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विवाद, केस और दावे... औरंगजेब के काल से अब तक, जानिए 353 साल पुराने ज्ञानवापी केस की पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में कोर्ट के आदेश के बाद आज सर्वे का काम शुरू हो गया है. वजूखाने को छोड़कर बाकी सर्वे किया जा रहा है. सर्वे के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग यानि एएसआई को 4 अगस्त को कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल करनी है.

ज्ञानवापी मस्जिद (फाइल फोटो) ज्ञानवापी मस्जिद (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का 32 साल पुराना केस एक बार फिर सुर्खियों में हैं, हालांकि इसका इतिहास 350 साल से भी ज्यादा पुराना है. कोर्ट के आदेश के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) ने सोमवार सुबह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में अदालती आदेश के मुताबिक अपना सर्वे शुरू कर दिया. 21 जुलाई को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण ने सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का आदेश दिया था. आज जो चार टीमें सर्वे कर रही है उमें 43 सदस्य हैं, जिनके साथ चार वकील भी हैं.

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क्या है मामला?

दरअसल,  अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी.  महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश पर पिछले साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था. सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था. दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है. 

इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी. सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने  सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.  SC ने केस जिला जज को ट्रांसफर कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया था. मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं नहीं हो सकती है. हालांकि, कोर्ट ने इसे सुनवाई योग्य माना था.

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इसके बाद पांच वादी महिलाओं में से चार ने इसी साल मई में एक प्रार्थना पत्र दायर किया था. किया था. इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का ASI से सर्वे कराया जाए. इसी पर जिला जज एके विश्वेश ने अपना फैसला सुनाते हुए ASI सर्वे कराने का आदेश दिया था. 

क्या है विवाद की जड़?

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है. हालांकि, अयोध्या के मामले में मस्जिद बनी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं. काशी विवाद में हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी. हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक, 1670 से वह इसे लेकर लड़ाई लड़ रहा है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी. 

औरंगजेब से कैसे जुड़ा ज्ञानवापी का इतिहास?

ये मंदिर और मस्जिद किसने बनवाया, इसे लेकर कोई एक राय नहीं है. याचिकार्ताओं का कहना है कि इस मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने फिर से बनवाया था. अकबर के शासन काल में इसका फिर से निर्माण करवाया गया. 1669 में औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनाई. 

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अभी वहां पर जो काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद आपस में सटे हुए हैं, लेकिन उनके आने-जाने के रास्ते अलग-अलग दिशाओं में हैं.

जानकार मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने बनवाया था. इसे 1585 में बनाया गया था. 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई. 1735 में रानी अहिल्याबाई ने फिर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जो आज भी मौजूद है.

 

हिंदू पक्ष की तीन बड़ी मांगें 

- पहलीः अदालत पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी मंदिर का हिस्सा घोषित करे.

- दूसरीः मस्जिद को ढहाने का आदेश जारी हो और मुस्लिमों के यहां आने पर प्रतिबंध लगे.

- तीसरीः हिंदुओं को यहां पर मंदिर का पुरर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए.

विवाद में कब-कब क्या हुआ?

- 1919 : स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में पहली याचिका दायर हुई. याचिकाकर्ता ने ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी.

- 1998 : ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया. कमेटी ने कहा कि कानून इस मामले में सिविल कोर्ट कोई फैसला नहीं ले सकती. हाईकोर्ट के आदेश पर सिविल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगी. 22 साल तक ये केस पर सुनवाई नहीं हुई.

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- 2019 : स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की. इस याचिका में ज्ञानवापी परिसर का सर्वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से कराने की मांग की गई. 

-2020: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख दिया.  2020 में ही रस्तोगी ने निचली अदालत का रुख भी किया, जिसमें मामले की सुनवाई फिर से शुरू करने की मांग की.  

-अप्रैल 2021- हाई कोर्ट की रोक के बावजूद वाराणसी सिविल कोर्ट ने मामला दोबारा खोला और मस्जिद के सर्वे की इजाजत दे दी. इसके बाद अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी परिसर का ASI से सर्वे कराने की मांग वाली याचिका का विरोध किया. हाई कोर्ट ने फिर सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी.

-अगस्त 2021- पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति मांगी.

-अप्रैल 2022- अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफ़ी के आदेश दे दिए. यहा एक बार फिर मस्जिद इंतजामिया ने कई तकनीकी पहलुओं को आधार बनाते हुए इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की जो खारिज हो गई.

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-मई, 2022-  सेशन कोर्ट में हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले वाराणसी सिविल कोर्ट ने मस्जिद के अंदर शिवलिंग मिलने का जहां दावा किया गया था उसे सील करने और नमाज अदा करने पर रोक लगाने का फैसला दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 'शिवलिंग' की सुरक्षा और वुजूखाने को सील करने का आदेश दिया लेकिन मस्जिद में नमाज जारी रखने की इजाजत दे दी.

-सितंबर 2022:  वाराणसी जिला अदालत ने 5 महिलाओं की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में देवी देवताओं की पूजा की मांग की थी. इसके साथ ही कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की अपील को भी खारिज कर दिया.

मई 2023-  2023 में भी इस मामले को लेकर समय-समय पर अदालत में सुनवाई हुई. मई 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई के सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की साइंटफिक सर्वे की याचिका को स्वीकार कर लिया.

जुलाई, 2022- 21 जुलाई को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण ने सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का आदेश दिया था और चार अगस्त तक रिपोर्ट देने को कहा.

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केस का कमजोर पक्ष

- काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच विवाद का केस एक कानून से कमजोर पड़ सकता है. ये कानून है प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट, जिसे 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी. ये कानून कहता है कि आजादी के समय यानी 15 अगस्त 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो हमेशा उसी रूप में रहेगा. उसके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता. 

- हालांकि, हिंदू पक्ष का कहना है कि इस मामले में ये कानून लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर बनाया गया था और उसके हिस्से आज भी मौजूद हैं. वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस कानून के तहत इस विवाद पर कोई भी फैसला लेने की मनाही है.

- 1991 के इस कानून में अयोध्या विवाद को छूट दी गई थी. अयोध्या विवाद आजादी से पहले से चला आ रहा था, इसलिए इसे छूट थी. अयोध्या मामले में 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था. इस फैसले में यहां राम मंदिर बनाने की इजाजत दे दी थी.

क्या अयोध्या की तरह सुलझ सकता है ये विवाद?

अयोध्या विवाद और वाराणसी विवाद में कुछ हद तक समानताएं हैं, लेकिन वाराणसी विवाद अयोध्या विवाद से हटकर है. अयोध्या का विवाद आजादी के पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए उसे 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट से छूट मिली थी. लेकिन वाराणसी विवाद 1991 में अदालत से शुरू हुआ, इसलिए इस आधार पर इसे चुनौती मिलनी लगभग तय है. 

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हिंदू संगठनों की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और वो पूरी जमीन हिंदुओं के हवाले की जाए. इस मामले में हिंदू पक्ष की दलील है कि ये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है, इसलिए 1991 का कानून इस पर लागू नहीं होता. तो वहीं मुस्लिमों का कहना है कि यहां पर आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है, इसलिए इस पर 1991 के कानून के तहत कोई फैसला करने की मनाही है.

 

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