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अमरमणि त्रिपाठी ने उम्रकैद की सजा के 11 साल हॉस्पिटल के प्राइवेट वार्ड में काटे! सवालों के घेरे में रिहाई

मधुमिता शुक्ला 21वीं सदी की शुरुआत में उत्तर प्रदेश की एक उभरती हुई कवयित्री थी. वह वीररस की कविताएं पढ़ने के लिए लोकप्रिय थीं. मधुमिता ने बहुत कम समय में तेजी से लोकप्रियता हासिल की थी. लेकिन फिर क्या हुआ कि नौ मई 2003 को लखनऊ की पेपर मील कॉलोनी के उनके घर में हत्या कर दी गई?

मधुमणि त्रिपाठी और अमरमणि त्रिपाठी मधुमणि त्रिपाठी और अमरमणि त्रिपाठी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 11:58 PM IST

साल 2003 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड ने पूरे देश को दहला दिया था. हत्या के समय मधुमिता सात महीने की गर्भवती भी थीं. मधुमिता की हत्या के लिए उस समय के बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. लेकिन अब दोनों की रिहाई से यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. 

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मधुमिता शुक्ला 21वीं सदी की शुरुआत में उत्तर प्रदेश की एक उभरती हुई कवयित्री थी. वह वीररस की कविताएं पढ़ने के लिए लोकप्रिय थीं. मधुमिता ने बहुत कम समय में तेजी से लोकप्रियता हासिल की थी. लेकिन फिर क्या हुआ कि नौ मई 2003 को लखनऊ की पेपर मील कॉलोनी के उनके ही घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई? 2003 में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी और मायावती मुख्यमंत्री थीं. उनकी सरकार में अमरमणि त्रिपाठी नाम के एक कद्दावर मंत्री थे. लेकिन जब मधुमिता हत्याकांड की जांच शुरू हुई तो अमरमणि के घर तक सीआईडी से लेकर सीबीआई तक जा पहुंची. 

कौन है अमरमणि?

यह वह दौर था जब यूपी की राजनीति में अमरमणि का दबदबा था. उनके बारे में कहा जाता था कि बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बीएसपी जिसकी भी सरकार हो, कैबिनेट में अमरमणि जरूर होते थे. 

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अमरमणि त्रिपाठी को एक चालाक राजनेता और शातिर अपराधी कहना गलत नहीं होगा. मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में नाम आने पर भी जांच के दौरान अमरमणि ने कई बार पासा पलटने की कोशिश की. लेकिन लखनऊ के पत्रकारों की बहादुरी भरी निष्पक्ष रिपोर्टिंग और सीआईडी से सीबीआई तक की जांच के बाद अमरमणि त्रिपाठी को सजा मिली थी. अब सवाल आता है कि अभी रिहाई कैसे हो रही है?

अमरमणि की रिहाई सरकार के आदेश से या अदालत?

24 अक्टूबर 2007 को देहरादून की विशेष अदालत ने अमरमणि त्रिपाठी और उसकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 18 अप्रैल 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की तरफ से दी गई सजा यानी उम्रकैद को बरकरार
रखा था. 13 मई 2022 को मधुमणि त्रिपाठी यानी अमरमणि की पत्नी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अच्छे बर्ताव के चलते सजा में माफी को लेकर दया याचिका दायर की गई थी. 21 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अच्छे बर्ताव के आधार पर मधुमणि की रिहाई के बारे में आदेश दिया. 10 फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट से अमरमणि को भी रिहा करने का आदेश आता है. 

लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद रिहाई नहीं होने पर त्रिपाठी परिवार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का याचिका दायर की गई. तीन जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट से दोबारा दावा है कि मधुमणि और 18 अगस्त 2023 को अमरमणि को जेल में अच्छे आचरण के आधार पर रिहा करने का आदेश होता है, जिसके खिलाफ 25 अगस्त यानी आज सुप्रीम कोर्ट में मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई होनी थी. उससे ठीक एक दिन पहले 24 अगस्त को उत्तर प्रदेश के कारागार प्रशासन ने जेल से अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि को रिहा करने का आदेश जारी कर दिया.

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क्या है मधुमिता की बहन का दावा?

मधुमिता शुक्ला की बहन की तरफ से याचिका दी गई कि अमरमणि त्रिपाठी ने अपनी सजा का 60 फीसदी से ज्यादा वक्त जेल में बिताया ही नहीं है. वह तो अपने ही जिले के अस्पताल के प्राइवेट वॉर्ड में बारह साल से है, फिर किस आधार पर अच्छे चाल चलन के नाम पर रिहाई मिल दी गई है इसलिए उनकी रिहाई पर रोक लगाई जाए. हालांकि, अदालत ने फिलहाल रिहाई पर रोक नहीं लगाई  है लेकिन आठ हफ्ते के भीतर यूपी सरकार से जवाब मांगा है.

जेल नहीं तो 11 साल से कहां है अमरमणि?

मधुमिता शुक्ला की बहन निधि का कहना है कि अमरमणि त्रिपाठी ने अपनी सजा का 60 फीसदी से ज्यादा वक्त जेल में बिताया ही नहीं है. ऐसे में सवाल है कि अगर अमरमणि जेल में नहीं रहा तो कहां रहा? दरअसल अमरमणि त्रिपाठी गोरखपुर यानी अपने गृहजिले के एक सरकारी अस्पताल में सालों से हैं. इस अस्पताल के कमरा नंबर 16 में अमरमणि कई सालों से अपना इलाज करवा रहा है. इसी बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कमरा नंबर 19 में उसकी पत्नी मधुमणि भी भर्ती हैं. 

इससे स्पष्ट है कि अमरमणि और मधुमणि उम्रकैद की सजा पाने के बाद 17 साल के दौरान पूरा वक्त जेल की सलाखोें में नहीं बल्कि करीब 10 से 12 साल अस्पताल के प्राइवेट वॉर्ड में सजा काट रहे हैं. अब दोनों को समय से पहले रिहाई मिल गई है. अब यूपी को आठ हफ्ते के भीतर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जवाब देना है. 

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