
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक और हस्तक्षेप याचिका दाखिल की गई है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के बाद एक और मुस्लिम निकाय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मुखालिफत की है.
तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा है कि यह समलैंगिक विवाह की अवधारणा ही पश्चिमी भोगवादी संस्कृति का हिस्सा है. भारत के सामाजिक ताने-बाने के लिए यह विचार अनुपयुक्त है.
याचिकाएं खारिज करने की मांग
समान-सेक्स के बीच विवाह को वैध बनाने का विचार विशेष रूप से पश्चिमी अवधारणा है. क्योंकि पश्चिमी देशों में, धर्म काफी हद तक कानून का स्रोत नहीं रह गया है. यह सार्वजनिक जीवन में बहुत कम भूमिका निभाता है. इस याचिका में कहा गया है कि विवाह का प्रश्न धर्म और व्यक्तिगत कानून से जुड़ा हुआ है. इसलिए समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाएं खारिज की जाएं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी किया इसका विरोध
इससे पहले समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की याचिका पर जमीयत उलमा-ए-हिंद भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध करते हुए मामले में पक्षकार बनाने की मांग की गई थी. अपनी हस्तक्षेप अर्जी में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कहा था कि विपरीत लिंगों का विवाह भारतीय कानूनी शासन के लिए जरूरी है. विवाह की अवधारणा 'किसी भी दो व्यक्तियों' के मिलन की सामाजिक-कानूनी मान्यता से कहीं अधिक है. इसकी मान्यता स्थापित सामाजिक मानदंडों के आधार पर है. कई वैधानिक प्रावधान हैं जो विपरीत लिंग के बीच विवाह सुनिश्चित करते हैं. इसमें कानूनी प्रावधानों के साथ विरासत, उत्तराधिकार, और विवाह से उत्पन्न कर देनदारियों से संबंधित विभिन्न अधिकार हैं.
पांच जजों की संविधान पीठ करेगी सुनवाई
बता दें कि समलैंगिक विवाह यानी same sex marriage को कानूनी मान्यता देने की गुहार वाली 15 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ 18 अप्रैल को सुनवाई करने जा रही है. कुछ दिनों पहले चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई 5 जजों की संविधान पीठ के समक्ष किए जाने की सिफारिश की थी. सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि यह मौलिक मुद्दा है. हमारे विचार से यह उचित होगा कि संविधान की व्याख्या से जुड़े इस मामले को 5 जजों की पीठ के सामने संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के आधार पर फैसले के लिए भेजा जाए.