणब मुखर्जी, एपीजे अब्दुल कलाम, हामिद अंसारी, डॉ शंकर दयाल शर्मा और रामनाथ कोविंद साहब का नाम शामिल है.”
टेलर अख़्तर मेहंदी बताते हैं कि राष्ट्रपति की एक शेरवानी स्पेशल तरीक़े से बनाई जाती है, जिसको बनाने में चार से पांच दिन का वक़्त लग जाता है. आम अवाम और राष्ट्रपति की शेरवानी में थोड़ा फ़र्क़ भी रहता है क्योंकि राष्ट्रपति की शेरवानी हमारे पास मौजूद बेस्ट कपड़े से बनाई जाती है.
एम हसन टेलर की शॉप से राष्ट्रपतियों और राजनेताओं के अलावा आम लोग भी शेरवानी बनवाते हैं. यहां पर सस्ती से लेकर महंगी शेरवानी तक बनाई जाती है. अख़्तर मेहंदी ने बताया कि मेरी शॉप पर 3500 से लेकर 30 हज़ार रुपए तक की शेरवानी उपलब्ध है.
अलीगढ़ में शेरवानी की शॉप साल 1944 में टेलर मेहंदी हसन ने शुरू की थी. मौजूदा वक़्त में उनके बेटे अख़्तर मेहंदी और पोते मिलकर इस कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन शॉप का नाम मेहंदी हसन के नाम पर ही है. कई अन्य मुल्कों में भी एम हसन टेलर की शेरवानी लोकप्रिय हो गई है. मेहदी परिवार मुंबई, पुणे, मद्रास, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर से शेरवानी की मांग को पूरा कर ही रहा है, साथ ही ब्रिटेन, अमेरिका, यूएई और ऑस्ट्रेलिया से भी ऑर्डर आते हैं.
अख़्तर मेंहदी बताते, “हमारे वालिद साहब ने 1944 में दुकान क़ायम की थी. 81 साल का वक़्त गुज़र चुका है और शेरवानी का सिलसिला ब-दस्तूर जारी है. पहले के वक़्त में बादशाह और नवाब ही शेरवानी पहना करते थे, उस वक़्त अलीगढ़ में कोई शेरवानी का टेलर नहीं था. एक ब्रिटिश कंपनी थी, लोग वहां जाकर शेरवानी बनवाया करते थे.”
वे आगे कहते हैं कि जब हमारे वालिद साहब ने अलीगढ़ में अपना काम शुरू किया, तो वो सिलसिला हमारे दुकान से जुड़ गया, जो आज तक चल रहा है.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान, आरएलडी नेता अजीत सिंह, पूर्व CPI-M लीडर सोमनाथ चटर्जी और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान एम हसन टेलर के शॉप की शेरवानी पहन चुके हैं.
सिर्फ़ सियासी चेहरे ही नहीं बल्कि बॉलीवुड में अलीगढ़ की बनी शेरवानी लोकप्रिय है. अभिनेता सैफ अली खान, अभिनेता राज बब्बर और शिव कुमार जैसे कलाकारों एम हसन टेलर के शॉप की बनी शेरवानी पहन चुके हैं.
अख़्तर मेहंदी बताते हैं, “हमने हिंदी सिनेमा से जुड़े लोगों के लिए कई बार शेरवानी बनाई. शिव कुमार साहब अलीगढ़ आए हुए थे, मैंने यहीं पर उनका नाप लिया था और राज बब्बर से दिल्ली में मुलाक़ात हुई थी, वहीं पर नाप लिया था. इसके अलावा सैफ़ अली ख़ान की शेरवानी बनाने के लिए मैं मुंबई जाकर नाप लिया था.”
हिंदुस्तान में शेरवानी का कल्चर काफ़ी पुराना है, जो आज तक चला रहा है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में भी शेरवानी का कल्चर है. अख़्तर मेहंदी कहते हैं कि हमारे यहां की शेरवानी इसलिए पसंद की जाती है, क्योंकि हम फिजिकल स्ट्रक्चर के हिसाब से इसको बिल्कुल परफ़ेक्ट बनाते हैं. शेरवानी का मतलब यही है कि यह बॉडी स्ट्रक्चर के हिसाब से बनाई जाए.
वे आगे बताते हैं कि हमारी शेरवानी सिर्फ़ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जाती हैं. अब तो बहुत आसान हो गया है, हम ऑनलाइन नाप ले लेते हैं और शेरवानी बनाकर कूरियर कर दी जाती है.
शेरवानी का असली नाम अचकन है, जो एक लंबा और घेरदार पहनावा होता है. इसे पुराने ज़माने में रईस और नवाब क़िस्म के लोग पहना करते थे. अख़्तर मेहंदी बताते हैं, “आज के ज़माने में अचकन में थोड़ा सा बदलाव किया गया है. अचकन की लंबाई और घेर को कम किया गया है क्योंकि लोग इसे पहनकर सफ़र करते हैं और प्रोग्राम्स में जाते हैं. ऐसे में अब इसको शेरवानी बोला जाता है.”
उन्होंने राष्ट्रपति भवन का वाक़या याद करते हुए बताया, “महामहिम रामनाथ कोविंद साहब की शेरवानी के लिए मुझे राष्ट्रपति भवन बुलाया गया था, मैंने वहां पर जाकर उनका नाप लिया था. मैंने उनके लिए दो शेरवानी बनाई थी, जिसमें एक काले रंग की थी और दूसरी का कलर बिस्कुटी था. उन्होंने दोनों शेरवानियों को बहुत पसंद किया था.”
अख़्तर मेहंदी कहते हैं कि शेरवानी हमारे देश का पहनावा है. शेरवानी में कशिश है, इसमें सम्मान झलकता है, लोग इसको पहनकर फ़ख़्र महसूस करते हैं, जो दूसरे कपड़े में नहीं मिल सकता है. शेरवानी हमारे देश का पहनावा है, जो रॉयल ड्रेस में शामिल है. पहले रजवाड़े जोधपुरी कोट बनवाते थे, जो थोड़ा शॉर्ट होता था और अचकन नीचे तक होती थी. वक़्त के साथ अचकन की लंबाई थोड़ी कम की गई और कोट की बढ़ाई गई. उसके बीच में जो नतीजा निकलकर आया, वो शेरवानी कहलाया.
मेहंदी हसन और अख़्तर मेहंदी के बाद अब शेरवानी का कारोबार तीसरी पीढ़ी उबैद और ओवैस के हाथों हैंडओवर होने को है. उवैस कहते हैं, “हम इस बिज़नेस को ऑनलाइन शिफ़्ट कर रहे हैं, जिससे हम तक हर जगह के लोगों की पहुंच हो जाएगी.”
शेरवानी के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं कि आज कल इंडो वेस्टर्न, नेहरू जैकेट और श्रग जैसे नए-नए पैटर्न्स का चलन बढ़ रहा है. इसके साथ ही हम लेटेस्ट स्टाइल को शेरवानी में शामिल करने की कोशिश करते हैं. हमारी पूरी कोशिश रहती है कि इसको कैसे बेहतरीन बनाया जाए. शेरवानी एक शाही पहनावा है, जिसको पहले राजा-महराजा पहना करते थे. हम इसको नए तरीक़े से पेश कर रहे हैं.