
देश के दिग्गज कारोबारी गौतम अडानी तो नए आरोपों से घिरे ही हैं, इसके साथ ही आंध्र प्रदेश सरकार भी घेरे में आ गई है. अडानी पर आरोप है कि उन्होंने भारत में सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स के ठेके हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को लगभग 2,250 करोड़ रुपये की रिश्वत दी है. अडानी समूह ने इन प्रोजेक्ट्स के लिए अमेरिकी निवेशकों से फंड जुटाया था, यही वजह है कि अमेरिकी कोर्ट में उनके खिलाफ ये मामला आया है. इन प्रोजेक्ट्स से समूह को 20 वर्षों में करीब 2 अरब डॉलर के मुनाफे का अनुमान था.
इधर, ये मामला सामने आने के बाद, आंध्र प्रदेश सरकार भी सवाल उठ रहे हें. राज्य सरकार की किसानों को नौ घंटे मुफ्त सौर ऊर्जा प्रदान करने की योजना थी. इसके लिए 7,000 मेगावाट (MW) सौर ऊर्जा खरीदने के प्रस्ताव को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. इस प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक दलों, बिजली उपभोक्ताओं और अदालतों के बीच कई स्तर पर बहस चल रही है. ये मामला कैसे शुरू हुआ और इसमें क्या-क्या हुआ, इसकी टाइमलाइन पर डालते हैं एक नजर-
घटनाक्रम की पूरी टाइमलाइन
28 अक्टूबर, 2021
आंध्र प्रदेश राज्य मंत्रिमंडल ने सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) से 7,000 मेगावाट सौर ऊर्जा खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दी. इसका उद्देश्य किसानों को दिन के समय नौ घंटे मुफ्त बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करना था. यह योजना राज्य के कृषि क्षेत्र में बिजली की लागत को कम करने और किसानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के उद्देश्य से तैयार की गई थी.
13 नवंबर, 2021
आंध्र प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (APERC) ने इस प्रस्ताव को तीन चरणों में लागू करने की अनुमति दी. APERC की मंजूरी के साथ यह समझौता औपचारिक रूप से आगे बढ़ा.
20 दिसंबर, 2021
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के राज्य सचिव के. रामकृष्णा ने हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की. उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया विद्युत अधिनियम का उल्लंघन है, क्योंकि प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए समझौता किया गया.
4 मई, 2022
तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के विधायक पय्यावुला केशव ने हाई कोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर की. उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह ₹2.49 प्रति यूनिट की हाई वैल्यू पर सौर ऊर्जा खरीद रही है, जबकि खुले बाजार में सौर ऊर्जा ₹1.99 प्रति यूनिट तक उपलब्ध थी. उन्होंने इस समझौते को आर्थिक रूप से राज्य के लिए नुकसानदायक बताया.
6 मार्च, 2024
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने APERC को निर्देश दिया कि वह वितरण कंपनियों (DISCOMs) द्वारा दाखिल याचिकाओं पर निर्णय ले. ये याचिकाएं SECI, अदानी की सहायक कंपनियों और राज्य सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौतों की मंजूरी के लिए थीं. अदालत ने सार्वजनिक सुनवाई और नियामकीय अनुपालन की जरूरत पर जोर दिया.
12 अप्रैल, 2024
APERC ने SECI समझौते को मंजूरी दे दी, जिससे राज्य सरकार ₹2.49 प्रति यूनिट की दर पर सौर ऊर्जा खरीद सके. हालांकि, यह मंजूरी हाईकोर्ट में लंबित जनहित याचिकाओं के परिणाम के अधीन रखी गई.
मुख्य मुद्दे और विवाद
1. प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया का अभाव
के. रामकृष्णा की याचिका में आरोप लगाया गया कि राज्य सरकार ने प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया को नजरअंदाज किया. विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत प्रतिस्पर्धात्मक बोली के माध्यम से बिजली खरीदना अनिवार्य है. इस अधिनियम का उद्देश्य है कि बिजली उपभोक्ताओं को सबसे कम दर पर ऊर्जा उपलब्ध हो.
2. ऊंची लागत पर सौर ऊर्जा खरीदने का आरोप
पय्यावुला केशव की याचिका में कहा गया कि बाजार में सौर ऊर्जा ₹1.99 प्रति यूनिट तक उपलब्ध है. इसके बावजूद राज्य सरकार ₹2.49 प्रति यूनिट की ऊंची दर पर समझौता कर रही है. इस उच्च लागत से राज्य के उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ बढ़ने की संभावना है.
3. त्रिपक्षीय समझौतों की पारदर्शिता पर सवाल
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SECI, अदानी समूह और राज्य सरकार के बीच हुए समझौतों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए. अदालत ने APERC को सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करने का निर्देश दिया ताकि उपभोक्ताओं और विशेषज्ञों के विचारों को शामिल किया जा सके.
4. राजनीतिक दलों की भूमिका
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है. विपक्षी दलों ने इसे राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ हथियार बनाया है. टीडीपी ने इसे एक "आर्थिक घोटाला" करार दिया, जबकि वामपंथी दलों ने इसे जनता के हितों के खिलाफ बताया.
सरकार और APERC का पक्ष
राज्य सरकार का दावा है कि यह समझौता किसानों के हित में किया गया है. राज्य मंत्रिमंडल के अनुसार, ₹2.49 प्रति यूनिट की दर पर सौर ऊर्जा खरीदने से लंबे समय में बिजली की लागत कम होगी. APERC ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए कहा कि यह समझौता उच्च न्यायालय के आदेशों और जनहित के दायरे में है.
अदालत से क्या मिले हैं निर्देश
अप्रैल 2024 में APERC द्वारा दी गई मंजूरी हाई कोर्ट की अंतिम सुनवाई के परिणाम पर निर्भर करती है. यदि अदालत सरकार और APERC के पक्ष में फैसला देती है, तो यह समझौता लागू हो जाएगा. लेकिन यदि अदालत यह पाती है कि प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है या दरें अत्यधिक हैं, तो इस समझौते को रद्द किया जा सकता है.